मिथिला मे केक काटिकय बर्थडे मनेबाक परम्परा नहि मुदा……….

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

केक काटि बर्थडे मनेनाय मिथिलाक परम्परा नहि मुदा…..

 
हम-अहाँ सब बात अपनहि मोनक हिसाब सँ करब त दुनियाक लोक केँ ई बात हमेशा पसिन नहि पड़त। दुनिया कहला सऽ फेर अहाँ सँ अन्जान आ संगत सँ दूर केर बात हम नहि कहब, या फेर जे बाद मे अहाँक सम्बन्ध मे पढत-बुझत-चिन्हत तेकरो लेल नहि कहब, मुदा जे सब संग मे रहैत अछि, यथा परिजन, स्वजन, इष्टमित्र आदि – ओ लोकनि अहाँक एकरंग केर व्यवहार, सैद्धान्तिक विचार, आदि सँ प्रभावित-प्रेरति जरूर हेता तथापि हुनका हरदम अहींक इच्छानुसार जीवन चलय से पसिन नहि पड़ैत छन्हि।
 
भाइ आ मित्र जितेन्द्र ठाकुर जी कोनो बेजा नहि कहलथि जे मिथिला संस्कृति केर संरक्षण-संवर्धन-प्रवर्धन लेल समर्पित व्यक्तिक रूप मे परिचित प्रवीण नारायण चौधरी अपन जन्मदिन ‘केक काटिकय’ मनबथि ई कोनादैन लगैत छैक। हमरा अपनो ई सब ओतेक पसिन नहि पड़ैत अछि। जन्मदिन मनेबाक परम्परा सच मे देखासिखी शुरु भेल एना हमहुँ मानैत छी। जन्मदिनक माहात्म्य आध्यात्मिक तौर पर कतेक गूढ-गम्भीर अछि ताहि पर सेहो मनन करैत छी।
 
मानव समाज मे नीक परम्पराक अनुकरण दोसरहु सँ करब कोनो बेजा बात नहि भेलैक, से आत्मसात करैत छी। एहि मे केके काटिकय मनेबाक बदला सामूहिक कीर्तन कय केँ, पूजा-पाठ कय केँ, देव आराधना आ उपासना संग-संग अपन पारम्परिक उत्सवक रूप मे मनेबाक काज बेसी उचित बुझाइत अछि। लेकिन, जेना कि अपने सब आजुक युग मे मिश्रित सभ्यताक साझा फुलवारी मे रहि रहल छी, कोनो विशेष भूगोल आब केवल मौलिक विशिष्टता मात्र केँ अवधारि नहि चलि रहल अछि, ग्लोबल विलेज केर कन्सेप्ट मे हम सब एक-दोसर संग परस्पर समानता-एकरूपता मे मानवीयता केँ सर्वोपरि राखिकय बढि रहल छी, ताहि हेतु केक काटबाक परम्परा केँ स्वीकार करब, अनुकरण करब, धियापुताक इच्छा अनुसार स्वयं केँ चलायब, नव युगक वातावरण मे अपना केँ ढालब, ईहो सब आवश्यक अछि।
 
तथापि, हमरा जन्मदिन मनेबाक परम्परा पर अपन मायक कहल एक खिस्सा बेसी मोन पड़ैत अछि। जन्मदिन पर उमेर बितबाक आ पूर्वक स्वर्णिम सुखक समय जेना बाल्यकाल आदिक मृत्युवरण करबाक कष्ट हेबाक आध्यात्म केँ दर्शन करैत एहि दिवस पर हमरा मायक ई खिस्सा बेसी अनुकूल व एकर नैतिक शिक्षा अनुकरणीय बुझाइत अछि –
 
एक सज्जन युवजन केँ ज्योतिषी बाकायदा दिनहि तोकिकय (ताकिकय) दय देने छलखिन जे फल्लाँ दिन तोहर मृत्यु भऽ जेतह। तोहर और्दा एतबे छह। ओ युवजन ई बात सुनि पहिने तऽ कनी चिन्ता मे डूबि गेल। राति-राति भरि बेचैन रहय लागल। न नीक सँ खाय-पिबय नहिये केकरो संग हँसय-बाजय, सदिखन एहि चिन्ता मे डूबल रहय जे फल्लाँ दिन जीवनक आखिरी दिन होयत। ओ बहुत कमजोर भऽ गेल। देह पियर-कपिस भऽ गेलैक। एना लगलैक जे फल्लाँ दिन सँ पहिनहि मरि जायत। घरहु सँ बाहर नहि निकलय। एक दिन ओकरा दिमाग मे अपन एहेन अवस्था देखिकय बहुत अजीब लगलैक। ओकर मोन कहलकैक जे कम सँ कम फल्लाँ दिनहु धरि नीक सँ जिये। ओ कनेक ऊर्जा प्राप्त कयलक एहि सकारात्मक सोच सँ। ओकरा लेल ई वाक्य बहुत पैघ सन्देश दयवाला छल। ओ तुरन्त अपना केँ तैयार कय लेलक जे मृत्यु त निश्चित घटयवला घटना थिकैक, सब मरैत अछि, लेकिन ताहि लेल कियो हमरा जेकाँ चिन्ता मे डूबि अपना केँ हरेक पल मे मृत्युक दिशा मे धकेलैत नहि अछि। बस, ऐगला दिन सँ ओ काफी उत्साह सँ जीवन जियय लागल।
 
संसारक सब व्यक्ति, जीव, जीवन, सजीव-निर्जीव हरेक नामधारी अस्तित्व संग-संग ईश्वर समान अदृश्य शक्ति व ईश्वरीय अस्तित्व प्रति पूर्ण अभिवादनशील बनैत एहि परिकल्पना संग जे बस हमरा पास फल्लाँ दिन धरिक समय मात्र शेष अछि, ओ पूर्ण स्वच्छता आ पवित्रता सँ अपन कर्म निष्पादन करय लागल। जखन अन्तिम दिन पहुँचि गेलैक, ओ भोरहि अपन नित्यकर्म पूरा कय खूब सुन्दर कपड़ा-लत्ता सब पहिरिकय गामक चौक (चौराहा) पर बैसि गेल। ओतय सँ जे कियो आबथि-जाइथ सब केँ गोर लागि-लागि प्रणाम करय लागल। किछु गोटे पुछलखिन जे कि बात छैक फल्लाँ, आइ तूँ एतय चौक पर बैसि सब केँ गोर लागि रहल छेँ, किछु खास बात की? ओ जवाब मे कहलकनि, ‘खास बात यैह काका जे ज्योतिषी जी हमर आयु आइये शेष हेबाक बात कहलनि, त सोचलहुँ जे आइ सब केँ गोर लागि प्रणाम कय ली। सब सँ आशीर्वाद लय ली।’
 
ओकर ई जवाब सुनैत देरी लोक सब ओकरा प्रति असीम स्नेह आ दया सँ भरि जाइथ, सभक मुंह सँ अनायासे ओकरा लेल आशीर्वाद निकलय, “अरे! कि बात करैत छह? तोरा हमरो और्दा लागय। भगवती तोरा भोग देथि। ईश्वर तोरा खूब लम्बा आयु देथि।” आदि। भोर सँ दुपहर, दुपहर सँ साँझ, साँझ सँ अर्धरात्रि, समय बितैत गेलैक, आर ओ जीबिते छल। ओकर आयु शेष नहि भेलैक। लोक सब ओकरा घेरिकय बैसल छल। भजन-कीर्तन कयल जा रहल छल। ओहि युवजन सहित सब कियो ज्योतिषी जीक कहल बात अनुसार मृत्युक प्रतीक्षा कय रहल छलाह, लेकिन ओकर आयु शेष नहि भेलैक। ओ जीबिते रहल।
 
भोर भऽ गेलैक। कियो गोटे दौड़िकय ओहि ज्योतिषी जी सँ बात करय चलि गेल। “यौ! फल्लाँ केँ अहाँ कहाँ दिना मृत्युक दिन ताकि देने रहियैक? ओ त जीबिते अछि?”
 
ज्योतिषी जी हैरान! ओहो ओकर जन्मकुन्डली फेर सँ गणना कयलथि। आब हुनका नव बात उचरलनि। ओहि युवजनक और्दा बहुत अधिक समय लेल बढि गेलैक। ओहो दौड़ल-दौड़ल ओहि स्थान पर अयलाह। पूरा गामक लोक ओतय बैसल छल। पूजा-पाठ, हवन आदि चलि रहल छलैक। ज्योतिषी जी केँ देखिते लोकक मोन-मस्तिष्क मे मिश्रित भाव सेहो एलैक। कियो हुनका गरियाबय सेहो लागल। “कहू त! केहेन निष्ठुर लोक छथि? केना एहेन बात कहि देने रहथिन?” कियो कहय, “ओ त जैह देखलखिन कुन्डली मे सैह न कहलखिन!” – एहि चर्चाक बीच ओ युवजन उठिकय ज्योतिषी जी केँ सेहो गोर लागलक।
 
ज्योतिषी जी कहलखिन, “हौ बाउ, तोहर और्दा त काल्हिये धरि छलह। मुदा तोरा जे एतेक लोक आशीर्वाद देलखून तेकर सुखद परिणाम भेलह जे तोहर प्रारब्ध सँ नव आयु प्राप्ति भेलह अछि। आब तूँ आरो एतेक वर्ष जीबह।”
 
आर एहि तरहें समूचा समाजक लोक केँ आत्मसंतोष भेटलैक। सब कियो एहि सँ राजी सेहो भेल। आखिर मे काजक बात ओहि युवजनक अभिवादनशीलता आ सकारात्मक ऊर्जा मात्र सिद्ध भेलैक।
 
अतः हे पाठक! जन्मदिन पर केक काटबाक प्रक्रिया सँ मिथिलाक कोनो क्षय नहि भेलैक, आ नहिये कोनो क्षय अपन प्रारब्धक भेलैक। एकटा उत्सवक माहौल बनल। सभ कियो प्रसन्न भेल। सकारात्मक ऊर्जाक प्राप्ति कयलक। आर, हमरा लेल ई अवसर अपने समस्त शुभेच्छु लोकनि केँ बेर-बेर प्रणाम करबाक लेल उपयुक्त बनल। ईश्वरक कृपा कोन रूप मे आ केना भेटत से के जनैत अछि? बस, अपने लोकनि आशीर्वाद देलहुँ यैह बहुत भेलैक। अस्तु! लेख लम्बा भेल – पूर्वहि जेकाँ अहु बेर, ताहि लेल क्षमाप्रार्थना!
 
हरिः हरः!!