विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
हालहि भारतीय कांग्रेस द्वारा जारी एक पोस्टर मे एहि पार्टीक अध्यक्षाक तस्वीर लगाकय ‘सीता माँ नेपाल सँ, सोनिया माँ इटली सँ’ कहिकय एक तरहक रणनीतिक वातावरण बना स्वयं केँ तोषित करबाक असफल प्रयास कयल गेल अछि। एकर प्रत्युत्तर मे मिथिलावाद केर नेतृत्व प्रदान करनिहार किछु युवा लोकनि ट्विटर पर #सीता_भारतीय केर ट्रेन्ड करेबाक आह्वान कयल गेल। ओ सब तर्क देलनि अछि जे भारतक बिहार राज्यान्तर्गतक सीतामढी जिलाक पुनौराधाम मे सीताक प्राकट्यभूमि रहबाक कारण हुनका नेपालक नहि मानल जा सकैत अछि, ओ भारतीय थिकीह। एहि तरहक ट्रेन्ड करेबाक आ भारत तथा नेपाल केँ दू अलग राष्ट्र मानि संयुक्त पहिचान मैथिली-मिथिला-मैथिल केँ कतहु-कतहु आहत हेबाक अनुभूति सेहो भेटल अछि। मैथिली सेवा समिति सुनसरीक कर्मठ अभियन्ता जीवानन्द झा एहि तरहक वाद-विवाद मे मिथिलावादी लोक केँ फँसनाय केँ वाहियात आ अनावश्यक कहलनि अछि। मैथिली मंचक प्रसिद्ध उद्घोषक किसलय कृष्ण सेहो सीताक परिचयक गहिराई केँ आत्मसात करैत एहि तरहक राष्ट्रियता बँटवारा मे ऐतिहासिक विभूतिक नाम घसीटब केँ जायज नहि मानलनि अछि। आरो कतेको विज्ञजन केँ नहि त भारतीय कांग्रेस द्वारा जारी ओ पोस्टर सूट कयलक अछि, नहिये मिथिलावादी अभियानीक हैश-टैग ट्रेन्ड करेबाक दलील।
एहि सन्दर्भ मे श्री जीवानन्द झाक चिन्ताक प्रत्युत्तर हमर जवाब (विचार) निम्न अछिः
जाहि कोनो आन्दोलन मे चिन्तक वर्ग नहि होयत, अथवा चिन्तक वर्ग सँ बिना सलाह-मशवरा आ तर्क-वितर्क कएने अपनहि मोन सँ ट्रेन्ड, लाइक, कमेन्ट, शेयर आ वायरल केर रोग मे लोक फँसत – स्थिति एहि तरहक बनत। यैह किछु कारण छैक जे मिथिलावाद केर अभियान सँ स्वयं केँ दूर राखब उचित बुझल। अक्सर एहि तरहक घटना घटैत रहैत अछि।
भारतीय कांग्रेस द्वारा जाहि तरहें सोनिया गांधीक स्वरूप केँ जानकी माता केँ नेपाल सँ होयबाक बात कहिकय पोस्टरिंग कयल गेल अछि, तेकर प्रतिकार लेल #सीता_भारतीय केर बदला अन्य तरहक होयबाक छल। लेकिन ट्रेन्ड करेबाक होड़ आ शार्टकट पोपुलरिज्म केर घातक रोग मे फँसिकय अपन भाइ लोकनि, जिनका पर नेतृत्वक भार अछि, वैह सब एना करैत छथि त चिन्ता बढि जाइत अछि। पता नहि, एहि तरहक ट्रेन्ड थीम लेल ओ लोकनि किनको सँ सलाहो लेलाह अथवा नहि!
नेपाल आ भारत केर स्थिति पर कम सँ कम मिथिलावादी केँ नीक ज्ञान होयब जरूरी अछि। ज्ञान आइ-काल्हि इन्टरनेट पर सेहो भेटैत छैक। गम्भीरता सँ अध्ययन करबाक जरूरी छैक। बिना अध्ययन हरमुठाई करैत बलधकेल रणनीति केर हिस्सा बनि जायब, सीता भारतीय या नेपाली आदिक चक्कर मे मिथिलावादी केँ फँसब बहुत बेजा बात भेल। हरेक मैथिल केँ ई बुझबाक चाही जे अहाँक अपन दियाद नेपाल आ भारत दुनू देश मे अछि। अहाँ लेल राष्ट्रीयताक हिसाब मे ई दुइ देश सीमा नहि तय कय सकैत अछि, कारण कियो अहाँक भूमिक छाती पर अन्तर्राष्ट्रीय सीमा कोरि देलक, ई घटना १८१६ केर सुगौली संधि उपरान्त आर १८५७ केर सिपाही विद्रोह मे तत्कालीन नेपाल राणा शासक द्वारा ब्रिटीश केँ सहयोग कयला उत्तर १८६० सँ १८६५ केर बीच सीमा निर्धारण बेर सँ भेल अछि।
सुगौली संधि केर विभिन्न प्रावधान मे एहि बातक गारन्टी कयल गेल जे तराई क्षेत्र जे नेपालक अधिकार मे देल जा रहल अछि एहिठामक लोकहितक रक्षा करय। संगहि, आइ धरि जे सीमा खुला राखल गेल तेकरो मूल कारण किछु यैह छैक जे तराई निवासी मेची नदी सँ महाकाली नदी धरिक लोकक भाषा, संस्कृति, रहन-सहन आदि सीमाक्षेत्रक दुनू पार मे समान छैक। बेटी-रोटीक सम्बन्ध सेहो एहि कारण परिभाषित छैक। विदित हो जे यैह विशिष्टताक रक्षार्थ नेपाल आ भारत दुइ सम्प्रभुसम्पन्न राष्ट्र एक-दोसरक हित-मित बनल अछि। तथापि, स्वयं मिथिलावादी कियो जँ नेपाली अथवा भारतीय राष्ट्रीयताक एकल स्वरूप केँ सिर चढबैत अछि, एहि सँ अपनहि आपसी अन्तर्सम्बन्ध केँ अहित करैत अछि, भावनात्मक तौर पर नोक्सान पहुँचबैत अछि। एहि विन्दु पर सावधानी जरूरी छैक।
विगत मे डा. लक्ष्मण झा समान प्रखर मिथिलावादीक ‘पाया तोड़ो आन्दोलन’ केर भावना सेहो यैह रहैक जे हमरहि मिथिलाभूमि मे दुइ राष्ट्रक सीमा गाड़ब मान्य नहि अछि। एखनहुँ बीके कर्णा समान दृढप्रतिज्ञ अभियानी हरेक साल ४ मार्च केँ उपवास राखि सुगौली सन्धि सँ विभाजित मिथिलाक दर्द प्रति खेद प्रकट करैत छथि। कतहु-कतहु ईहो उल्लेख भेटैत अछि जे एहि क्षेत्रक स्वामित्व ब्रिटिश सरकार द्वारा सिर्फ २०० वर्ष लेल देल गेलैक जे २०१६ मे पूरा भऽ गेल छैक। एकटा वर्ग एहि सन्धि केँ ईहो कहैत विरोध करैत अछि जे ब्रिटिश सरकार आ नेपालक अथोरिटीक बीच भेल सन्धि खारिज हुअय… लेकिन १९२३ ई. मे सुगौली सन्धिक अधिक्रमण आ ‘सतत शान्ति ओ मैत्रीक सन्धि’ मे परिणति, पुनः १९५० मे पूर्वक सहमति केँ स्वीकृति दैत शान्ति आ मैत्रीक सन्धि करब दुइ राष्ट्रक आपसी विशिष्ट सम्बन्ध केँ झलकबैत अछि। दुनू कातक मिथिला दुइ राष्ट्रक बीच मैत्री आ शान्तिक सेतु थिक। एहि मे एकतर्फी हो-हल्ला बाहरी लोक भले करय, हम-अहाँ नहि करी।