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हड़बड़ी मे गड़बड़ी कि संवेदनहीनताक पराकाष्ठा छल मैथिल महिला समाजकः वाणीक प्रश्न

विचार

– वाणी भारद्वाज

बदलैत समाज आ संवेदनशीलता

ई सर्वव्याप्त भ रहल अछि जे समाज के प्रारुप आधुनिकता के आवरण मे अपना केँ लिपटैत जा रहल अछि. धीरे धीरे भयावहता दिश बढल जा रहल अछि. संगहि ईहो कहब जे महिला पहिने के अपेक्षा बेसी सशक्त भेल जा रहल छथि. पहिनो महिला सब बहुत गुणी होइतो अपना केँ परिवार, समाज के बंधन मे बंधितो रहि क छटपटाइत समय बीता दैत छलीह. किछुएक महिला मे ओ हिम्मत जुटैत छलन्हि जे परिवार वा समाज सँ ऊपर अपना केँ साबित कय पबैत छलीह. मुदा आब ई सोच आ कहय के बात नहि जे महिला अहाँ आगू बढु. आब महिला एकाएकी कय दोसराक देखौंस मे, बिना बहुत किछु बुझने-सुझने आगू बढि रहल छथि. एकरा सबगोटे सोशल मीडिया पर बखूबी देख सकैत छी. महिला सब बहुत रास ग्रुप मे अपना केँ जोड़ि अपन उत्कंठा केँ व्यक्त करय के जोगाड़ मे लागल रहैत छथि. उपयोगिता कतेक से समय अवस्से समीक्षा करत मुदा तथापि ई लोकनि धड़ल्ले सँ गतिविधि करय मे पुरुखो सब केँ पाछाँ छोड़ि देलीह कहि सकैत छी. अपना तऽ जे-से, संगहि बच्चासब केँ सेहो एहि मे शामिल केने चलि जा रहली अछि. महिला लोकनिक एहि तरहक बदलैत सोच केँ देखि एकटा नीक भावना सेहो उत्पन्न होइत अछि. ओ घुटन छोड़ि अपना केँ समाज केर हरेक स्तर पर जा अभिव्यक्ति मे आगाँ देखाय लगली अछि. जिन्दादिली सँ आगू बढि रहल छथि. संगहि अपन बच्चिया केँ सेहो मंच दय रहल छथि.

हड़बड़ी मे गोटेक गड़बड़ी होयब स्वाभाविके सही छैक. ईहो सत्य छैक जे उत्सवधर्मिताक आँधी-बिहाइड़ मे ई लोकनि संवेनदनशीलता मे यदा-कदा पाछाँ पड़ि जाइत छथि. समाजक आर लोक एकरा केना स्वीकार करत, नीक बुझत, बेजा बुझत, ताहि सब सँ बेमतलब अपनहि धून मे – भावना मे बहि गेनाय कतहु न कतहु आत्मालोचना लेल बाध्य करैत अछि. ई दुखद स्थिति थिक. किछु मैथिल महिला समाज लेकिन अपन हरमुठाई – ढिठाई एहि तरहें समाज मे परसैत छथि जाहि पर बड पैघ सवाल ठाढ भ जाइत अछि. मुदा ओहि सं एतेक पैघ देश केँ की फर्क पड़ैत छैक? जेना काल्हि केर घटना केँ लियऽ! देश केर एक अत्यन्त लोकप्रिय आ काफी दमदार नेता केर निधन होयबाक संग आ धार्मिक दृष्टि सँ सेहो अत्यन्त महत्वपूर्ण दिवस जन्माष्टमी के पावनिक दिन छल. नेताक मृत्यु सँ जिनकर भावनात्मक जुड़ाव हेतैन्ह ओ दुःखी शेष अपना मे मस्त देखल गेलीह मिथिलाक आजुक गार्गी-मैत्रेयी. ई सच छैक जे एकटा क्रान्तिकारी परिवर्तन भेल जे घोघ आ पर्दाक भीतर रहनिहाइर नारी लोकनि मंच पर पहुँच बनेलीह – मैथिली-मिथिलाक पटल पर आगू बढिकय सहभागिता देनाय आरम्भ केलीह, लेकिन ई कतेक नीक जे कतहु अर्थी सजैत हेतैक आर कतहु उत्सव मे नाच-गान मे मस्ती लेबाक काज हेतैक, कतहु स्थापना दिवस पर शायरी, जोक्स, कविता आ नाच-गाना संगहि चलतैक? ई संवेदनहीनताक पराकाष्ठा नहि? मैथिल महिलाक एहि तरहक मर्यादा नांघि उत्सवक प्रदर्शन केँ देशक आर सभ्य समाज कोन तरहें स्वीकार करत? स्वयं मैथिली भाषाभाषी समाज कि एहि तरहक अमर्यादित उत्सव मनेबाक स्थिति केँ सकारात्मक बुझत कि नकारात्मक? आइ जँ पूर्व-निर्धारित कार्यक्रमक बीचहु कोनो अशुभ समाचार आबि जाइत अछि तऽ गोटेक प्रदर्शन केँ परिस्थितिक विपरीत मानि कार्यक्रमक निर्धारित सूची सँ कटौती कय देल जाइछ. दुइ मिनट केर मौन धारण करैत पुण्यात्मा – दिवंगत नेता आदिक आत्मा केर शांति लेल प्रार्थना कयल जाइछ. एहि सँ ओहि महान दिवंगतक आत्मा केँ सेहो शान्ति भेटल रहितैक तँ संवेदनशीलता केर एक मिसाल बनितय. विडंबना एहनो देखाइछ एहि मूढपना मे जे कियो कहत – ईहो उचित छैक जे कार्यक्रम त पहिने सं तय, तेँ उचित छल कि मृत्यु केँ पुछिकय एबाक चाहैत छल. ई थिकैक बदलैत मैथिल समाज केर संवेदनहीनताक पराकाष्ठा. आशा करब जे लेख केँ सब कियो सार्थक रूप मे ग्रहण करब आर देश मे नाम घिनेबा सँ पहिने एक या दू बेर नहि, चारि बेर आगाँ सँ जरूर सोचब.

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