विचार-विमर्श
– अपर्णा झा
– हाल दिल्ली सँ मैथिली मे अपन मातृभूमि सँ प्रेम आ लगाव अनुरूप दहेज कुप्रथा व अन्य सामाजिक कमी-कमजोरी पर विचार प्रेषित करैत
मैथिल समाज : आजुक परिस्थिति में
(एकटा चर्चा जाहि में समूहक बेसी सs बेसी सदस्य से हुनक टिप्पणी अपेक्षित)
आय काल्हि विवाह में एकटा नव ट्रेंड शुरू भs गेल अछि. विवाह मे दान-दहेज तs नहि लेल जाइत अछि मुदा विवाह रातिक आडम्बर मे दुनिया भरि के खर्चा कs देल जाइत अछि. पहिने दान-दहेज के अर्थ छल ‘स्त्रीधन’ यानि पिता के संपत्ति बेटा के होइत छल, मुदा ओहिके किछु अंश बेटी के सेहो प्राप्त होइत छल जे बियाहल बेटी के अप्पन भविष्य निधि/एकटा आर्थिक दृष्टिये ‘सुरक्षा कवच’ के रूप मे देखल जाइत छल. अपना सब के इतिहास गवाह रहल अछि जे, राजा जनक जी सेहो खोंइछ स्वरूप बहुतो किछु अप्पन धीया, सीताजी के देलखिन्ह.
कहबाक अर्थ कि आरम्भ में स्त्रीधन के स्वरूप एगो नीक सोच के संग छल मुदा, कालांतर में एकर रूप विकृत आ कुत्सित भेल. लोक ‘स्त्रीधन’ के नाम पर लोभी, व्यभिचारी भेल गेल. अहि के मांग वरागत के अधिकार में शामिल भs गेल आ तहिया से बेटी भेनाय श्राप आ बेटा भेनाय वरदान भेल.
ख़ैर, आय समाज बदलल अछि. बेटियो अप्पन सोच आ इच्छा जाहिर करे लगलीह अछि. अहि में कत्तेको निर्णय नीको के उदाहरण बनल अछि आ बेजाइयो के. समाज के सोच ततेक त नहि बदलल मुदा देश आ दुनिया के बदलाव के आंधी में मैथिल समाज बचल नहि अछि. आय जतेक नीक भs रहल अछि ताहि से बेसी बेजाइयो भs रहल अछि. बेटी के पढ़ा लोक डॉक्टर-इंजीनियर बनबैत अछि, ताहि में जे खर्चा होइत अछि से अलग, ओकरा देखनाहार बुझनाहर कियो नहि मुदा वर ज्यों ओहि स्तर के लियो तs विवाह के स्टैंडर के सीमा आ खर्चा अपरिमित भs जाइत अछि. एहेन किया? ई खर्च कयल पाय नs तs बेटी के प्राप्त होइत अछि आ नहिये वरागत के किछु हासिल…. एहेन बाजारवाद के चपेट मे हमसब किया? पढि-लिखि के हम की सिखलहुँ?
विवाह से पहिने अपना सब के खान-पान के खरचा की होइत छल आ आय ओकर रूप केहेन विकृत भs गेल अछि. पहिने किनको बेटी के विवाह में कतेक सरियाती के खान-पान होइत छल! मुदा एकर मतलब ई तs नै छल जे आनंदक माहौल में कोनो कमी रहल होयत अथवा आपसी संबंध में कोनो उदासीनता होय?
आय समय के बदलाव में विवाहक स्वरूप बदलल आ ताहि में कनि नीक भेल मुदा बेसी विकृत स्वरूप अछि. यदि एहेन नहि तs ई बाज़ारवादक नशा में विवाह एकटा ‘फैंसीड्रेस शो’ आयोजन बनि के किया रहि गेल अछि, किया ने घर सबके बसs दैत छैक? कत्तहु कन्यागत आ कत्तहु वरपक्ष अहि से श्रापित भs रहल अछि. नवतुरिया सब अपन भविष्यक सोच के पहिले कदम चलैत खसि रहल छैथ. कनि अहियो बात पर ध्यान देल जाय कि लायक नवतुरिया चाहे त बालक होय या बालिका… किया पारिवारिक मान्यता छोड़ि, अप्पन पसंद से आरो-आरो जाति में विवाह करबा लेल प्रेरित भs रहल अछि? अहि अफसोसनाक परिस्थिति के जिम्मेदार के सब ? आडम्बर सब के तोड़बाक जिम्मेदारी के लेत – वरागत या कन्यापक्ष या दुनू मिलि कय? सोचब अवश्ये. कियातs जे भी समाज, ओ भारतीय होय अथवा पाश्चात्य, आडम्बरक सोच के छोड़लक सैह प्रगति केलक. दानपुण्य अवश्य होय मुदा अहि सोचक संगे कि ई हम्मर आत्मसंतुष्टि अछि, अहि में हमरा परमानन्द अछि और अहि दान-पुण्य के हमरा समाज में प्रदर्शित करबाक आवश्यकता नहि.
कुंदन के कुंदन कहबै लेल प्रमाणक आवश्यकता नहि. जँ दहेज मुक्त समाजक सोच राखै छी तs सोच के सेहो बदलs पड़त.