स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
मानव सभ्यता मे धर्म केर महत्ता कम नहि, सही बाट देखेबाक संग आस्था आ विश्वास केर अलगे अलख जगबैत जीवन केँ सफल बनेबाक लेल सेहो एकर बड पैघ महत्व छैक, ई एकटा पैघ जरूरत थिक हरेक मनुष्य लेल। नास्तिकता मे सेहो लोक अपन विवेक केर सर्वोत्तम विन्दु पर सत्य आ ईमानदार बनिकय रहय चाहैत अछि, ओ भले कोनो ईश्वर शक्ति मे विश्वास नहि करय, लेकिन ओकरो आस्था सत्यनिष्ठ आ कर्मपरायणता मे रहिते टा छैक। हिन्दू धर्मावलम्बी समाज मे कइएक देवी-देवताक रूप, गुण, चरित्र, लीला आदिक वर्णन कय अलग-अलग मनुष्य केँ अपन-अपन स्वभाव अनुसार भक्ति-तरंग अपनेबाक विलक्षण पद्धति निरूपित छैक। एखन हमरा हाथ मे अछि कल्याण केर नवका विशेषांक ‘श्रीराधामाधव अङ्क संख्या १’। गोरखपुर केर गीता प्रेस प्रति आभार प्रकट करय लेल शब्द कम पड़ि जाइछ, कारण हमरा लोकनिक हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ सँ निचोड़ निकालि निरन्तर प्रकाशन करैत रहब बड पैघ बात – विशिष्ट योगदान दैत अछि ई गीता प्रेस। हमरा आशा अछि जे मैथिली केर पाठक केँ सेहो ई आजुक राधाष्टकम् पसीन पड़तनि।
नमस्ते श्रियै राधिकायै परायै नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै।
सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तःप्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम्॥१॥
स्ववासोऽपहारं यशोदासुतं वा स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम्।
स्वदाम्नोदरं या बबन्धाशु नीव्या प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसीं ताम्॥२॥
दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे त्वं महाप्रेमपूरेण राधामिधाऽभूः।
स्वयं नामकृत्या हरिप्रेम यच्छ प्रपन्नाय मे कृष्णरूपे समक्षम्॥३॥
मुकुन्दस्त्वया प्रेमदोरेण बद्धः पतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः।
उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन् कृपा वर्तते कारयातो मयेष्टिम्॥४॥
व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालम्।
सदा मोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षैः श्रियं चिन्तयेत् सच्चिदानन्दरूपाम्॥५॥
श्रीराधिके! अपने श्री (लक्ष्मी) थिकहुँ, अपने केँ नमस्कार अछि, अहीं पराशक्ति राधिका छी, अहाँ केँ नमस्कार अछि। अहीं मुकुन्द केर प्रियतमा छी, अहाँ केँ नमस्कार अछि। सदानन्दस्वरूपे देवि! अहाँ हमर अन्तःकरण केर प्रकाश मे श्यामसुन्दर श्रीकृष्णक संग सुशोभित होइत हमरा पर प्रसन्न होउ।
जे अपन वस्त्र अपहरण करयवला अथवा अपन दूध-दही, माखन आदि चोरबयवला यशोदानन्दन श्रीकृष्ण केर आराधना करैत छथि, जे अपन नीवी (डरकस) केर बन्धन सँ श्रीकृष्ण केर उदर केँ शीघ्रहि बान्हि लेने छलीह, जाहिक चलते हुनकर नाम ‘दामोदर’ भऽ गेलनि, ओहि दामोदरक प्रियतमा श्रीराधारानी केर हम निश्चयपूर्वक शरण लैत छी।
श्रीराधे! जिनक आराधना कठिन अछि, ताहि श्रीकृष्णहु केर आराधना कय केँ अहाँ अपन महान् प्रेमसिन्धुक बाढि सँ हुनका वश मे कय लेलहुँ। श्रीकृष्ण केर आराधनहि केर कारण अहाँ राधानाम सँ विख्यात भेलहुँ। श्रीकृष्णस्वरूपे! अपन ई नामकरण अहाँ स्वयं कयलहुँ अछि, एहि लेल अपन सन्मुख आयल हम शरणागत केँ श्रीहरि केर प्रेम प्रदान करू।
अहाँक प्रेमडोर मे बन्हायल भगवान् श्रीकृष्ण पतंग (गुड्डी) समान सदिखन अहाँक आसपास मात्र चक्कर लगबैत रहैत छथि, हार्दिक प्रेम केर अनुसरण कय केँ अहींक पास रहैत छथि आर क्रीडा करैत छथि। देवि! अहाँक कृपा सभ पर अछि, तेँ हमरा द्वारा अपन आराधना (सेवा) करबाउ।
जे प्रतिदिन नियत समय पर श्रीश्यामसुन्दर केर संग हुनका अपन अंकक माला अर्पित कय केँ अपन लीलाभूमि-वृन्दावन मे विहार करैत छथि, भक्तजन पर प्रयुक्त होयवला कृपा-कटाक्ष सँ सुशोभित ओहि सच्चिदानन्दस्वरूपा श्रीलाड़िलीक सदिखन चिन्तन करी।
मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गीमहं व्याप्तमानां तनुस्वेदविन्दुम्।
महाहार्दवृष्ट्या कृपापाङ्गदृष्ट्या समालोकयन्तीं कदा त्वां विचक्षे॥६॥
पदाङ्कावलोके महालालसौघं मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः।
पदं राधिके ते सदा दर्शयान्तर्हृदीतो नमन्तं किरद्रोचिषं माम्॥७॥
सदा राधिकानाम जिह्वाग्रतः स्यात् सदा राधिकारूपमक्ष्यग्र आस्ताम्।
श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्तःस्वभावे गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे॥८॥
इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य।
सुतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधाम्नि सखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलाः॥९॥
– श्रीभगवन्निम्बार्कमहामुनीन्द्रविरचितं श्रीराधाष्टकं
श्रीराधे! अहाँक मोन-प्राण मे आनन्दकन्द श्रीकृष्णक प्रगाढ अनुराग व्याप्त अछि, अतएव अपनेक श्रीअंग सदैव रोमांच सँ विभूषित अछि आर अंग-अंग सूक्ष्म स्वेदविन्दु सँ सुशोभित होइत अछि। अहाँ अपन कृपाकटाक्ष सँ परिपूर्ण दृष्टि द्वारा महान् प्रेम केर वर्षा करैत हमरा दिश देखि रहल छी, एहि अवस्था मे हमरा कहिया अहाँक दर्शन भेटत?
श्रीराधिके! यद्यपि श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण स्वयं एहेन छथि जे कि हुनक चारु-चरणक चिन्तन कयल जाय, तैयो ओ अहाँ चरण-चिह्नक अवलोकनक बड पैघ लालसा रखैत छथि। देवि! हम नमस्कार करैत छी। एम्हर हमर अन्तःकरणक हृदय-देश मे ज्योति-पुंज प्रसारित करैत अपन चिन्तनीय चरणारविन्दक हमरा दर्शन कराउ।
हमर जिह्वाक अग्रभाग पर सदैव श्रीराधिकाक नाम विराजमान रहय। हमर नेत्रक समक्ष सदैव श्रीराधा टा केर रूप प्रकाशित हो। कान मे श्रीराधिकाक कीर्ति-कथा गुंजैत रहय आर अन्तर्हृदय मे लक्ष्मीस्वरूपा श्रीराधाक असंख्य गुणगानक चिन्तन हो, यैह हमर शुभकामना अछि।
दामोदरप्रिया श्रीराधाक स्तुति सँ सम्बन्ध राखयवला एहि ८ श्लोकक जे लोक सदा एहि रूप मे पाठ करैत अछि, ओ श्रीकृष्णधाम वृन्दावन मे युगल-सरकार केर सेवाक अनुकूल सखी-शरीर पाबिकय सुख सँ रहैत अछि।
वन्दे राधापदाम्भोजं ब्रह्मादिसुरवन्दितम्।
यत्कीर्तिकीर्तनेनैव पुनाति भुवनत्रयम्॥
हम श्रीराधा जी केर ओहि चरणकमल केर वन्दना करैत छी जे ब्रह्मा आदि देवता द्वारा वन्दित अछि तथा जिनकर कीर्तिक कीर्तन सँ मात्र तीनू भुवन पवित्र भऽ जाइत अछि।
राधे गोविन्द! गोविन्द राधे!! राधे गोविन्द! गोविन्द राधे!!