३१ दिसम्बर २०१३
मैथिली सेवा समिति, विराटनगर – आमंत्रित करैत अछि!!
मैथिली भाषा कवि गोष्ठी – एवं रक्तदान कार्यक्रम मे
४ जनवरी, २०१४ – श्री राम जानकी मन्दिर, विराटनगर – समय १० बजे सँ ४ बजे धरि।
साहित्य सँ संस्कार आ रक्तदानसँ जीवनदान – अपने लोकनि बेसी सभ बेसी संख्यामे सहभागी बनैत एहि कार्यक्रमकेँ सफल बनाबी।
आजीवन सदस्यकेँ सदस्यता प्रमाणपत्र वितरण आ मैथिली पुस्तक केर पुस्तकालय संचालनक घोषणा सेहो कैल जायत।
आयोजक:
मैथिली सेवा समिति, विराटनगर।
हरि: हर:!!
**
मैथिली-मिथिलाक एक अजूबा सपूत – अनुप चौधरी द्वारा देल गेल एक यादगार अपडेट सँ ई ज्ञात होइत अछि जे ताहि समय मैथिली-मिथिला आन्दोलन मे के-के सक्रिय रूप सँ एहि अभियन्ता केँ आगू बढौलनि।
“सालक अंतिम दिन हम आन्दोलनमे छायाके तरह साथ देनिहार भाइजि आ मित्र के हुनकर नेह लेल आभारि छि कहि नाम लेब चाहब….प्रविण नारायण चौधरी, राजेश झा, हेमंत झा, विजय झा, सागर मिश्रा, आशुतोष झा, निरज पाठक, श्याम मैथिल, अशोक मैथिल, झा चंदन, पंकज झा, गणेश मैथिल, मनोज झा, ठाकुर सूमन, संजय मिश्र, रामनरेश शर्मा, रोशन मैथिल, राजेश राय, अक्षय आन्नद सन्नी, आदित्य झा, कृपानन्द झा, कोशल जि, उदय शंकर मिश्र, बिजय झा, कमल किशोर झा, रामचन्द्र झा, अविनाश झा, हर्ष मैथिल, रोशन चौधरी, रोशन मिश्रा, अनिल झा, रतनेश्वर झा, राजिव झा, कमलेश मिश्र, पंकज झा, पंकज प्रसून, रवि झा, संजय कुमार, आरति झा, सोनु मिश्र, कृष्ण कुमार मैथिल, शंकर आन्नद झा, राघव झा, अखिलेश झा, जिवकान्त मिश्र, जनआनंद मिश्र, ओमकार चौधरी, अनित झा, विकाश झा, सागर झा, श्रिचंद कामत, अरविंद मिश्र, अकिंत राय, दिपक कुमार खाँ मैथिल, श्याम बिहारी राय “सरस”, विनय झा, आन्नद झा, जटा शंकर राय, सुभाष चन्द्र राय आदि के नेह 2014 मे बनल रहत त जित लेब जहान !!! फेसबुक पर निरंतर उत्साह बढेनिहार आदरणीय आ मित्रके सहियोग के कारण माँ मैथिली लेल किछ क पाइब रहल छी !!!”
विदित हो जे साल २०१३ ई. मिथिला आन्दोलन लेल २१वीं शताब्दी सर्वश्रेष्ठ वर्ष केर रूप मे जानल जायत, जे एहि वर्ष युवा लोकनिक जोश आ उत्साह सँ अपन भाषा, संस्कृति, राज्य आ आत्मसम्मान-स्वाभिमान केर रक्षार्थ कइएक महत्वपूर्ण डेग उठायल गेल छल।
**
अप्रील १ – जेकरा अंग्रेजिया जीवन पद्धतिमे फूल डे मनाओल जाइछ, लेकिन २००७ ई. धर्म मार्गक स्थापनाकाल सँ सिद्धान्तसँ बान्हल एक महत्त्वपूर्ण स्वाध्याय – भेट गेल “जानकी नवमी”, सीताजीकेर सर्वश्रेष्ठ चरित्र, पतिव्रत धर्म, सुख-भोग सबहक त्याग, दुर्जनक आगू नहि झूकनाय, रामक प्रति अगाध प्रेम, सदाचरणसँ शीलवती नारीक रूपमे जीवन भरि दु:ख सहैत अपन अनुपम देबाक महान उदाहरण – हम तऽ बस माँ के शरण धेने रहय लेल आतूर छी। बस, माँ, देह सिहैर जाइत अछि। बेर-बेर प्रणाम करैत छी। हिनका पर लिखल किछु रास बात: सन्दर्भ जानकी नवमी! 🙂
“एहि बेर १९ मई केँ जानकी नवमी अछि आ मिथिलावासी प्रत्येक घरमें जानकी मैयाक पूजा-अर्चना मर्यादा पुरुषोत्तम रामक संग जरुर करैथ।
माँ सीता प्रति भक्ति-भाव:सीताक जीवन-चरित्र मानव समुदायकेँ जीवनमें समस्त सद्गुण संग त्याग आ विपत्तिक घडी सेहो धैर्यवान बनैत पूर्णतया अहिंसात्मक भावना एवं सहिष्णुताक व्यवहार करैत सर्वश्रेष्ठ मानव-आचरण अनुसरण करब अछि।
जे सीता बाललीला करैत खेल-खेलमें शिव-धनुष उठा लेने छलीह, जे शिव-धनुष कदापि श्रीराम (साक्षात्) नारायण छोडि दोसर कियो हिला तक नहि सकलाह…. ततेक शक्तिशाली देवी रहितो स्वयं सीता कहियो कोनो भी चरित्र लीलामें हिंसात्मक नहि बनलीह अछि आ यैह बात लेल विद्वान् आ शास्त्रमत-पारंगत हिनकर चरित्रगान करैत दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, सती, सावित्री, अनसूया, मन्दोदरी आदि अनेको विलक्षण गुण सम्पन्न देवीरूपमें सीताकेँ सर्वश्रेष्ठ घोषणा करैत छथि।
सीताक बाललीला गान करैत जगत्गुरु रामभद्राचार्यजी महाराज हालहि अपन सुन्दर काव्य “श्रीसीतारामकेलिकौमुदी” प्रकाशित कयलनि अछि जे अत्यन्त पठनीय आ रस-रमणीय अछि।
एहि बेर जानकी नवमीक अवसर पर भक्तजनलेल दू अति महत्त्वपूर्ण फलादेशक चर्चा करब:
१. जेना सीताक उपनाम ‘मैथिली’ छन्हि, से हिनक चरित्रगान करनिहार व मानव जीवनमें मैथिली-मिथिलाक अस्मिता-प्रति कर्तब्यनिष्ठ, सजग, सक्रिय सहयोगी बननिहार साक्षात् जनकनन्दिनी सीताजीकेँ प्रसन्न करैत छथि आ परमसुख के आनन्द प्राप्त करैत छथि।
२. जीवनक अनमोल प्राप्ति थिकैक माता-पिता-गुरुक चरण-सेवक बनब। सीता-चरित्रमें सेवा व समर्पणक अनुपम आ अत्यन्त सशक्त प्रस्तुति कैल गेल छैक। अनुगामी भक्त जीवन-भवसागर सहजता सँ पार करैत छथि।
एक रोचक प्रसंग:२५ नवम्बर, २००७ केँ जगत्गुरु रामभद्राचार्यजी चित्रकूट सँ मध्यप्रदेश के यात्रा पर छलाह। संगमें शिष्य सभसँ रसखान रचित कृष्णक बाल-चरित्र गान सुनि रहल छलाह आ रसमें भाव-विभोर छलाह, हुनका लेल किनको गान सीताराम-चरित्र समान होइत अछि आ ताहि क्रममें हुनकर दु-दु गो शिष्य कहलखिन जे कि श्रीसीतारामजी केर बाल-चरित्र किछु एहने रसगर भावसँ रचना संभव छैक… तऽ रामभद्राचार्यजी एहि भावनाकेँ स्वागत करैत बस एक महीना बादे मुंबईके अपन कोनो सभाक दौरान २३ दिसम्बर, २००७ केँ मंगलाचरणकेर रचना पूरा कयलाह… व्यस्तताक चलते अप्रील २००८ तक मात्र प्रथम भागक ६७ गो पद पूरा कय सकलाह… जखन कि सुन्दर संयोगवश सीताजीक अवतरण-भूमि मिथिलामें हुनकर १८ दिवसीय कार्यक्रम छलन्हि जे कमला नदीक तटपर छल ततय अबैत देरी केवल एहि छोट अवधिमें शेष २६० पदके रचना करैत अपन लक्ष्य पूर्ण कय लेलाह। प्रेमसहित कहियौ जगजननी सियाजीकी जय! ई मात्र माँ सीताक असीम आशीर्वाद आ मिथिलाक पुण्य भूमिक प्रताप सँ संभव भेल।
एहि बेर जानकी नवमी किछु अहु लेल विशेष अछि जे समस्त मैथिल संकल्प लेता जे मिथिलाक अस्मिता जोगेबाक लेल मिथिला राज्यक माँग भारत सरकार पूरा करैथ, जे कियो एहि क्षेत्रसँ चुनाव लडय लेल अबैथ पहिले अपन चुनावी घोषणापत्रमें मिथिला राज्यक माँग प्रति समर्थन या विरोध प्रकट करैथ तेकर बादे चुनावमें वोट मंगबाक लेल अबैथ। अत: एहि बेरुक पावन अवसरकेँ अपने समस्त मिथिलावासी मैथिल जरुर उपयोगमें लाबी आ जीवन धन्य बनाबी।”
अप्रील ५:
युवाकेँ बजेबाक लेल बहुत धारदार आ मूडियल लेख सब लिखय पडैत छैक:
I strongly believe in my native language Maithili, it is one of the best in world and I am proud of having learned several other languages to communicate quite boldly with entire world and sing of what a great culture of Mithila I am born at.
Vidyapati being my ideal and a real Hero on earth who gave a slogan that ‘native language is sweeter to all’ (देसिल वअना सब जन मिट्ठा) also became my favorite. I realized that true dedications among larger populations of our Mithila have been eloped. Maithili is dying by intentional hittings of the governments of Bihar, India and Nepal who ought to care and conserve such a great ancient culture which gifted the world with 4 significant sets of scriptures and the ordinances for eternalism of humanity on earth. The state sponsored poisoning would kill our native language and obviously then our culture eradication would also happen. Today our own people have given up using Maithili with shame and fear that others will know they come from Bihar and bad will come on their name and fame they have earned by their hard efforts and struggles after migrating to such a farther distanced round the world. Even those who are selling their labors speak ‘Tere-Ko’, ‘Mere-Ko’ and ‘Ha-Jee! Ha-Jee’ Hindi in places where they dwell for survival. Now, condition is so worse that they come down to Mithila once in several years and they start preaching to the native people for why they are living in Mithila and what is kept in Mithila, they must migrate or the upcoming generation would be left so much behind and backwardness would never last. What a pity!! The Mithila once educated the entire world sees such days because nobody (responsible governances) could win any confidences for Mithila or Maithili would last with similar brilliance as it ever was.
But I guarantee to all in my surrounding that Maithili has given me so many things and I am proud son of Mithila culture. I owe to it and so would pay to it till I live on earth. Whoever may think whatever about me but my dedication would do for my native land Mithila – I never find down while introducing to the world community who I am really. Although I am with thousands of brothers and sisters who may keep quarrelling with me, as it is our nature by birth to keep fighting like children and yet again greet each other with words of cheerfulness – we call it Dhuis-Dhuis or Chait-Chait as done in childhood. Perhaps this is our weakness that all others know and thus they rule over us since a very long time, can say when 53rd Janaka was killed by his own subjects. Indeed, Mithila remained a kingless kingdom and later there were several kings but nobody could keep it fit and tight as Mithila alone and that is what we still strive to get a dignity as United Mithila. Despite we are in two countries today, we frankly respect the border cutting our head portion into Nepal and the rest into India; but we cordially appeal to both the nations to grant us statehood respecting the true term of republicanism and protect our great culture which would further produce the similar better gifts to see humanity win always and let mankind remain under sweet shadow of the Supreme Lord.
Spirituality rules always!! Mithila is a very fertile land for this and we would flourish – world will flourish; sorry that we are losing hope and feel deprived as world is flourishing but Mithila is not.
Come on youths!! Just come with fairness within self!!
अप्रील १०:
गाइर पर्यन्त पढनाय हम जरुरी मानैत छी, कारण गामक संस्कारमे पलल-बढल छी, सार-बान्चो मुँहे पर रहैत छैक लेकिन काज धरि सबटा सुचारू रूपमे चलैत रहैत छैक। कुटुम्बकेँ गाइर जतेक पढल जाइत छैक, सम्बन्ध ततबी मीठ रहैत छैक। अलबौका जेकाँ जँ गाइर पढय नहि आयल आ चैल गेलहुँ बहिनोइ सबहक गाम तँ लोक बीछ लेत…. एक बेर धिये-पुतामे पूछने छल जे कुटुम्ब अहाँक गाममे कतेक पोखैर सब अछि… कहलियैक तऽ… फेर कहलक जे कतेक लग्गी पाइन छैक ओहि पोखैर सबमे…. अटपटा लगैत रहल लेकिन कि जानय गेलियैक जे ई सब गाइर थिकैक…. यौ जी! मिथिलाक लोकक रग-रगमे ब्रह्मज्ञान छैक। जखन भिजबैक, शोध करबैक तखन नऽ बुझबैक… गंगाधर बाबु कहथिन… हे रौ फल्लम्मा – हे ओहि डार्हिके पाँग न रौ सार… ऊपर सऽ छडपनमा कहैन जे हे गाइर नहि पढू…. नहि तऽ एतहि सऽ कूरहैर फेकब जे ब्रह्माण्डे भाँगि देब… उहे बात नीक जेकाँ बजता से हिनका नहि होइत छन्हि… लेकिन आदति सऽ मजबूर कहू गाइर पढब छूटैत छैक। दुखमोचन बाबा मरैतो दमतक विद्यार्थीकेँ पढेबे केलखिन आ छौंकीसँ पोनठी फोरबे केलखिन। चाइल-प्रकृति आ बेमाय, ई तिनू संगहि जाय। लक्ष्य ई छैक जे “जागू भाइ सब, नहि तऽ खून भऽ जायब।” लेकिन एतय खून कोना बहत… ऊपर मुँहें भूर हैत वा निचाँ मुँहें, खून भुभुवैत निकलत आ कि रिसैते…. हौ बाबु! आब कहू जे एतेक पेंच लगेबैक तऽ सोझाँवाला कतेक धैर्य राखैत जबाब देत! 😉
सिलसिलामे कहियो एनाहू बाजल गेल छलैक:
अरे फेसबुकिया दोस्त! कम से कम दोस्ती के लेहाज राखू। मैथिली लिखयमें लाज कथी लेल होइत अछि? कि डर होइत अछि जे बगलवाला कहीं मिथिलाके बुझि घर-परौना आ माँरपीबा बुझि थूक फेक देत? आ कि किछु आर? यदि यैह बात छैक तखन हमरा समान मैथिलीके दिवाना सभ संग दोस्ती कथी लेल?
जखन घरे के लोक मैथिलीके दुश्मन तऽ सरकार कोना मदद करत एहि विलक्षण भाषाके बचाबय लेल? पहिले लिपिक अन्त भऽ चुकल अछि आ आब क्रमश: मिथिलाक विशिष्ट पहचान सेहो समाप्त भेल जा रहल अछि, कृपया आबो सतर्क होउ।
लेकिन अहाँ तपबल लेल स्वाध्याय नहि छोडि सकैत छी:
अपन निरंतर अभ्यास सँ एक बात स्पष्ट भेल जे आखिर मिथिला कोन बल पर एक सऽ एक ऋषि-मुनि-तपी-ज्ञानीजन के संग-संग अनावश्यक ममतारहित आ लोभ-क्रोध-मोह-रहित सन्तानकेँ उत्पत्ति करैत रहल अछि। आर एकर मात्रामें आइ किऐक घोर कमी आयल अछि ताहि बातक जनतब सेहो भेल अछि। गूढ रहस्यकेँ बस किछुवेक गीताक पाँतिमें एकरा एना समेटल जा सकैत छैक:
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मष:।सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते॥६-२८॥सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शन:॥६-२९॥यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६-३०॥सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थित:।सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते॥६-३१॥
अपन आत्माकेँ सदैव योगमें लगेनाय, पाप मुक्त भेल योगी, सहजता संग ब्रह्म सँ स्पर्श पाबयके सुख भोगैत छथि। योग सँ युक्त आत्मा, अपनहि आत्माकेँ सभ जीवमें देखैत – सभ जीवकेँ अपन आत्मामें देखैत सदिखन एकसमान रहैत छथि। जे हमरे हर जगह देखैत छथि आ हर वस्तुके हमरेमें देखैत छथि, हुनका लेल हम कखनहु ओझल नहि होइत छी। समस्त भूतमें स्थित हमरहि जे अनन्य भावसँ स्थित होइत भजैत छथि ओ सभ किछु करितो हमरे में रहैत छथि।
अप्रील ११:
अनमोल जीवन
जीवन धन बड मूल्यकेँ, देलनि अछि भगवान्!सच्चरित्र शिष्टा-सुन्दर, बनियौ बस इनसान!!
हमर वृत्ति जे हमहि करी, देखबय लेल नहि धर्म!जीवन साफल बनल ओकर, कयलक जे निज कर्म!!
देखू न आवरण देह के, पाबू निज मति दाम!अपन-अपन स्वभावसँ, बनबू मिथिला गाम!!
रहल ई पावन देश सदा, अयला ऋषि-मुनि धाम!कियो न बाँचल यदा-कदा, कयने बिन निज काम!!
लोभ मोह मद तीन जे, कयलक सभटा नाश!नि:स्वार्थ बस जीव बनी, भजियौ सीताराम!!
चैती नवरात्रापर शुभकामनाक संग, सर्वकल्याणकारी सूत्रक शुभ उपहार समेत – प्रवीण किशोर!
अप्रील ५ सँ अप्रील १४:
हाँ, संगे इहो कहैत चली जे ओम्हर विचारक अनुसार फेर दिल्लीमे अप्रील ७ युवा समूह निर्माण कार्य लेल आपसी बैठक लेल विमर्श निरन्तरता मे रहल। अप्रील ७ एक बैसार राखल गेल, मुदा निष्कर्षविहीन! रस्साकस्सी चलि रहल छल, कविकेँ नेता मानैत आगू बढबाक लेल आ मिथिला राज्य लेल जनजागरण करबाक मुख्य माँग रहल छल, लेकिन ‘कवि एकान्त’ केँ विचारधारा मानि ओहि पाछू युवा सब जुडैथ आ आगू बढैथ सोचि रहल छलाह जे कम सऽ कम आजुक समयमे पैछला भूल सब देखैत केकरो मंजूर नहि हेतैक… खास कऽ के जखन “मिथिला राज्य लेल संघर्ष” छैक तखन हमरा सबमे एना संस्था प्रति मोह किऐक बनैत अछि – आ मुद्दा प्रति समर्थन मूल्य कोना बनतैत ततबी सोचैत आगू किऐक नहि करैत छी…. बरु पहिलेसँ निर्मित सबकेँ एक मंच पर अनबाक आ एकजुट संघर्ष करबाक चिर-परिचित जरुरतकेँ स्थापित करय लेल किऐक नहि सोचैत छी…. उलटे आरो नव-नव फंडा आबय लगैत अछि। खैर, कवि अलग मिटींग राखैत छलाह आ हमरा सब सेहो प्रयास करैत रही। होइत-होइत विश्व मैथिल संघ द्वारा १४ अप्रील राखल गेल एक संगोष्ठी द्वारा “मिथिला राज्य निर्माण सेना” जोशे-जोशमे बनि गेल, ओही गोष्ठीमे समिति सेहो बनि गेल, एक निश्चित लक्ष्य आ ओकर प्राप्ति टा विधान बनैत सब किछु आगू बढि गेल। एहि महत्त्वपूर्ण उपलब्धिपर निम्न लिंक सब बहुत महत्त्वपूर्ण अछि।
जीवन
खुश छी
एतबीमें
जतेक अछि
अपना हिसाबसँ!
पात खररब
भूज्जा फाँकब
नोन तेल रोटी
साग भात
जैह जुडत
सैह खायब!
बोइन पर
अधिकार अछि
काज करब
जिनगी जियब!
केकर रहलै
चौजुगी चमक?
के बचलसभ दिन?
त्याग छै
कीर्ति छै
विद्या छै
वैभव छै
दान छै
धर्म छै
मैथिली छै
मिथिला छै
हम छी
दैव छै
चलू
जीबि ली
जहान छै!
अध्ययन जरुरी:
कार्यक्रम लेल तैयारी:
विडियो देखबाक लेल:
http://www.youtube.com/user/LOVECHANDAN100/videos?sort=dd&shelf_id=1&view=0
अप्रील १५ सँ अप्रील ३० धरि – सपरिवार धार्मिक भ्रमण, वैष्णोदेवी दरबार, बाबा विश्वनाथ दरबार – आदि।
हरि: हर:!!