हम छी नेआय
समदर्शी एहेन हम
आंखि मे पट्टी अछि
पलड़ा अछि झुकल, मुदा
तौल नहिं घट्टी अछि
पासंग कऽ तौली हम पट्टी अलगाय ।
हम छी नेआय ।
हमरा लग अंतर नहिं
धनिक आ गरीबक
सब कें अधिकार दी
हुकुर हुकुर जीबक
हड़बड़ी कोनो नइ दइ छी लटकाय ।
हम छी नेआय ।
कनियों ने भेद करी
नेता-अभिनेता हित
त्वरित न्याय सबकें दी
तर्कजाल श्रोता मति
मुंह देखि मुंगबा परसी नइ भाय ।
हम छी नेआय ।
चउमहला भवन हमर
ठाढ़ विनु पाया अछि
एक केर ऊपर बुझू
दोसर केर माया अछि
कखनोके महल दैछ नेआओं के डोलाय ।
हम छी नेआय ।
संविधान केर विधान स’
मजगूत हम पाया छी
अदृश्य रहितो हम
भीमकाय काया छी
हमरा दिशि ताकू नै एंड़ी अलगाय ।
हम छी नेआय ।
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संपादकक नोट:
वर्तमान समय देश मे एकटा नवका बहस छिड़ल अछि एखन, जाहि अपराध मे लाखों लोक बिन जमानते जेलक हावा खा रहल अछि, ताहि जुर्म मे सामर्थ्यवान् आ संपन्न अभिनेतावर्गक कोनो खास व्यक्ति लेल ई ‘नेआय’ १३ वर्षक बाद कोन रूप मे सोझाँ अबैत छैक जे एना कवि मन लिखबाक लेल बाध्य होइत अछि। आदरणीय अमरनाथ बाबु द्वारा ई सुन्दर सनक कविता सहज संवाद दय रहल अछि। हम शुरु मे अपने गड़बड़ा गेल रही जे आखिर ई ‘नेआय’ कोन सन्दर्भ केँ देखा रहल अछि। तखन प्रिय अमित आनन्द – अमरनाथ बाबुक नवतुरिया अन्तरंग मित्र कहला जे ई आंचलिक मैथिली शब्द न्याय वास्ते प्रयुक्त अछि… सच मे हम हुनका सँ पूछलहुँ आ स्पष्ट होइते ई मैथिली जिन्दाबाद पर चढा रहल छी। आशा अछि जे अपने लोकनि केँ जरुर वर्तमान न्याय व्यवस्थाक परिचायक ई मैथिली पद्य नीक लागत। हरि: हर:!!