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हम छी न्याय – हम छी नेआय: न्याय आइ ‘नेआय’

amarnath jha– अमरनाथ झा

हम छी नेआय

समदर्शी एहेन हम
आंखि मे पट्टी अछि
पलड़ा अछि झुकल, मुदा
तौल नहिं घट्टी अछि
पासंग कऽ तौली हम पट्टी अलगाय ।
हम छी नेआय ।

हमरा लग अंतर नहिं
धनिक आ गरीबक
सब कें अधिकार दी
हुकुर हुकुर जीबक
हड़बड़ी कोनो नइ दइ छी लटकाय ।
हम छी नेआय ।

कनियों ने भेद करी
नेता-अभिनेता हित
त्वरित न्याय सबकें दी
तर्कजाल श्रोता मति
मुंह देखि मुंगबा परसी नइ भाय ।
हम छी नेआय ।

चउमहला भवन हमर
ठाढ़ विनु पाया अछि
एक केर ऊपर बुझू
दोसर केर माया अछि
कखनोके महल दैछ नेआओं के डोलाय ।
हम छी नेआय ।

संविधान केर विधान स’
मजगूत हम पाया छी
अदृश्य रहितो हम
भीमकाय काया छी
हमरा दिशि ताकू नै एंड़ी अलगाय ।
हम छी नेआय ।
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संपादकक नोट:

वर्तमान समय देश मे एकटा नवका बहस छिड़ल अछि एखन, जाहि अपराध मे लाखों लोक बिन जमानते जेलक हावा खा रहल अछि, ताहि जुर्म मे सामर्थ्यवान् आ संपन्न अभिनेतावर्गक कोनो खास व्यक्ति लेल ई ‘नेआय’ १३ वर्षक बाद कोन रूप मे सोझाँ अबैत छैक जे एना कवि मन लिखबाक लेल बाध्य होइत अछि। आदरणीय अमरनाथ बाबु द्वारा ई सुन्दर सनक कविता सहज संवाद दय रहल अछि। हम शुरु मे अपने गड़बड़ा गेल रही जे आखिर ई ‘नेआय’ कोन सन्दर्भ केँ देखा रहल अछि। तखन प्रिय अमित आनन्द – अमरनाथ बाबुक नवतुरिया अन्तरंग मित्र कहला जे ई आंचलिक मैथिली शब्द न्याय वास्ते प्रयुक्त अछि… सच मे हम हुनका सँ पूछलहुँ आ स्पष्ट होइते ई मैथिली जिन्दाबाद पर चढा रहल छी। आशा अछि जे अपने लोकनि केँ जरुर वर्तमान न्याय व्यवस्थाक परिचायक ई मैथिली पद्य नीक लागत। हरि: हर:!!

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