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सीता जी चारू बहिन संग श्रीराम चारू भाइ विराजमान छथि जानकी मन्दिर मे

पराम्बा जानकी – सीता तथा हुनक तीन बहिन अपन-अपन श्री (स्वामी) केर संग ऐतिहासिक जानकी मन्दिर मे विराजमान देखा रहली अछि एहि फोटो मे।

 
आउ, आजुक दिन समर्पित करी सीता जी आ हुनक अन्य तीन बहिन केर विस्तृत परिचय संग अन्य किछु रोचक जानकारी जे विभिन्न स्रोत सँ संकलित कयल गेल अछि से जानिकय –
 
सीताजी राजा जनक शिरध्वज केर सुपुत्री छलीह। ओ सहोदर दुइ बहिन छलीह। हुनक अपन छोट बहिनक नाम उर्मिला छलन्हि। उर्मिलाक विवाह सेहो सीता जीक विवाह संगहिये सम्पन्न भेलनि। सीता जी केर विवाह लेल राजा जनक बड पैघ संकल्प लय लेने रहथि। तेकर रहस्य छोट मे एतबे बुझू जे ओ कुमारि रहति बच्चे मे बाम हाथ सँ शिव धनुष उठा भगवती घर केँ निपैत देखल गेल छलीह। पिता शिरध्वज जनक ताहि समय संकल्प लय लेने रहथि जे ई एक अद्वितीय वीरांगना छथि, हिनक विवाह हिनके समान वीर पुरूष संग करब। ताहि लेल ओ स्वयंवर रचौलनि। जे शिवधनुष भंग केलनि, यानी श्रीरामचन्द्र दशरथपुत्र, तिनका संग सीता जीक विवाह भेलनि। श्रीराम सेहो चारि भाइ छलाह, हुनक छोट आ सदैव संग रहनिहार भाइ लक्ष्मण संग उर्मिलाक विवाह भेलनि। राजा शिरध्वज जनकक छोट भाइ केर नाम कुशध्वज जनक छलनि। हुनकहु २ सुपुत्री मांडवी आ श्रुतकीर्ति छलखिन। मांडवी सब सँ पैघ छलीह। हुनक विवाह कैकेयीपुत्र आ मर्यादारक्षक श्रीरामक परमभक्त ओ अनुगामी भरत संग भेलनि। सब सँ छोट बहिन छलीह श्रुतकीर्ति, हुनक विवाह श्रीराम जीक सब सँ छोट भाइ शत्रुघन संग भेलनि।
 
रामायण अर्थात् रामचरितमानस! मर्यादा पुरुषोत्तम राम ओ हुनक श्रीविग्रह स्वरूप भरत, लक्ष्मण आ शत्रुघन संग हिनका लोकनिक अर्धांगिनी श्रीविग्रह स्वरूपा जगज्जननी जगदम्बाक रूप सीता, मांडवी, उर्मिला आ श्रुतकीर्तिक विवाह केर चर्चा करैत अछि। परन्तु रामायण अधिकांश समय सीता आ राम संग लक्ष्मण तथा भरत केर भूमिका पर बेसी प्रकाश देबाक कारण बहुत बात आम जनमानस मे सीता जी केर बहिन आ कि श्रीराम जी केर भाइ आदिक चर्चा प्रचलित नहि भऽ पबैत अछि। परन्तु रामायण केर अनेकों रचना हेबाक बात तथा जिज्ञासू विद्वान् द्वारा आरो-आरो बात सब संकलन करैत रहबाक कारण गोटेक बात हमरा एक श्री आशीष शर्माक लेख सँ ज्ञात भेल जे एतय राखय चाहब, ई बड़ा रोचक लागत।
 
१. श्रीराम जी लेल माता कैकेयी सँ प्रेरित आ वचनबद्ध बनि राजा दशरथ १४ वर्ष लेल वन जेबाक कठोर आदेश देलनि, आर स्वयं एहि शोक मे जे बीमार पड़लाह त फेर उठि नहिं सकलाह। एहि ठाम कहल जाइछ जे एक समय दशरथक वाण सँ अन्जानहि श्रवण समान मातृ-पितृभक्त पुत्र मारल गेल छलाह आर हुनक वृद्ध-आन्हर माता-पिताक एकमात्र सहारा श्रवण केँ एना मरला सँ बेसहारा वृद्ध माता-पिताक आह सँ दशरथ केँ ई पुत्रशोक भोगब लिखल छलन्हि, से पूरा भेलनि।
 
२. श्रीराम जी संग हुनक भार्या सीता जी तथा सेवक भाइ लक्ष्मण जी सेहो वनवास लेल संग गेलाह। एम्हर उर्मिला चौदह वर्ष धरि सुतैत रहलीह। लक्ष्मण जी अपन वनवास केर समय भ्राता ओ भाभीश्री केर रक्षा लेल नींद केर परित्याग कयल गेल छल। एहि कारण पातिव्रत्यक निर्वाह करैत उर्मिला पति लक्ष्मणक हिस्साक नींद सेहो पूरा करथि।
 
३. भरत जी केर माय कैकेयी भले मन्थरा केर देल दुर्बुद्धि सँ प्रेरित भऽ अपन कोखि सँ जन्मल पुत्र लेल राजपाठ ग्रहण करय लेल एतेक भारी व्युह रचलीह, परन्तु भरत जी आदर्शक पक्का लोक छलाह। ओ अपन कर्तव्य निर्वाह करबाक लेल श्रीराम जी केर आदेश मानि राजपाट चलाबय लेल चित्रकुट सँ अयोध्या लौटि त गेलाह, लेकिन राजगद्दी पर श्रीराम जी केर चरण-पादुका केँ राखि स्वयं गद्दीक नीचाँ आसन बिछाकय ओतहि सँ राजपाट चलौलनि। ओ अपना लेल कोनो वस्तु अथवा भोग ओहेन नहि ग्रहण कयलनि जे श्रीराम केँ वनवास मे नहि भेटि सकैत छलन्हि। एहि क्रम मे ओ नित्य सरयू तट पर राति अखरा जमीन पर विश्राम कयल करथि।
 
४. एकमात्र शत्रुघन जी भेलाह जे तीनू भाइ केर अनुपस्थिति मे तीनू माता केर सेवा करथि। राज्य केर प्रशासनिक कार्य सेहो सम्हारथि। वैह एक बेर मन्थरा केँ चुपचाप अपन पारितोषिक लय सरकबाक फिराक मे रंगेहाथ पकड़ि लेने छलखिन। लेकिन भरत जी द्वारा ई कहला पर जे मन्थरा केँ दण्ड देनाय श्रीराम केँ नीक नहि लगतनि। तखन मन्थरा केँ प्राणदान देने छलखिन शत्रुघन जी।
 
५. वनवास बितलाक बाद जखन राम द्वारा राज्य केर युवराजक रूप मे लक्ष्मण केर नाम सुझेलनि तखन ओ भरत केँ योग्य बताकय अपन पात्रता रद्द कय देलनि।
 

६. चारू भाइ केर २-२ टा पुत्र छलन्हि ईहो एकटा संयोग टा भेल। श्रीराम केर लव आ कुश, भरत केर तक्ष-पुष्कल, लक्षमण केर अंगद और धूमकेतु तथा शत्रुघन केर शूरसेन-युपकेतु नामक पुत्र भेलन्हि।

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