भक्ति गीत मे सैयाँ-सजनियाँ आ दियर-भाउजक भरमार

श्लील-अश्लील केर बीच मे आध्यात्म संग सेहो खेलबाड़ होयबाक बात मोन पड़ि रहल अछि। ओना हालहि रानी झा केर एकटा गीत आयल अछि… ‘राजा जी के हाथ-पैर टुइट गेलइ गे’ – यूट्युब पर (लिंकः https://www.youtube.com/watch?v=_MjvVCxa9V8) – पहिने त डर होइत रहय जे लिंक शेयर केला पर फेर विवादक केन्द्र मे नहि चलि जाय… मुदा २-३ दिन पहिने गीतक बोल सब सुनलाक बाद अपन कनियाँ संग चौल करैत पुछलियनि जे कहू… ई गीत मे कोन गलत बात कहल गेल छैक… ई त बड़ पैघ मैसेज दय रहल अछि। … से अहाँ लोकनि स्वयं सुनियौक त जरूर हमरा संग सहमति जतायब।
आध्यात्मिक गीत मे सांसारिक सम्बन्धक कोनो महत्व हमरा बुझय मे नहि छैक, लेकिन वर्तमान कलियुग केर रीत भैया… किछु एहने बात सब केँ पसीन कयल जाइत छैक। बाबाक रस्ता मे अर्र-दर्र किछु गाबि लेत आ बीच मे १० बेर बोलबम-बोलबम-बोलबम कय देलक त वैह भऽ गेल भोला बाबाक भजन….! नहि-नहि! हमरा हिसाबे ई सब बात युगक प्रभाव थिकैक। आध्यात्म मे जखन ई घटिया प्रयोग केँ आमजन केर पैघ तवका एतेक महत्व दैत छैक तेहेन समय मे रानी झा केर गीतक महत्व एहि तवका लेल कतेक पैघ महत्व रखैत छैक से स्वयं कल्पना कय सकैत छी। हँ, विजुअलाइजेशन मे जखन ‘आउऽऽऽ’ वला चीख निकलैत छैक तखन एक रती अटपटा जेकाँ लागल… लेकिन लोक सब कहलक जे यैह तरहक चीख-पुकार सँ ओहि जनवर्गीय समुदायक ध्यान गीत तरफ खींचाइत छैक।
ओम्हर ‘जिला बेगूसराय’ जे फिल्म बनि रहल अछि ताहि मे बड़ पैघ-पैघ गीतकार ‘किसलय कृष्ण’, ‘धीरेन्द्र प्रेमर्षि’, आदिक नाम होयबाक बात पढलहुँ। प्रेमर्षिजी केँ एहि वर्ष संरक्षण नेपाली चलचित्र मे एकटा गीत लेल सर्वश्रेष्ठ म्युजिक अवार्ड सेहो भेटलनि। जखन कि ओ गीत बस जिद्दे-जिद्द मे बस लिखि देने छलखिन… एहि बेर त आरो मनोहर गीत-संगीत देबाक काज होयत एहि फिल्म मे। कतेको रास नव प्रयोग मे माहिर स्रष्टा निश्चित फेरो नव कीर्तिमान बनौता से तय अछि। तखन कलियुग केर रीत भैया… ओ कतेक हिट होयत आ बेकार-ब्यर्थ गीत सब केँ हँटा सकत… से समय कहत।
हरिः हरः!!