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कलियुगी राजनीति केर जहर सँ समाज केँ आजाद करबाक लेल ग्रामीण यात्रा आ लोकवार्ता जरूरी

संस्मरण आ नव कार्यक्रम

देखिते-देखिते ४ वर्ष बीत गेल!
 
मिथिला ग्रामीण जागरण यात्रा मे एखन धरि सैकड़ों गाम घुमि चुकल छी। लोकसम्पर्क बड पैघ बात होइत छैक। सिर्फ नेतागिरी आ वोट मांगय लेल भ्रमणक जरूरत नहि, बल्कि समाजक विभिन्न जरूरी विषय पर चिन्तन लेल आइ एहेन भ्रमण बड जरूरी भऽ गेल अछि। राजनीतिक तौर पर ९९% स्खलित मिथिला समाज आइ जातीय वोट बैंक केर कारण छहोंछित भऽ चुकल अछि। तखन एहेन कोन शक्ति एखनहुँ शेष अछि जे सब जाति आ धर्मक लोक केँ जोड़ि सकत? ई सवाल आइ बड पैघ चुनौती बनिकय हमरा लोकनि समकालीन समाज केँ आँखि देखा रहल अछि।
 
जहिया सँ मैथिली-मिथिला विषय मे स्वयं केँ सेवा लेल आगू कयल, लोकपरोपकारक अलग-अलग विषय नजरि पड़य लागल। जानकी-दुर्गाक असीम कृपा कहू जे ४७ वर्षक अवस्था मे मात्र एक बेर गाम नहि जा सकल छी, ताहि बेर भगवती एकटा एहेन शिक्षा देलनि जे फेर दुनू कान पकड़िकय माफी मांगि लेल हुनका सँ आर कहल जे हे माय! जा धरि तोहर देल साँस चलैत रहत, हम तोरा सँ एक सेकेन्ड अलग नहि होयब। आर, यैह दुर्गा पूजाक बेर मे अपन समाजक विभिन्न विधा आ लोकसमाज सँ बैसिकय चर्चा करबाक अवसर जुटैत रहल अछि। आइ जँ हमर मिथिला समाज केँ किछु जोड़ि सकैत अछि ओ थिक ‘विगत १०० वर्षक मिथिला विकासक्रम केर समीक्षा’।
 
नेता आ जनता मे केहेन सम्बन्ध छैक से देखू – नेता अपना केँ राजा-रजवाड़ा बुझैत अछि आर जनता केँ सामंत…। जे सामन्ती व्यवस्था चलाकय मुगल आ बाहरी लोक भारतवर्ष मे अपन धौंस चलेलक, वैह प्रक्रिया आइ अपने लोक द्वारा चलायल जा रहल अछि। नाम लेल जाइत अछि ‘जयप्रकाश नारायण – राम मनोहर लोहिया – समाजवाद – गाँधीवाद – निरपेक्षतावाद’ आदिक, लेकिन काज ठीक उल्टा – समाज केँ विखंडित कय, अपन जातीय पहिचान मे अभिमानित भऽ सत्ता संचालनक बागडोर अपनहि मैनजन केँ दियेबाक उन्माद पसारल जाइत अछि…. लेकिन जनककालीन मिथिला सँ मैथिल पद्धतिक समाजवाद जे बिना डोम-चमार-कुम्हार-कमार-सोनार-नौआ वा कोनो जातिक योगदान बिना एकटा विवाह या कोनो विध व्यवहार पूरा नहि कयल जा सकैछ…. तेकर चर्चा कतहु नहि। उल्टा मैथिली माने बाभन-काइथक भाषा, मिथिला माने बाभनवाद, आदि भ्रम केँ पसारबाक काज कयल जाइत अछि। एहि सँ समाज केँ जोड़बाक तऽ सपनो देखब दुर्लभ अछि, तोड़ि-ताड़ि अपन स्वार्थ सिद्धिक काज मात्र कयल जाइछ। शास्त्रीय वचनानुसार राजधर्म मे जँ कियो नेतृत्वकर्ता समाज केँ विखंडित करबाक कुचक्र करय तऽ ओकरा रौरव नरक मे बास कहल गेल छैक…. लेकिन डैम केयर रौरव न सौरव! नरक मरलाक बादक बात भेल… एखन अपन मर्जी समाज केँ जोतैत रह… बस यैह नीति बचल अछि वर्तमान कलियुगी राजनीति केर।
 
लेकिन मैथिलत्वक प्रसार सँ ई कम होइत अनुभव करैत छी। समाज मे पसरल जहर समान जातिवाद, धार्मिक उन्माद, सत्तालोलुपता आ गलत पैरवी सँ स्वार्थ पूरा करबाक कुचक्र… एकरा सभक एकमात्र उपाय यैह देखि रहल छी जे जनक-जानकीक ध्वजा लय गाम-गाम घुमू आ समाज केँ सजग करू। एहि वर्ष सेहो भगवती पार लगबिहैथ। कम सँ कम पाँचो टा गाम घुमि लेब, पाँचो टा समाज संग बैसि जायब तऽ आत्मसंतोष भेटत। शेष, भगवती स्वयं जेकर संचालक होइथ ओतय बेसी इच्छा रखनहिये भला कि होयत… जनथिन ओ स्वयं! अस्तु! अपने मित्र लोकनि जे गाम आबि रहल होइ से जरूर जानकारी देब। योजना बनाबय मे सहजता होयत। प्रस्तुत मेमोरी मे सेहो किछु मित्र ४ वर्ष पहिने संगे घुमल छलहुँ। आइ, बहुतो गोटा अपन रस्ता अलग चलि रहल छथि, सभक कल्याण हो।
 
हरिः हरः!!

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