नशा मुक्त मिथिला: मैथिल युवा शक्ति द्वारा एक नव प्रयास

nasha mukt mithilaमिथिलाक युवा शक्ति मे दिन – ब – दिन नव-नव प्रेरणा सँ स्वच्छ समाजक निर्माण लेल जाहि तरहें स्फुरणा जागि रहल अछि एकर स्वागत हेबाक चाही। विगत किछु मास सँ कोइलख निवासी युवा विक्की ठाकुर जे स्वयं एक चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट रहितो श्री श्री रविशंकर जी केर शिष्य-अनुसरणकर्ताक रूप मे ‘नशा मुक्त मिथिला’ परिकल्पना पर कार्य प्रारंभ केने छथि। अहु सँ पूर्व सौराठ निवासी डा. शेखर चन्द्र मिश्र जे मधुबनी कचहरी मे ओकालति करैत छथि आ ऐतिहासिक सौराठसभा विकास समितिक सचिव छथि, ओहो ‘नशा मुक्त मिथिला’ निर्माण करबाक संकल्प प्रकट केने छथि। तहिना आरो बहुत रास युवा समाज द्वारा फेसबुक सँ अपडेट आदि देखैत अयलहुँ जे ‘नशा मुक्त मिथिला’ केर निर्माण करब।

जखन-जखन कोनो सार्थक डेग उठैत अछि तऽ हमरा लोकनिक समाज मे ओ जे ‘कोढियावर्ग’ अर्थात् मूकदर्शक बनि बस अपन अहं मे डूबल बिना प्रयास केनहिये समय गुदस्त करय चाहैत अछि तेहेन लोक सब द्वारा ‘छूछ-आलोचना’ होयब प्रारंभ होइत छैक। एक सँ बढि कय एक तर्क आ तर्क सँ नहि चलत तऽ कूतर्क, कूतर्को हारत तखन गारि-फझेत तक देत, ओकर वश चलौक तऽ मारि-पीटिकय सेहो ‘सार्थक प्रयास’ केँ हतोत्साहित करत। नंगटय के शिरोमणि एहेन ‘छूछ आलोचक’ केँ प्रवीण तही कारण सँ फाजिल नंगटय देखेबाक नीति अपनबैत अछि। ओकर तर्क केँ पहिनहिये कूतर्क सँ जबाब दियौक। कूतर्क करय तँ गरियाउ। गाइर बाजय तऽ लठियाउ। लठियाबय तँ भस्म कय दियौक। हलाँकि हिंसाक बदला प्रतिहिंसा केँ अहिंसावादी नीति गलत कहैत छैक, मुदा ई ‘निक्कम्मा-ढोंगी-कोइढ-छूच्छालोचकवर्ग मैथिल’ केँ जखनहि चिन्हू तखनहि सँ गाइर-फझेत सँ तर राखू। एकर सूत्र सीधा छैक – जे भोज नहि करय ओ दाइल बड पीबय, आर दोसर, अनकर धन पाबी तऽ सत्तर मन तौलाबी। स्वयं किछु टा नहि करत ई वर्ग लेकिन अहाँ सँ ओकरा हिसाब चाही! बूरिपना आ खचरेटी के लेल अणुसूत्र सेहो बनल छैक – के-एच-ओ४ – कोढिया, हलखोर, ओ१ – जीवन भैर किछु सकारात्मक कार्य नहि करनिहा, ओ२ – काजक घडी बिल मे नुकेनिहार, ओ३ – पूर्ण गैर जिम्मेवार लोक आ ओ४ – कूतर्क सँ दोसर करनिहार पर टीका-टिप्पणी करयवला टिपौरीलाला बननिहार।

नशाक परिभाषा मे किछु रास महत्त्वपूर्ण विन्दु पर जरुर विचार करू। महादेव केर नाम लैत नशा करी वा विद्यापति केर भाँग पियबाक उदाहरण दैत नशापान केँ जायज मानू, या फेर मिथिलाक पारंपरिक रिवाज मे बुजुर्ग गृहस्थादि द्वारा भाँगक नित्य-सेवन केँ नशापान मानि अपना केँ नशा मे डूबाउ ‍- ई सर्वथा अनुचित होयत। विन्सटन चर्चिल, नेपोलियन, अब्राहम लिंकन आ संसार भरिक एक सँ बढिकय एक महान नेतृत्वकर्ताक नशा सेवन – राजा-महाराजा आ उच्चवर्गीय समाज द्वारा कोनो सामाजिक रीति पूरा करबाक समय नशा सेवन, राजकीय वा निजी समारोह आदि मे नशा सेवन – सबहक अपन एक औचित्य छैक। सेनाक जबान लेल नशा सेवन, प्रतिकूल मौसम सँ लडबाक लेल नशा सेवन, औषधिरूप मे नशा सेवन.. बहुतो जगह एहेन छैक जाहि ठाम नशालू पदार्थक प्रयोग केलाक बादो ओकरा नशाक संज्ञा देब मूर्खता हेतैक।

बहुत गहिर सामाजिक शोध उपरान्त हम ई कहि सकैत छी जे ‘नशा नितान्त व्यक्तिगत सामर्थ्यक प्रतिकूल शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, वाचिक, वैचारिक, पारिवारिक, सामाजिक वातावरण निर्माण करबाक क्रियाकलाप केँ कहल जाइछ।’ कोनो पदार्थक सेवन अपन पाचन क्षमता अनुकूल होइत छैक तखनहि शारीरिक स्वास्थ्य, वैचारिक, मानसिक आ समस्त विन्दु पर लोकक नियंत्रण रहैत छैक। कहल जाइछ जे प्रकृति निर्मित शरीर मे विभिन्न खाद्य पदार्थ केर उपभोग सँ कतेक उर्जा भेटैत छैक ताहि बातक मापन-यंत्र ‘कैलोरीमीटर’ स्वस्फूर्त कार्य करैत रहैत छैक, तैँ एक सीमा पर आबि ‘आर नहि चाही’ कहि सकैत छी। मुदा अल्कोहल केर सेवन सँ कतेक उर्जा भेटल ताहि ठाम ओ मीटर रिडिंग नहि करैत छैक। बेहिसाब लोक पीबि लैत अछि। शरीर केँ नुकसान, पाइकेर नुकसान, फेर उत्तेजित मानसिकता सँ लोकाचार मे नुकसान, घर-परिवार आयल ओतहु बोल-कूबोल सुनैत अछि तऽ पारिवारिक सौहार्द्रताक नुकसान, एहि तरहें बहुत रास समयक नुकसान…. लेकिन नशा-सेवन केर आदी बनि गेल नशेडी केँ एहि सबसँ कोनो फर्क नहि पडैत छैक, ओकर लुकुम दिन-ब-दिन खराबे भेल चलि जाइत छैक आ परिणाम परिवारक अन्य-अन्य सदस्यकेँ भोगय पडैत छैक। वर्तमान व्यवसायिक दुनिया मे युवा व किशोर केर समूह सब सँ बेसी नशाक शिकार भऽ रहल छैक।

नशाक भिन्न-भिन्न प्रकार आइ मानव-समाजक सब सँ पैघ दुश्मन बनि रहल छैक। जाहि दबाइ सँ लोकक रोगक इलाज होइत छैक, तेकरो दुरुपयोग करैत नशापान कैल जाइछ। ड्रग्स आ वैक्सीनक उपयोग सेहो हार्डकोर नशा लेल कैल जाइछ। कहियो न सुनल गेल बात सब सेहो आइ-काल्हि नशालू पदार्थ रूप मे पैर पसारय लागल छैक। केकरो सुंघानी लैत नशाक आदति, केकरो बूट-पालिश खाइत नशा करबाक लत, कियो आयोडेक्स, कियो फेन्सिडिल…. नाइट्रोसिन, कम्पोज, आदि विभिन्न प्रकारक नशाक प्रकार सँ ड्रग-माफियाक चाँदी होइत छैक – मुदा दोसर तरफ युवा-नस्ल पर असैर पडि रहल छैक। एन्टी नारकोटिक्स सेल अलग रहितो शिकारी ड्रग डिस्ट्रीब्युटर एहि तरहें हर दिशा मे पैर पसारि रहल छैक।

मिथिला मे नशा केनिहार लोक भाँग-गाँजा-तारी-हुक्का केर सेवन प्राचिन समय सँ करैत आबि रहल अछि। ई बहुत पैघ सच्चाइ थिकैक जे प्रकृति प्रदत्त नशालू पदार्थक उपयोगिता सेहो एक निश्चित सीमा तक छैक। प्राचिन समय सँ चलैत आबि रहल एहि व्यवहार मे औषधीय गुण सेहो भेटैत छैक। मुदा कमजोर आत्मबल केर लोक द्वारा एहि सब तरहक वस्तुक उपयोगिता शीघ्र दुरुपयोगिता दिशि उन्मुख होइत छैक, आ निश्चित तेकर प्रतिकूल प्रभाव प्रयोगकर्ता पर पडैत छैक। शुरु मे जे वस्तु महादेवक बूटी बुझाइत छैक, वैह अन्त मे धुन्धकारी बनबैत प्रेत योनि मे निवास करय लेल पृथ्वी सँ टिकट बूक कय दैत छैक। किनको विद्यापतिक उगना द्वारा भाँग घोंटि पियाबय जेकाँ ‘स्नेहशिक्त विजया’ पहिने उचित बुझाइत छन्हि मुदा मात्रा क्रमश: बढैत-बढैत अन्त मे पूर्ण मस्तिष्क आ न्युरान शिथिल पडि जाइत अलबौका बनबाक परिणाम देखा दैत छन्हि। कहबाक तात्पर्य ई जे मिथिलाक परंपरा कतहु सँ बेजा नहि यदि हमरा लोकनि सीमा मे रहबाक आचार-विचार केर विकास करी। वर्तमान मे एतय सरकारी तंत्र द्वारा नशाक प्रसार कैल जा रहल छैक, मुदा समाज मूक-दर्शक बनि सब किछु देखि रहल अछि। नित्य चौक-चौराहा पर लोक पीबि कय ओंघराइत रहैत अछि, लाठी-लठौवैल आ कपार फोरौवैल होइत रहैत छैक, गोलियो-बन्दुक चलबाक बात सब सुनि रहल छी। तखन तऽ ‘नशा मुक्त मिथिला’ परिकल्पना संग बढि रहल युवा शक्ति केँ सराहना करैत सहयोग करी, नहि कि हुनका सबकेँ ‘निक्कम्मा-ढोंगी’ केर तर्क मे उलझाबी।