चिकित्सा क्षेत्र मे लूट, रोगीक स्वास्थ्य संग खेलबाड़

सावधान, कहीं डाक्टर लफुआ त नहि अछि!! देखिकय!!
 
बीमार शरीर कमजोर भऽ जाइत छैक। बीमारी केकरो नीक नहि लगैत छैक। आइ सब सँ महंग भेल अछि डाक्टरी केर पढाई। पहिने बैद-हकीम केर भरोसे सब इलाज भऽ जाएक। आब….? संभव नहि अछि। डाक्टर सँ इलाज कराबय जाउ आ पहिने सब तरहक खून, हग्गी, मुत्ती, थूक, खखार, आदि चेक कराउ। फेर ओतबा नहि – नाड़ी छू बैद-हकीम इलाज वला युग ई नहि थिक। आला लगाकय प्रेशर जाँचि लेत आ डाक्टर रोग पकड़ि लेत सेहो अवस्था आब नहि अछि। आब हृदय गति सही काज कय रहल अछि वा नहि, ताहि लेल ईसीजी आ शरीर मे नर्व्स (स्नायु तंत्र) कतहु सँ करेन्ट मारय लागल आ कि झटका-तटका मारैत अछि ताहि लेल सेहो एमआरआइ आ माथ सही काज कय रहल अछि वा नहि ताहि लेल सेहो सीटी स्कैन, एमआरआइ टेस्ट आदि भिन्न-भिन्न मापदंडक जाँच कराउ। ई सब जाँच करा लेलाक बाद दबाई मे प्राणरक्षक एन्टीबायटिक कोन सूट करत ताहि लेल कल्चर टेस्ट ७२ घंटा वला कराउ। आर आब डाक्टर अपन पढाई मुताबिक दबाई लिखत, सूट कय गेल तऽ वाह-वाह आ नहि सूट केलक तऽ फेर दोसर डाक्टर, दोसर अस्पताल, फेरो सब चेक-जाँच आदि कराउ आ फेर ओतबे प्रक्रिया भेलाक बाद दबाई लिखत आ ई क्रम चलैत रहत। ई थिक आजुक डाक्टरी जाँच।
 
आइ एकटा डाक्टर बनय लेल कम सँ कम ५ करोड़ टाका केर लगानी अछि। एमबीबीएस तक केर पढाई करय लेल लगभग १ (एक) सँ १.५ (डेढ) करोड़ टका चाही। फेर, एमडी केर पढाई लेल कम सँ कम ३.५ (साढे तीन) सँ ४ (चारि) करोड़ टका चाही। एतेक टका लगानी कय केँ अपन उमेरक हिसाब सँ ३० वर्ष धरि मे किओ डाक्टर बनि जायत। टैलेन्टेड डाक्टर रहत जे पढाई बेर मे यथार्थ रूप सँ पढाई कय केँ अनुभव हासिल करैत सब तरहक प्रभाग मे सक्षम मस्तिष्क राखत तखन त ठीक छैक, नहि तऽ डाक्टरो मे अधिकांश आइ-काल्हि लफुआ भेटत से पहिने सँ सतर्क रहब। लफुवइ कोना देखायत तेकर किछु लक्षण कहि दीः
 
*पेशेन्ट सँ बात करैत समय एकदम कम बाजत, वा झटकादार भाषा बाजत। एक चिकित्सक लेल जखन कि रोगी सँ भेटैत देरी ओकर बोली आधा सँ बेसी बीमारी ठीक करयवला आ रोगी केँ विश्वास दियाबयवला होएत छैक, जेकर असर बीमारी सँ लड़बाक लेल उचित आत्मशक्ति जुटेबाक प्रेरणा रोगी केँ दैत छैक, आर एना आधा सँ अधिक रोग सिर्फ डाक्टर केर बोली पर ठीक भऽ जायत। मुदा ई लफुआ डाक्टर-डाक्टरनी भेट गेल त सीधा परिचय ओकर बोल-वचन सँ अहाँ केँ भेट जायत। बीमारी घटबाक बदला अनिश्चितताक भय सँ आरो आक्रान्तकारी भऽ सकैत अछि। सावधान भऽ जाउ।
 
*पुनः ओ जाँच एकाधिक नहि – एक बैगे ५-७-१० लिख देत। माने जे बुझि जाउ ओ स्पेक्युलेशन करैत बीमारीक जैड़ धरि पहुँचय लेल एतेक रास जाँच लिख देलक जे प्रासंगिक-अप्रासंगिक किछु भऽ सकैत छैक। चूँकि करोड़ों रुपया लगानी कय केँ ओ डाक्टर बनल अछि, ओकरा पेशेन्ट प्रति दया-माया कम आ अपन लगायल पुँजी असूल करबाक स्वार्थक मास्चर्य बेसी रहैत छैक। तुरन्त चेतू – बरु पूछबो करियौक जे डाक्टर एतेक-एतेक जाँच आ बीमारीक बीच केहेन सरोकार बुझायल। जँ अपन जबाब सँ सन्तोष दैत हो तऽ निश्चित सब जाँच करा लेल जाउ। कि करबय? मरय सँ सब केँ डर लगैत छैक। ताहि हेतु जाँच सब करबाउ आ जाँचो कयनिहार लग लफुवा गिरोह केर लोक सब बैसल रहैत अछि। दबाई कंपनीक दबाव सब पर छैक। दबाई बिकबेनाय सेहो एहि गिरोहक काज छैक। अतः सब तैर सावधानी बरतनाय आवश्यक अछि।
 
*अन्त मे रिपोर्ट देलाक बाद दबाई लिखय समय मे सेहो गोरखधंधा चरम पर रहैत छैक। एहेन कंपनीक दबाई लिखि देत जाहि मे कमीशन बेसी हेतैक। अतः दबाई ओहेन कंपनीक प्रेफर करी जे सच मे अपन सेवा आइ कतेको वर्ष सँ दय रहल अछि, एक स्थापित कंपनी आ जेकर गुणस्तर पर सरकार वा अन्य सर्टिफिकेशन एजेन्सीज (प्रमाणीकरण निकाय) द्वारा सत्यापित (एप्रूव्ड) होएक तेहेन कंपनीक दबाई ई सब कम लिखैत अछि। एहि सब विन्दु पर स्वयं चेतनाक जरुरत अछि सेवाग्राही मे।
 
*अनेरौ अस्पताल मे भर्ती होयबाक लेल त्रास देखायत। आब्जर्वेशन केर अवस्था कहिकय वा रेगुलर चेक आ दबाई बदलबाक आकस्मिक अवस्था देखा ओ अस्पताल मे अपनहि नजरि मे भर्ती होयबाक दबाव बनायत। अतः रोगक आक्रामकता आ अपन सहनशीलता आदिक अवस्था देखैत अपन विवेक सँ सेहो निर्णय लेब जरूरी होएत छैक। अन्यथा कतय-कतय पुँजी काटत ई बुझबो नहि करबैक आर लफुवा चिकित्सक समूह एहि युग मुताबिक अहाँ-हमरा शिकार बनबैत रहत। सावधान!
 
एखन संछेप मे हमरा ई किछु अत्यन्त महत्वपूर्ण विन्दु सब देखायल। किछु अहाँ सब सेहो मोन पाड़ि दी। लेख मे जोड़ि देबैक। आर, आध्यात्मिकताक संसार मे आत्मशक्ति सब रोगक प्रथम निदान होयबाक मूल सिद्धान्त मुताबिक ई कहि दी जे सब बीमारीक इलाज परहेज मे अछि। परहेज सँ जीवनचर्या निबाहब तँ जीत अहाँक तय अछि।
 
मैथिली जिन्दाबाद पर एक छोट लेख एहि प्रसंग मेः
http://www.maithilijindabaad.com/?p=11313
 
हरिः हरः!!