मानव जीवन लेल बहुमूल्य

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

बहुमूल्य वस्तु
 
जन्म देनिहाइर माय आ पिताक चरण मे बेर-बेर प्रणाम करैत हुनका लोकनि सँ प्राप्त बहुमूल्य जीवन केँ बुझैत, मनन करैत आजुक ई लेख ‘बहुमूल्य वस्तु’ आरम्भ कय रहल छी।
 
बहुमूल्य परिजन – समस्त सम्बन्ध भाइ-बहिन, काका-काकी, बाबा-बाबी, दीदी-पीसा, मामा-मामी, मौसी-मौसा – सभक स्नेह आ पालन-पोषण जे हमरा समान एकटा बहुमूल्य मनुष्य केँ पृथ्वी पर सहारा भेल, ई सब बहुमूल्य छथि।
 
बहुमूल्य छथि ओ हर गुरुदेव जे ज्ञानक प्रकाश आ अपन सामर्थ्य केँ बढेबाक पाठ सिखौलनि। एक-एक वस्तु बहुमूल्य अछि जेकरा देखि हम प्रेरित भेलहुँ, किछु नव जानकारी प्राप्त केलहुँ। प्रकृति, नियति आ नीति – सब किछु बहुमूल्य अछि जे हमर ज्ञान, अनुभव आ अनुभूति सब किछु केँ बहुमूल्य बनौलक।
 
एक-एक मित्र भेल बहुमूल्य, ओकर समय, संग आ समर्थन सँ सेहो हमर सामर्थ्य बढैत रहल। शिक्षा, संस्कार, शालीनता आ शैली – सब किछु थिक बहुमूल्य जे जीवनक हरेक क्षण आ पल केँ ओकर मूल्य मात्र बुझिकय आगू बढबाक मार्गदर्शन देलक।
 
समय जे भेटल अछि जीवन जियय वास्ते ईहो थिक बहुमूल्य, कारण हम बुझैत छी जे एहि लोक मे जँ समयक सदुपयोग मनुष्य नहि केलक तऽ ओकरा सिर्फ पछताबा टा पैइर लगलैक। जखन कि जीवनक उपलब्धि होइत छैक अपन प्रसन्नता आ आत्मसन्तुष्टि संग जीवन-चक्रक प्रत्येक अंग-प्रत्यंग लेल प्रसन्नता आ सन्तुष्टि। ताहि लेल समय केर सदुपयोग सँ पैघ मूल्यवान् अन्य किछु नहि थिक। कहबियो छैक – समय बड़ा बलवान्!
 
एक पंक्ति मे कहय चाहब जे बहुमूल्य हरेक ओ वस्तु थिक जे एक बहुमूल्य दृष्टि सँ देखल जायत। यानि, हम-अहाँ बहुमूल्य तैँ हमर-अहाँक हरेक वस्तु बहुमूल्य!
 
आब एकटा खिस्सा कहब – ई दृष्टि केर बात पर मोन पड़ि गेल अछि। एकटा चरबाहा कोनो दिन हरियर चश्मा पहिरि घास काटय गेल। चूँकि चश्मा हरियर रहैक, ओकरा पाकलो घास हरियरे देखेलैक। ओ सब पाकले घास काटि गाय केँ खाय देलक। गाय कतहु पियर-पाकल घास खाय? कनेकाल मे चरबाहा चश्मा उतारि असलियत देखि चौंकल, अरे ई कि! हम त सारा घास पाकल काटि अनलहुँ आर तैँ गाय ओ घास नहि खेलक। तखन एकटा सूझ दिमाग मे एलैक, ओ वैह चश्मा गाय केँ सेहो पहिरा देलकैक। गाय सेहो कनेकाल एम्हर-ओम्हर ताकिकय नीचाँ तकैत अछि त देखलक जे ई त सबटा हरियर घास सोझाँ परैसकय राखल अछि आ हम एम्हर भूखे बिलबिला रहल छी। ओहो चपर-चपर वैह पकलहबा घास खाय लागल… कनेकाल मे स्वाद मे फर्क पड़लैक त झमारिकय चश्मा फेंकि अपन गलतीक अनुभव ओहो केलक। परञ्च आँखि पर पड़ल चश्माक रंग – यानि विभिन्न अर्जित ज्ञान सँ भेटल अन्तर्दृष्टि आ स्थूल दृष्टि (चक्षु) अनुरूप हरेक वस्तु देखल जाएछ आर ओकर मूल्यक आकलन ताहि तरहें हम-अहाँ करैत छी।
 
आब, अन्त मे – अपन पिता स्व. रघुवर नारायण चौधरी केँ स्मृति मे अनैत हुनकर स्वाध्याय सँ प्राप्त अत्यन्त मूल्यवान् वस्तु अपनो लोकनि केँ परोपकारक भावना सँ देबय लेल प्रेरति भेल छी। ई प्रेरणा अहु लेल जे हमर आजुक स्वाध्याय मे यैह अनमोल वस्तु स्व. मदनमोहन मालवीयजी द्वारा श्रीहनुमानप्रसाद पोद्दारजी केँ कहियो देल गेल छल। संभवतः हमर पिता सेहो एहि दृष्टान्त सँ एहि बहुमूल्य वस्तुक प्राप्ति करैत हमरा आइ सँ ३१ वर्ष पूर्व देने छलाह। ध्यानपूर्वक ई बहुमूल्य वस्तु निम्न कथाक माध्यम सँ प्राप्त करूः हमर पिताक अतिप्रिय कल्याण मे वर्णित कथा चूँकि हमर दृष्टि मे आइ पड़ि गेल अछि, ताहि हेतु हुनकर देल बहुमूल्य वस्तु हुनका प्राप्त कथाक रूप मे अपने समस्त पाठक सुधिजन लेल राखि रहल छी।
 
“प्रातःस्मरणीय पूज्यपाद महामना श्रीमालवीयजी सँ हमर परिचय लगभग सन् १९०६ सँ छल। ताहि समय हम कलकत्ता मे रहैत रही। ओ जहिया-जहिया ओतय अबैथ, तहिया-तहिया हम हुनकर दर्शन करी। हमरा पर शुरु सँ अन्त धरि हुनकर परम कृपा रहल आर ओ उत्तरोत्तर बढैत गेल। हुनका संग कुटुम्ब जेहेन सम्बन्ध भऽ गेल छल। ओ हमरा अपन एक बेटा बुझय लगलाह आर हम हुनका परम आदरणीय पिताजी सँ सेहो बढिकय मानैत छलहुँ। एहि नाते हम हुनका ‘पण्डितजी’ नहि कहि सदिखन ‘बाबूजी’ टा कही। ओ एक बेर गोरखपुर आयल छलाह आर हमरे संग दू-तीन दिन रुकल छलाह। हुनकर एलाक दोसरे दिन भेने हम हुनकर चरण मे बैसल रही। ओ तखन अकेले छलाह। बड़ा स्नेह सँ बजलाह – ‘भाइ! हम तोरा आइ एकटा दुर्लभ तथा मूल्यवान् वस्तु देबय चाहैत छी। हम ई अपन माय सँ वरदानक रूप मे प्राप्त कएने रही। बड़ा अद्भुत वस्तु थिक। केकरो आइ धरि नहि देलहुँ, तोरे दय रहल छी। देखय मे चीज छोटे-सन देखेतौ, मुदा छैक महान् – वरदानरूप।’
 
एहि तरहें प्रायः आधा घण्टा धरि ओ ताहि बहुमूल्य वस्तुक महत्तापर बजैत गेलाह। हमर जिज्ञासा बढैत गेल। हम आतुरता सँ कहलियैन, “बाबूजी! जल्दी करू, कियो आबि जायत।”
 
तखन ओ बजलाह – ‘लगभग चालीस वर्ष पहिनेक बात थिक। एक दिन हम अपन माय लग गेल रही आर बड़ा विनयपूर्वक हम हुनका सँ ई वरदान मँगलहुँ जे हमरा अहाँ एहेन वरदान दियऽ जाहि सँ हम कतहु जाय त सफलता प्राप्त करी।’
 
‘माताजी स्नेह सँ हमर माथपर हाथ राखिकय कहने छलीह – “बच्चा! बड़ा दुर्लभ चीज दय रहल छी। अहाँ जतय कतहु जाउ, तखन जाय समय ‘नारायण-नारायण’ उच्चारण कय लेल करू। अहाँ सदिखन सफल होयब।” हम श्रद्धापूर्वक माय सँ माथ पर ई मंत्र लय लेलहुँ। हनुमानप्रसाद! हमरा स्मरण अछि, तहिया सँ आइ धरि हम जखन-जखन चलबाक समय ‘नारायण-नारायण’ उच्चारण करब बिसरलहुँ, तहिया-तहिया असफल भेलहुँ अछि। नहि तऽ हमर जीवन मे चलैत समय ‘नारायण-नारायण’ उच्चारण कय लेबाक प्रभाव सँ कहियो असफलता नहि भेटल। आइ ई महामंत्र, हमर मायक देल परम दुर्लभ वस्तु तोरा दय रहल छी। तूँ एकर लाभ उठबिहें।’
 
एना कहिकय महामना गद्गद् भऽ गेलाह। हमर हुनक वरदान माथ चढाकय स्वीकार कयलहुँ आर एहि सँ बहुत लाभ उठेलहुँ।”
 
– श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार
 
अस्तु! आजुक एहि लेख मे बहुमूल्य वस्तु देबाक क्रम मे बहुत रास कथा कहिकय अपने लोकनिक बेसी समय लेल – परञ्च लक्ष्य यैह छैक जे परोपकार सब सँ पैघ धर्म आ कर्म होएछ, जाहि सँ अपना केँ सुखी करबाक संग-संग अपने लोकनि सेहो सुखी भऽ रहल छी, बस एतबे आत्मसात करैत ई राखल अछि। अपन सुझाव व प्रतिक्रिया देबाक संग जँ नीक लागय तऽ एकरा आरो लोक संग शेयर करब नहि बिसरब।
 
हरिः हरः!!