विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
मैथिली मचान वर्सेज रियल मचान
“मैथिली मचान” पर एखन नेपालक मैथिलीभाषी जनमानस मे खूब चर्चा भऽ रहल अछि। तरह-तरह केर समीक्षा चलि रहल छैक। कतहु सन्देह त कतहु असन्तोष, कतहु त्याग आ समर्पण त कतहु आमन्त्रण तक नहि भेटबाक बात आदि पर विभिन्न चिन्हल-अन्चिन्हल व्यक्तित्व सभक विचार पढय लेल भेटि रहल अछि। एम्हर मैथिली रंगकर्मी कमल मंडल सेहो मचान केर मौलिक स्वरूप वला कतेको रास फोटो एहि बीच फेसबुक सँ पोस्ट करैत आबि रहल छथि। अत्यन्त मौलिक स्वरूप, मूल वासीन्दा द्वारा मचानक उपयोगिता केँ झलकबैत एहि मचान केँ ‘मैथिली मचान’ सँ बेसी नीक आ मौलिकताक रक्षक कहल जा रहल अछि। बकौल कमलजी “गामक मचान पर सङ्गीत साधक नारायण खङ अा बउवालाल खङ, ससिया महाराज अा सलहेस केर गाथा खण्ड खण्ड सात दिन सात राति मृदङ बजाकय कहैत रहैछ। औंठा छाप रहिताे बड़े-बड़े विद्वान् पण्डित सब हुनकर मुँहसँ गाथा सुनकलेल अातुर रहैय’। महीनामे २० दिन अपन कार्यक्रम दैत रहैय’।” सच मे, कमलजीक ई सन्देश मौलिकता प्रति नीक ध्यानाकर्षण मे सफल भेल अछि, लेकिन एकर सन्दर्भ ‘मैथिली मचान’ सँ जोड़िकय काठमांडूक भृकुटि मंडप मे कयल गेल आयोजन पर ब्राह्मणवर्गक वर्चस्वक आरोप लगेनाय उचित नहि लागल।
सोच मे परिवर्तनक आवश्यकता
सोच मे परिवर्तन एहि लेल आनबाक चाही जे वर्तमान ग्लोबल फेमिली केर परिवेश मे ‘मचान’ शब्दक प्रस्तुति मौलिक स्वरूप मे कतहु स्वीकार्य नहि होयत, गरीबी उन्मूलन लेल प्रयास करबाक नैतिक भार हमरे-अहाँपर राज्यक भार जेकाँ भार आइ बेसी बनि गेल अछि। आब गुदड़ी-केथरी आ बाँसक फट्टा सँ निर्मित मचानक शोभा गामहु मे आउटडेटेड भऽ गेल छैक, प्लास्टिकक कुर्सी, सोफा सेट, व्हील चेयर, आदिक जमाना आबि गेल छैक। गामहु केर लोक आब डायनिंग टेबल पर भोजन करब पसीन करैत छैक। लेकिन मैथिली मचान जाहि तरहें राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अहाँक बाजार सँ बाहरक पुस्तक पाठक धरि पहुँचेबाक संग-संग सार्थक विमर्श लेल मंच दैत अछि, वीडियो बनाकय डकुमेन्टेशन कय रहल अछि, सर्जक लोकनि केँ एकठाम गोलियाकय मैथिलत्वक संरक्षण-संवर्धन-प्रवर्धन लेल चिन्तन करबाक अवसर दैत अछि, ताहि अर्थ मे मचानक मौलिक रूप पर घुरब शोभा नहि दैत अछि।
मैथिली मचान केर परिकल्पना सँ बेसी लोक अपरिचित
स्पष्टतः ‘मैथिली मचान’ केर विषय मे सब केँ सब बात बुझल नहि छन्हि, सन्देह, अविश्वास आ आशंकाक मूल कारण ई बात थिकैक। काठमांडू मे मैथिली मचान मे सिनेहबंध शब्द सेहो जुड़ि गेलैक। दिल्लीक विश्व पुस्तक मेला मे जे सिर्फ मचान केर व्यापक आ आध्यात्मिक प्रयोग मे मैथिली भाषाक पोथी आ पाठक केँ जोड़बाक अनुपम डेग उठायल गेल छलैक ताहि मे ई सिनेहबंध शब्द काठमांडू अबैत-अबैत प्राध्यापिका डा. सविता झा खान व कार्यदल जोड़ि देलखिन।
आब सिनेहबंध केकरा सब केँ मचान पर राखिकय कयल जाय नेपाल मे…. सवाल एतय पहुँचल। नेपाल मे मैथिली मचान पर सिनेहबंध लेल संयोजनक भार युवा सामाजिक अभियन्ता निराजन झा पर देल गेलन्हि, नामक सूची हमरो सँ मांगल गेल छल आर हमहुँ अपन परिचितिक स्मृति सँ किछु नाम पठौने रहियैन। आयोजन स्वयं द्वारा चयनित नामक सूची पठौने छलथि, आर हमरा जे छूटल देखायल से सब नाम देने रहियैन। कुल मिलाकय ६ टा सत्र रहैक, ८ मई हमरा संग भेल वार्ता अनुरूप मात्र ५ गोट विषय अन्तिम रूप मे नियारल गेल छलैक। हमर सुझाव डॉ महेंद्र नारायण राम, डॉ बुचरू पासवान, डॉ मिथिलेश पासवान, युवातुर में डॉ सुरेश पासवान, डॉ पंकज झा, निक्की प्रियदर्शिनी, आदि भारत सँ तथा नेपाल दिस सँ महिला लेखिका में पूनम झा, विभा झा, युवा कवि-उद्घोषक विद्यानन्द बेदर्दी, अभियानी-पत्रकार श्यामसुंदर यादव, श्यामसुंदर शशि, दिनेश यादव, सीताराम अग्रहरि, अमरेन्द्र यादव, राम नारायण सुधाकर, कर्ण संजय, रामरीझन यादव, पूर्णेन्दु झा, सुजीत झा, अयोध्यानाथ चौधरी, कमल मंडल, रोशन जनकपुरी, वासुदेव लाल दास, डॉ योगेंद्र प्रसाद यादव, राम दयाल राकेश, एस सी सुमन, ताराकांत मिश्र – हिनका सभक अलावे आरो-आरो व्यक्तित्व जिनकर सूची ओहो सब अपनो सँ बनौने रहथि तिनका सभक वास्ते एकटा आम आमंत्रण पत्र हिनका सब केँ भेटन्हि, विशेष सहभागिता लेल विशेष आमंत्रण विशेष व्यक्ति सब संग विषय मुताबिक राखबाक अनुरोध कएने रहियैन। आयोजक भारतक दिस सँ बहुत रास विद्वान् तथा नेपालहु दिस सँ बहुत रास लोकक नाम पहिने पठा देने छलथि। बस आरो किछु नाम हुनका लोकनिक सूची मे दय देलियैन, हलांकि ई बुझल छल जे सत्र ६ टा मात्रा रहतैक त मंचीय विमर्श लेल बामोस्किल ३० गोटा दुनू देशक मिलाकय सहभागिता लेल आमंत्रित भऽ सकथिन।
नेपाल सँ मुख्यतया डा. सी. के. लाल, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, राजेन्द्र विमल, रमेश रंजन झा, राम भरोस कापड़ि भ्रमर, परमेश्वर कापड़ि, डा. रामावतार यादव, करुणा झा, प्रवीण नारायण चौधरी, प्रशान्त झा, राज कुमार महतो, दीपेन्द्र झा आ निराजन झा केर नामक सूची आयोजक स्वयं तय कयने छलाह। बाद मे पुनः आदरणीय प्रेमर्षि भाइजी आ निराजन झा केर सल्लाह सुझाव सहित बीच-बीच केर निर्णय आयोजनकर्ता लेलनि ई बुझय मे आयल। आब एहि मे कोनो निर्णय जाति देखिकय लेल गेल आ कि केकरो नाम जातीय व्यवस्था अनुरूप हँटायल गेल ई सब बात निराधार आ बेतुका अछि, कारण ८ मई सँ लगातार एहि दिस हमर ध्यान बनल रहल छल। ई पूर्णरूपेण गलत आरोप लगेबाक नियति होयत जँ हम-अहाँ अपन तर्क आ कपोलकल्पित आकलन-व्यकलन सँ एहेन बात बुझैत छी। सहभागी विमर्शी लोकनिक टीए, डीए, भत्ता-मानदेय आदिक नियार सेहो छलन्हि जँ कोनो ठोस प्रायोजक उपलब्ध रहितैक… लेकिन आखिरी समय मे एहि लेल कोनो सकारात्मक निर्णय नहि भेटबाक कारण सब सहभागी अपन-अपन खर्च पर एबाक अनुरोध स्वीकार कय काठमांडू पहुँचि गेलाह। संगहि हनुमान जेकाँ राम-जानकीक दूत बनिकय रहबाक बात सेहो भेल जे जँ कियो नहि आबि पेता त सत्र केँ खाली नहि जाय देल जायत। कतेक जोगार सँ सब बात योजना बनल आ तखन मैथिली मचान सजल।
हरिः हरः!!