– – -गीत- – –
कहऽ हो विधना, ई तु कि केलह?
दु शरीर एक जान, अलग क’ देलह॥
जैरके छाउर भेलै, सजल सब सपना
सजनी हमर गेलै, दोसरके अङ्गना
विपैत पड़ैत खन तु कतऽ छेलह?
कहऽ हो विधना. . .
एक-दोसर मे बाँटै छलौ, मिलकऽ प्यार
स्वर्ग सन छल हमर, प्रेमक संसार
कियै ई बस्तीमे आँखि लगेलह?
कहऽ हो विधना. . .
साँसक रानी बिनु, हेतै कोना गुजारा
नशा बनि गेल छै, हमर सहारा
कोन जनम के बदला हमरा सँ लेलह?
कहऽ हो विधना. . .!!
– विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज, सप्तरी