विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
नारी केँ आगू बढबय मे रूढिवादी विचारधारा सब सँ पैघ बाधक
(मिथिलानी आ मिथिला समाजक रूढिवादी सोच)
परसू एक वैवाहिक उत्सवपर आयोजित गीत-संगीत कार्यक्रम मे अतिथिक रूप मे भाग लऽ रहल छलहुँ। ओतय एकटा महिला कलाकार संग नमस्कार-पाती भेलाक बाद हम कहलियैन, “अहाँक पति आ परिवार केँ धन्यवाद जे कला क्षेत्र मे काज करबाक आजादी देने छथि। सामान्यतः एखनहुँ अपन मिथिला समाज एहि क्षेत्र मे धी-बेटी केँ कम्मे आगू बढबैत छैक।” ओ कलाकार जोर-जोर सँ दहाड़ मारिकय हँसय लगलीह। कहलीह, “सर! एखन हमर विवाह नहि भेल अछि। ई कला आ सिनेमा क्षेत्र मे कार्य करबाक सनक हमर समाज केँ नहि पचैत छन्हि।” विस्मय संग पुछलियैन जे से कोना? ओ कहैत छथि, “हमरा लेल कतहु लड़के नहि बनेलखिन भगवान्। जे भेटितो छैक से हमर पेशाक बारे मे बुझैत देरी नाक-मुंह सिकोड़ि लैत अछि। आब बुझू अपन समाजक सोच। दुनिया कतय पहुँचि गेल आ हम-अहाँ कतय छी।” कनेक आश्चर्य त भेल मुदा फेर हुनकर बाजबाक तरीका एतेक नैचुरल छल जे हुनक सब बात पर विश्वास होबय लागल। कनेक आरो जिज्ञासू बनिकय पूछलियैन, “विराटनगर त बड़ा एडवांस्ड जगह छैक। एतय त पहाड़ी समुदायक धिया-पुता संग मधेशी (तराईवासी यथा मैथिली, भोजपुरी, अबधीभाषी इत्यादि) समुदायक धिया-पुता सब सेहो बहुत आगू देखैत छी। तखन फेर अहाँक ई बात कनी बेसिये अतिश्योक्तिपूर्ण नहि भेल?” ओ चट स जबाब देलीह, “ई सब बात देखय मे भले लागैत हुअय, मुदा पहाड़ी समुदायक तुलना मे मधेशी समुदायक लोक एखनहुँ बहुत पाछाँ अछि।” ओ बहुत रास ठोकल उदाहरण दैत ई सिद्ध कय देलनि जे हमरा सभक समाजक सोच कामकाजी महिला प्रति उदार नहि भऽ सकल अछि, पहाड़ी समुदाय सँ तुलना ब्यर्थ अछि।
मैथिली भाषा तथा संस्कृति केर संरक्षण मे फिल्म केर विकास होयब आइ बहुत आवश्यक अछि। लेकिन फिल्म विकास तखनहि होयत जखन मौलिकता सँ परिपूर्ण मैथिलीभाषी कलाकार सब एहि दिशा मे उत्साहपूर्ण ढंग सँ काज करय। ओहि कलाकार सँ पूछल, “अहाँ फिल्म मे काज करय लेल एलहुँ, आरो लोक सब अपन मैथिलीभाषी केँ अपना जेकाँ फिल्म या कला क्षेत्र मे जीविकोपार्जन करैत देखि रहल छी कि? खासकय महिला कलाकार?” ओ कहली, “फिल्म मे बड़ा सख सऽ काज करय लेल हम एलहुँ, लेकिन भेटल कि? नव रही त सब यूज केलक। आब कियो पुछितो नहि अछि। एहि क्षेत्र मे गिनले-चुनल महिला कलाकार केँ देखलहुँ। अहाँ स्वयं देखि सकैत छी जे कय टा मैथिली फिल्म मे अपन मिथिलाक बेटी कलाकार बनिकय रोल खेलाइत अछि।” एहि कलाकारक हृदय मे बहुत रास टीस छैक। किछुओ पुछलापर सीधे शिकायत आ असन्तोष जतेनाय स्थिति नीक नहि होयबाक स्पष्ट सन्देश दय रहल छल। हमरा लोकनिक अभियानक खिल्ली उड़बैत ओ कहय लगलीह, “अहाँ खराब नहि मानब सर, मुदा ई बताउ जे अहाँ सब स्वयं कतेक धी-बेटीकेँ आगू बढबैत छी? आइ युग अनुरूप नारी समाज केँ संग लय केँ नहि बढब त अहाँ सभक ई सारा कयल धयल पानि मे चलि जायत।” हम बात केँ नहि काटि सकलियैन।
वास्तव मे मिथिला समाज आइयो बहुत रूढिवादी अछि जे अपन बेटी-धी केँ दुनियाक अन्य संस्कृतिक बेटी-धी जेकाँ आगू बढाबय मे हिचकिचाइत य। ई कोनो फिल्म लाइन टा नहि, शहर मे स्वतंत्र जीवन जियैत केकरो बेटी-धी कोनो सम्मानजनक काजो कय केँ अपन जीविकोपार्जन करत त ओकरा पर समाजक कूदृष्टि पड़य मे समय नहि लगैछ। बेटीक स्वतंत्रता केँ अपन समाज आइयो सहजहि पचा लेत ई अविश्वसनीय बात थिक। फिल्म लाइन सँ शुरू कय आइ रेडियो आ मनोरंजनक मंच सब पर हास्य कलाकार केर रूप मे अपन अभिनय प्रस्तुत कय रोजी-रोटी मे लागल ऊपर चर्चित बेटी केँ समाज खुलेआम आरोप लगबैत अछि। अपन चरित्रपर केकरो सवाल नहि उठैत छैक, मुदा एहि तरहें संघर्ष कय रहल कलाकार महिलापर सीधा वेश्यावृत्ति मे लागल रहबाक आरोप तक लगा दैत छैक। नीक-नीक लोक अपन पापाचार बिसैर एहेन बढि रहल महिला मादे कहता, “एकर रोजी-रोटी अपन देहक ब्यापार कय केँ चलैत छैक।” आदि। जखन कि एकटा सम्भ्रान्त कुल-परिवारक ई बेटी अपन कुमारित्व प्रमाणित करय खातिर सीता जेकाँ अग्निकुण्ड मे परीक्षा तक देबाक लेल सदिखन तैयार रहबाक बात करैछ, लेकिन एहेन वीभत्स आरोप आ समाजक लोक केर नजरिया सँ आहत ओ स्वयं स्वीकार करैत अछि जे समाजक नजरिया केँ बदलनाय ओकर काज नहि, ओकर काज ओ अपन संघर्षक संग जीवनयापन करैत परिवारक मान-मर्यादा, पिता-भाइ केर प्रतिष्ठा आ परिस्थिति केँ बुझैत आगू बढैत रहनाय टा थिक। एहि कलाकार केर मन मे ई तकलीफ जरूर छैक जे आइ ओकरा संग विवाह करबाक लेल ओकर अपन समुदायक कोनो परिवार तैयार नहि अछि, ई रूढिवादिता नहि त दोसर कि?
पेशा सँ वकील आ गैर सरकारी संस्था आदि चलेबाक अनुभव रखनिहार एक अनुभवी व्यक्तित्व स्थिति मे धीरे-धीरे सुधार एबाक बात कहैत छथि। ओ बहुत रास उदाहरण गनबैत कहैत छथि जे फल्लाँ बाबूक बेटी पढली-लिखली आ अन्तर्जातीय विवाह करैत अपन सक्षम पति संग विदेशक धरतीपर जा कय परिवार बसेलीह। ओ भले घुरिकय कहियो पुनः अपन पिताक घर नहि आबथि, लेकिन मिथिलाक ओहो बेटी आइ संसार मे अपन अलगे झंडा फहरेने छथि। पुनः दोसर उदाहरण दैत ओ कहलनि जे देखू हमरा नजरि मे एक गोट मिथिलानी महिला छथि जे गुजरातक राजधानी अहमदाबाद मे अपन निजी ब्यापारिक प्रतिष्ठान चला रहली अछि, गामघर सँ बड बेसी मतलब भले नहि होइन मुदा अहमदाबाद केर रसूखदार समाज मे हुनकर अपन अलगे प्रतिष्ठा छन्हि। हिनका द्वारा देल गेल दू गोट उदाहरण मे महिला आगू बढली ई बात त भेटल मुदा अपन मिथिला समाजक सोच मे रूढिवादिता कायम रहबाक स्थिति ओहिना भेटल। यदि कियो अन्तर्जातीय विवाह कय लेलीह त फेर अपन माता-पिता आ नैहराक समाज सँ भेट तक करय नहि अबैत छथि…. ई कि संकेत करैत अछि? अहमदाबाद मे कियो बिजनेस क्लब केर एक्जीक्युटिव बनिकय अलगे शानो-शौकत मे छथि, लेकिन अपन गाम-घर मे हुनका आइयो किनको बेटी त किनको पुतोहु आ नारीक रूप मे पुरुषक पिछलग्गू मानल जाएछ – त कहू मिथिला समाजक स्थिति मे रूढिवादी विचारधारा कोन स्तर पर अछि?
एखनहि कनीकाल पहिले एक मिनू चौधरी अपन परिचय मे लिखलनि अछि जे ओ वडोदरा मे सेफ (Chef) छथि, हुनकर अपन बेकरी चलैत छन्हि। शुरू मे काफी संघर्ष करय पड़लन्हि मुदा आइ आधा सँ ऊपर वडोदराक लोक हुनकर बेकरीक गैंहकी छन्हि। मुदा मिनू चौधरी केँ सेहो अपन मिथिला समाज सँ शिकायत छन्हि। ओ परिचय दैते-दैते कहली जे वडोदरावासी हुनकर खूब इज्जत करैत अछि, मुदा मिथिलावासी केर नजरि मे हुनका सम्मान भेटबाक कोनो टा दृष्टान्त हुनका नहि मोन पड़ैत छन्हि। हालहि सम्पन्न राष्ट्रीय महिला नाट्य उत्सव २०७४ विराटनगर मे एक गोट विलक्षण व्यक्तित्वक धनी मिथिलानी विभा झा संग भेंट भेल छल। मैथिली रंगकर्म केर दुनिया मे अपन प्रतिभा सँ चर्चित अभिनेत्री प्रियंका झा केर जेठ बहिन छलीह आ खासकय हुनकहि अभिनय देखबाक वास्ते काठमान्डू सँ विराटनगर अपन हजारों-हजार खर्च कय हवाईजहाज सँ विभाजी एलीह आ सब कलाकार केँ मनोबल बढबैत अपन मिथिला समाजक विभिन्न व्यक्तित्व सब सँ भेंटघाँट करैत मैथिलीभाषी महिला केँ आगू बढेबाक एकटा प्रेरक सन्देश दैत रहलीह। विभाजी नेपालक राजधानी मे सफलतम उद्यमी-व्यवसायीक रूप मे पति ओ परिजनक संग नीक काज कय रहली अछि। प्रियंका त नाट्यकर्मक पितामह कहेनिहार सर्जक रमेश रंजन झाक बेटी थिकीह, स्वयं पिता द्वारा दीक्षित, कलाकार अभिनेता पति द्वारा संरक्षित आगू बढब सुनिश्चित अछिये। परञ्च सामान्य तौरपर समाजक व्यवहार मे रूढिवादिताक दर्शन आइयो – एहि २१म शताब्दी मे मिथिला समाज केँ पाछाँ केने अछि ताहि मे कोनो दुइ मत नहि। एहि लेल उचित जनजागरण कय बेटी शक्ति मे रहल प्रतिभा सँ समाज, संस्कृति, भाषा, साहित्य, आर्थिक स्वरूप केर बरक्कति कयल जा सकैछ, ई बुझब आवश्यक अछि।
हरिः हरः!!