पति या पत्नी लेल अपन चरित्रक रक्षा सर्वोच्च धर्म
विचार – प्रवीण नारायण चौधरी
“आइ लव यू – आइ लव यू टू” – सिनेमाक नायक-नायिका बीचक ई डायलाग आब पुरान भेल, आब त सरेआम सोशल मीडियाक मंचपर पति आ पत्नी अपन आपसक प्रेम केँ – वैवाहिक वर्षगाँठ केँ – एक-दोसराक जन्मदिन केँ – विभिन्न अवसरपर एक-दोसराक संग सेल्फी अवसर केँ सरेआम प्रदर्शन करैत रहैत छथि। परञ्च प्रेम आ विश्वास दाम्पत्य जीवनक एहेन धर्म थिक जेकर रक्षासूत्र अपन निष्ठा मात्र सँ मजबूत राखल जा सकैत छैक – ई बुझनाय बहुत जरूरी छैक।
घरवाली सभक सुन्नरे होइत छैक। हरेक पुरुषक स्त्री सुन्दरीये होइत छैक। रंग, कटिंग, नाक-नक्श, आभा – अपन-अपन कनियाँक सबकेँ सुन्दर लगिते छैक। एहि सुन्दरता केँ प्रदर्शन आब सिर्फ अपन मन-आत्मा धरि सीमित नहि रहि मेकप आ खूब ढो़रि-रांगिकय सोशल मीडिया पर समस्त मानव समाज वा मित्रवर्ग धरि पहुँचेनाय कतेक केकरा नीक लगैत छैक, ताहू पर कोनो टिप्पणी लेखकक मर्यादाक बात नहि बुझाइछ। पति-पत्नीक सम्बन्ध यानि वैवाहिक जीवन पर तरह-तरह केर मनोवैज्ञानिक लेख सँ लैत नारी विमर्श आ नारी-पुरुष बीच तादात्म्य स्थापित कयनिहार बड़का-बड़का समीक्षक सभक लेख समय-समयपर भेटैत रहैत अछि। मुदा पति-पत्नीक धर्म आ मर्यादा कोना रक्षित होयत ताहि पर विमर्श नगण्य देखाइछ। आइ जेहेन युग मे हमरा लोकनि जीबि रहल छी ताहि मे आपसी विश्वास केर निर्वाह करय मे बहुत दुविधा, आशंका, अविश्वास, अनिर्णय आदिक स्थिति देखाइत अछि।
नारी घरहि केर सीमा मे बान्हल नहि रहि गेल छथि। आब पुरुष जेकाँ नारी सेहो बाहरी दुनिया मे जीविकोपार्जन करैत परिवारक पुरुष जेकाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाबय लगली अछि। एहेन स्थिति मे नारी आ पुरुष दुनू स्वतंत्र रहिकय गृहस्थी आगू बढबैत छथि। जेना पति छुछुन्दर होइथ त छुछुएनाय आ मुंह मारनाय – ई आदति कोनो पुरुषक छपित नहि रहैछ, तहिना नारीक हिस्साक जीवन मे सेहो स्वच्छ चरित्रक निर्वाह आइ घोर अकाल मे सामाजिक व्यवहार सँ चरितार्थ होइछ। चरित्र निर्माण करब कठिन छैक, ध्वस्त त ई एक मिनट मे भऽ सकैछ। कतेको केश मे घरवाली कनी बेसिये छितराइत रहबाक आदति सँ परेशान रहैत घरवला पर अनेरहु सेहो आरोप लगा दैत छथिन। तैँ कोनो पुरुषक अपन पुरुषार्थ आ कि चरित्र कमजोर पड़ि जाइत छैक से कतहु सँ सही नहि थिक। तहिना, कतेको पुरुष एतेक शंकालू स्वभावक होइत अछि जे अपन स्त्री केँ काज करय लेल बाहर जाइत देखि एना लगैत छैक जेना घरवाली कतहु ओकरा छोड़ि आन सँ संसर्ग नहि बना लियइ। एहि तरहक मनोस्थिति सँ कतेको घर-परिवार उजैड़ रहल अछि आइ।
एक गोट कहाबत छैक न, “मनी इज गोन नथिंग इज गोन, हेल्थ इज गोन समथिंग इज गोन, कैरेक्टर इज गोन एवरिथिंग इज गोन”। अर्थात् टका-पैसा हेरायल त किछुओ नहि हेरायल, स्वास्थ्य हेरायल त किछु अवस्स हेरायल, चरित्र जँ हेरायल त सब किछु हेरा गेल। चरित्रहीनता एकटा खतरनाक रोग होइछ, ई नारी आ पुरुष केकरो भऽ सकैत छैक। जाहि ठाम – जाहि घर मे ई रोग लागल ओतय सुमति, सम्पत्ति, सद्भाव, स्वच्छता, स्वास्थ्य सभक ह्रास अवश्यम्भावी होइत छैक। अनावश्यक शंका करब सेहो एक तरहक खतरनाक रोग होइछ। जेकरा ई रोग लागल ओकरा मानसिक अवसाद, तानव आ हजारों तरहक उल्झन-अल्झन होयब तय छैक। अतः अपन चरित्र मात्र स्वच्छ रखबाक जिम्मेवारी केर यदि पति आ पत्नी दुनू पूर्ण निष्ठा सँ निर्वाह करत त दाम्पत्य जीवन सुखी रहतैक।
अपन धर्मपरायण स्त्रीक मुंहें सुनय लेल भेटल एकटा प्रासंगिक कथा मोन पड़ि रहल अछि। शास्त्र-पुराण मे वर्णित एक एहेन पतिव्रता नारी भेलीह जे अपन पतिक सब इच्छा केँ पूरा करय लेल सदिखन सर्वस्व निछाबड़ करबाक लेल तत्पर रहैत छलीह। हुनक पति मे युवाकालहि सँ वेश्यागमन केर एक भयंकर खराब रोग लागि गेल छलन्हि। ओ पत्नी सँ चोराकय वेश्यालय अपन कूसंगी सभक संग जाइत रहैत छलाह। ई बात पत्नी नहिये कहियो बुझलखिन, आ ने ओ बुझबाक कथमपि प्रयत्न कयलखिन। ओ विशुद्ध रूप सँ अपन धर्मक रक्षा मे रत रहली, पतिक सेवा मे सदैव अपना केँ एक दासी जेकाँ रखैत रहलीह। अन्त मे हुनकर पति केँ कोनो असाध्य रोग भऽ गेलन्हि। पाप सँ घेरायल पतिक शरीर गलि रहल छलन्हि। परन्तु पति केर सेवा करैत-करैत ओ पतिव्रता नारी सदिखन हुनक जान बचेबाक लेल ईश्वर सँ प्रार्थना करैत रहैत छलीह।
एक दिन हुनकर पति केँ ओहनो अवस्था मे वेश्यागमनक इच्छा भेलन्हि, ओ अपन मृत्युक समय लगीच देखि पत्नी सँ ई इच्छा जाहिर कयलनि। पत्नी हुनकर एहि जीर्ण अवस्था मे एहेन मनोदशा आ मनसा जे वेश्यागमन करता तेकरा पूरा करबाक लेल स्वयं अपनहि सँ वेश्यालय पहुँचेबाक वचन देलीह। रातिक अन्हार मे आन सब सँ नजरि बचाकय अपनहि कोरामे उठाकय ओ पतिव्रता नारी अपन रोगी पतिकेँ वेश्यालय दिस लय जा रहल छलीह। ताबत रस्तामे पतिक पैर सँ अन्हार मे नहि देखि सकबाक कारणे कोनो ऋषि छुआ गेलाह, क्रोधित भऽ ओ श्राप देलनि जे जाउ अहाँक ई पति आब काल्हिक सूर्योदय नहि देखि पेता। बेचारी पतिव्रता नारी ऋषि सँ शापविमोचन हेतु निवेदन कयलीह, परञ्च ओ क्रोध सँ तप्त क्षमा करय सँ मान कयलन्हि। ताहिपर ओ स्त्री अपन पतिव्रत शक्ति केर अन्तिम प्रयोग करैत ऋषि सँ साफ-साफ स्वर मे कहलीह जे यदि हमर धर्म अपन पतिक सेवा मे सत्य अछि त काल्हि सूर्योदय केँ हमर अंगूष्ठा रोकि दियइ।
ऋषि सेहो हड़बड़ेला, मुदा दुनू अपन-अपन शक्तिक उपयोग लेल वाचा कय लेने छलाह। भोर होइत समय ओहि नारीक अंगूष्ठा सँ सूर्य झँपायल रहलाह। चारूकात हंगामा होमय लागल। पहर बितैत गेल परञ्च सूर्यक कतहु बाट नहि! बात त्रिलोकी सत्ताधारी परमपिता परमेश्वर लग पहुँचल। समस्त देवतालोक मे एहि बातक शोर भऽ गेल। आर, भगवान् विष्णु ओतय पहुँचलाह, सब स्थिति देखलनि। धर्मक जाँच केहेन होइत अछि तेकर अजीब स्थिति देखय योग्य छल। भगवान् ओहि पतिव्रता नारी सँ वचन देलनि जे अहाँ सूर्योदय होमय दी, ऋषिक शाप मुताबिक अहाँक ई पापपूर्ण पतिक मृत्यु होयत आर फेर सुवर्णमय निरोग पति अहाँ केँ वापस भेटत। ओ नारी ईश्वर कृपा पाबि प्रसन्न भेलीह आर भगवानक वचनानुसार हुनका पुनः कायाकंचन भेल पति वापस भेट गेलन्हि। पतिक सिर झुकल छल, परञ्च पतिव्रता स्त्रीक शक्ति सँ भगवान् विष्णु केर चरण मे प्रणाम कय पुनः एहि शरीरक सदुपयोग आ धर्म-कर्म मे निष्ठा रखबाक संकल्प लय दुनू प्राणी शेष जीवन सुखमय ढंग सँ व्यतीत कयलन्हि।
एहि कथाक सार मे पति या पत्नी अपन-अपन धर्मक रक्षा करय, एक-दोसर पर अनेरहु सन्देह नहि करय आ नहिये एहि तरहक स्थितिक कल्पना तक करय जे कोनो समय केकरो धर्म भ्रष्ट होयबाक स्थिति अबैक। अस्तु!
हरिः हरः!!