विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी

एहेन संक्रमणक समयमे किछेक महत्वपूर्ण स्रष्टा अपन मातृभाषाक रक्षा हेतु सर्वमान्य आ जनगणमनक कंठमे विराजित विद्यापतिक सहारे मैथिली आन्दोलन आरम्भ कयलन्हि – डा. काञ्चीनाथ झा किरण होएथ किंवा डा. लक्ष्मण झा आ कि बाबू जानकीनन्दन सिंह वा मैथिल दधीचि भोला लाल दास वा समकक्षी-सहयोगी प्रबोध नारायण चौधरी समान प्रखर प्रगतिवादी विचारक; मधेपुरक विद्यालय आ छात्रावाससँ दरभंगा, पटना, कोलकाता, वाराणसी, इलाहाबाद, जयपुर वा कोनो ओ स्थान जतय ताहू युगमे विकास ओ पूर्वाधारक निर्माणकार्यमे मैथिल जनमानसक उपस्थिति महत्वपूर्ण छल – सब तैर मैथिली आन्दोलन अपन पाँखि लगौने सृजन, प्रकाशन, व्यवस्थापन, मंथन आदि क्रियाकलाप करब आरम्भ कय देलक। किरणजी व समकक्षी लोकनिकेँ विद्यापति स्मृति पर्व समारोहक संस्थापक कहल जाएछ आर सच देखल जाय त आइयो धरि विद्यापति एकमात्र मिथिलाघरक ओ बिचला खंभा थिकाह जिनकर चारूकात सर्वजातीय, सर्ववर्गीय, सर्वहारा समाज सँ सामर्थ्यवान ओ समृद्ध मैथिल जनमानसकेँ एकजूटताक आसार नजरि पड़ैछ। ताहि संक्रमण युगसँ शुरुआत पबैत आब दशकों बाद विद्यापति समारोह आम मिथिलाक गाम सँ बहुत बेसी देशभरिक नगर-महानगर-उपनगर आदि मे कोन स्तर सँ मनायल जाएछ आर ताहिमे कतेक बैढ-चैढकय मैथिल समुदायक सब वर्ग भाग लैत अपन हेराइत मौलिकता-निजता आ पहिचानक विशिष्टताकेँ जोगेबाक प्रयत्न करैत अछि – से किनको सँ नुकायल नहि अछि। लेकिन एहि बढैत मैथिल जनजागृतिमे कतेको रास दुष्प्रवृत्ति आ दंभी लोकाचारक प्रवेश सँ आलोचनाक बाढि सेहो बढैत जा रहल अछि। विद्यापतिक नाम पर समारोह सवालक घेरामे तखन अबैत अछि जखन आम जनहितक बात छोड़ि केवल आयोजकवर्गक गोटेक मुख्य चेहरा अपनहि स्वार्थमे आन्हर भोजभात कय लोक जुटबैत छथि, मुख्य उद्देश्यक बिना कोनो परवाह केने समारोहक देखाबा आ समाजक सङ्गोरल पूँजीकेँ गलबैत छथि, आरो कतेको तरहक कौचर्यसँ महाकविक नामक दुरुपयोग करैत छथि। एहेन अवस्थामे आलोचना आ निन्दाक भागी बनब कोनो असहज नहि छैक।
वर्तमान राजनीतिक भीड़तंत्रमे फँसि गेल छथि महाकवि
किछुए समय पूर्व बुरारी (दिल्ली) मे विश्व मैथिल संघ द्वारा महाकवि कोकिल विद्यापति केर स्मृति दिवस केर आयोजन भेलैक। अपन आशीषजी चकदह स बुरारी धरिक रथयात्रा करैत दिल्ली पहुँचलाह, आगुए मे सीट सेहो भेटलनि समारोह मे। पहिनहि सँ आमंत्रित भाजपाक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आर बहुत दिवसक बाद जानकीजी केँ मोन पाड़ि ‘किछु कय केँ देखेबा लेल वचनबद्ध’ राजनेता माननीय प्रभात झा राज्यसभा सांसद (पूरा उपाधि लिखय लागब त एकटा स्वतंत्र लेख १००० शब्दक भ जायत) केर सान्निध्य पेबा लेल आशीष सँ पहिने कतेको पूर्वाञ्चली-मिथिलांचली सब बुरारी राजदरबार मे हाजिर छल। केकरो बाम भाग सीट भेटलैक, केकरो दाहिना मे। हँ, एकटा बात त कहब बिसैरिये गेलहुँ…. मिथिलाक लोक जे प्रवासी बनकय दिल्ली मे रहि रहला अछि से आब ओतुक्का अहीरवत् जाट आ पंजाबी सब सँ काफी आगू छथि कारण हिनका लोकनिक एकजुटता काफी रंग अनने अछि, मिथिलाक माटि-पानि सँ सीखल कला सँ कुश्ती मे तेहेन पटकान ई सब मारलनि ओहि शत्रुवत् समुदाय सब केँ जे आब केन्द्रीय मंत्री, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, प्रदेश मंत्री सहित मजदूर नेता, भीखमंगा यूनियनक अध्यक्ष आ ओकर समर्थित राजनीतिक दलक अनेको नेता, तहिना स्लम मे रहनिहार विभिन्न यूनियनक नेता, टोल अध्यक्षक संग मिथिला गृह उद्योगक अमरनाथ मिश्र सेहो बाकायदा अपन अदौरी, तिसियौरी, दनौरी, चरौरी, कुम्हरौरी, बगिया, अँचार, मसल्ला आदि मिथिला उत्पादनक संग ओहि विशाल पंडाल मे उचित जगह पर पहुँचि गेल छलाह। संस्थापक अध्यक्ष हेमन्त झा एवम् हुनकर समर्थित स्वराज इंडियाक सेहो कियो पहुँचले हेथिन, अबाय त रहैन, कतहु डिटेल समाचार नहि पढि सकबाक कारण ‘हेताह’ कहलहुँ – एना एकटा अत्यन्त भव्य आयोजन सम्पन्न भेल अछि।
आन साल त सम्मान कार्यक्रम आ सांस्कृतिक कार्यक्रम मात्र होएत छलैक, मुदा एहि बेर आयोजक द्वारा महाकविक नाम पर उत्सव सम्मेलन मे कवि सब केँ सेहो आमंत्रित केने छलाह। कविता पाठ सेहो भेलैक। मनीष झा बौआभाइ माइक पर बजितो एकदम उच्च आवाज मे सस्वर कविता पाठ कय क्रान्तिक रंग भरि देलखिन। भाइ विमलजी मिश्र एक दहोंदिसिया कवि – दिल्लीक चरम गुटबाज सभक बीच एकटा यैह टा सब पक्षक समर्थकक रूप मे अपन प्रस्तुति रखलाह। दू गोट कविक प्रस्तुति सँ कवि सम्मेलन संपन्न भेल। एहि तर्ज पर उद्घोषक सम्मेलनक एक अघोषित कार्यक्रम सेहो भेल रहय एहि बेरुक महोत्सव मे। ३-३ टा उद्घोषक सहभागी भेलाह। मंच उद्घोषक किसलय कृष्णक बहुचर्चित जोड़ी जानबी झा आ सुप्रसिद्ध राम सेवक ठाकुर उद्घोषक सम्मेलनक सुन्दर प्रस्तुति कयलनि। २-२ गोट जिजान्टिक एंकर बीच एकटा सुकोमल नारीक कतेक चलतनि, ओ अपन खनकदार आवाज पब्लिक केँ सुनेबो केलीह कि नहि…. ताबत कहाँ दिना धुधुक्का उठि गेल छल। १ घंटा धरि बैगपाइपर, हन्ड्रेड पाइपर, रोयल चैलेन्ज, बालान्टाइन्स, व्हीस्की, रम, ३ एक्स आदिक पेट्रोल पंप सब मे अचानक आगि लागि गेल रहैक। पब्लिक, आयोजक – दुनू दिसका पंप मे आगि लागब आ ताहि बीच पूलिस केर १०० नंबर पर कियो अजित कुमार वत्स द्वारा फेसबुक पर देल फोटो जेकाँ फोन कय प्रहरी हस्तक्षेप करेबाक कारणे कार्यक्रमक लाइट, साउन्ड सबटा अफ करा देल गेल छल। तखन त फेर पावर केर बात एलैक आ सभक जननी राजनीति केर रक्षक राजनेता सब ओतय छलाह जे पुलिस केँ कहि देलखिन, “ऐ बहन के घोड़े! जानता नहीं मैं किस पार्टी का हूँ…. कल ही मफलर लगाकर धरना पर बैठ जाऊँगा। चल हँट। प्रोग्राम सब साल होता है। रात भर चलने दे।” तखन फेर कार्यक्रम मे लाइट अन, कार्यक्रम चालू। महाकवि विद्यापति केर सुन्दर स्मृतिगान सहित लोक सब कुञ्जबिहारी मिश्र, माधव राय, सुरेश पंकज, आदि एक सँ बढिकय एक कलाकार सभक प्रस्तुति सँ धन्य-धन्य होएत फेर ऐगला साल अपनो जरलाहा सखक पंप केँ फेर सँ बनबैत ओतय पहुँचबाक संकल्प संग घर गेलाह।
आयोजनकर्तापर भार रहैछ जे आरम्भ कयल गेल परम्पराकेँ निर्वहन हो – मैथिल समुदायकेँ एकजूट बनेबाक कार्य निरन्तर चलैत रहय। परञ्च आयोजनमे जँ भीड़ नहि लागल, राजनेता सब यदि हजारों-हजार लोक सबकेँ ओतय उपस्थित नहि देखता त फेर हुनका अपन आगामी रणनीति सफल होएत नहि देखेतनि – ताहिसँ महाकवि विद्यापतिकेँ एहि भीड़तंत्रक एकटा भगवान् बनाकय आयोजन करब फैशन ओ बाध्यता दुनू बनि गेल छैक। आलोचना कयनिहार एहि विन्दुपर सवाल रखबे करता, परञ्च जाहि अर्थतंत्र अनुरूप वर्तमान मैथिल समुदाय परदेशमे अपन वर्चस्व स्थापित करबाक संघर्ष कय रहल अछि, ताहिमे ई भीड़तंत्रक सूत्र ओकर बाध्यता थिकैक ई बुझय पड़तनि।
विद्यापति समारोहक आलोचना-प्रत्यालोचना
अग्रज कवि ओ साहित्यिक अभियानी दिलीप झा जे मैथिली भाषा-साहित्यक अकाट्य सेवक-संरक्षक छथि ओ ब्यर्थक चिन्ता करैत एहेन कविताक रचना करैत छथि जे हमरा सन-सन कतेको समारोहवादी लोक किंवा अभियन्ताक भैर देह मे आगि लेस दैछ। पहिने ओ रचना पढूः
‘छिन्नमूल’
नगरे-नगरे भ’ रहलए उत्सव
बाबाक मृत्यु तिथिक उत्सव
उद्येश्यहीन उत्सव
पाँचतारा सजाबटि
गदगर ओछाओन
चकचक चद्दरि
जमगर नाचगान
धमगिज्जर भोजभात
भ’ रहलैया महोमहो
बिसपी सँ उपटि
बनगाम सँ बिलटि
वंशज लोकनि
बुरारी सँ राजनन्दगाम
मुम्बइ सँ मालदह
धरि क’ रहल छथि उत्सव
भाई! बरखीक उत्सव एना किया मना रहल छी?
बरखी त’ पुरखा केँ श्रद्धा निवेदित करबा लए
हुनक कयल किर्तिके मोन पारबा लए
शेषकाज केँ आगू ल ‘जयबा लए
संकल्पक दिन थिक
तखन फेर ई तामझाम
ई आल-जाल
अहाँ कहब ! हमरा लोकनि उत्सवधर्मी छी
तैँ मना रहल छी उत्सव
मनाउ! मनाउ!
कखनो काल लगैया अपन जड़ि उकन्नन
हेबाक उत्सव त’ ने मना रहल छी
हमरालोकनि
की एहि सँ बाचल रहत हमर थित-वित!
जँ रहबो करत त’
आसन त’र मे झाँपल
पैर त’र मे जाँतल
छिन्नमूल सँ बेसी नहि!
आर ई कविता अबैत देरी एक सँ बढिकय एक जमीनी योद्धा – मिथिला सर्जक लोकनि केँ रेशमी बाई केर कोठा परका एहसानमन्द मुजड़ा दर्शक जेकाँ वाह-वाह करैत आरो खौंत फेंक दैछ।
आइ, जैड़ कोना मजबूत होयत ताहि पर कलम मे तागत नहि पहुँचैछ, उर्वर मिथिला भूमि उस्सर भऽ गेल…. १०० मे १% केँ सेहो रोजगार नहि रहि गेल…. आब कियो प्रवासी बुरारी आ किराड़ी मे महाकवि केर सुमिरन दारू पीबिकय करय चाहैत छथि त छिन्नमूल भऽ गेल ई ब्यर्थक चिन्ता बुझायल। बरु, बुरारी-किराड़ीक लोक गामहु मे उत्सवधर्मी बनि विद्यापति सहित सभ ऐतिहासिक विभूतिक स्मृति-गानक संग-संग वर्तमान जातिवादिताक कोंढी-कुष्ठ फूटल विखंडित समाज केँ कोना जोड़ल जा सकैछ, राज्य मे अपन संविधान-सम्मानित भाषा केँ कोना राजभाषा बनायल जा सकैछ ताहि पर बेसी चिन्तन आ किछु आन्दोलनो होएत से पामर पेन मे अनय जाउ।
प्रवासक जीवन बहुत कठिन छैक। ओतय ओकरा समाज मे कोना वर्चस्व आ जाट समुदायक दमन-शोषण सँ मुक्ति भेटलैक, ताहि मे विद्यापति व मिथिला विभूति कतेक सहायक भेलखिन – से कनेक शोध गहिंराउ, त पता लागत। एहेन नहि छैक जे साहित्यिक गतिविधि मे अपने या मधुबनीक धरातल कतहु सँ कमजोर छी। हम त देखि रहल छी, बेनीपट्टी, उच्चैठ, रहिका, सौराठ, मधुबनी, कोइलख, सिजौल, मेहथ, झंझारपुर, मधेपुर, लखनौर, प्रसाद, ठाढी – एक सँ बढिकय एक स्तम्भ सब अछि मधुबनी मे। मुदा जहाँ तक बात छैक ‘मूल समस्या’ केर – मूल मिथिलत्वक प्रसार जन-जन मे ताहि पर हम सब कतय चूकि रहल छी – आइ राज्य हमरा सभक अवहेलना कियैक केने अछि…. ताहि दिशा मे आलोचकक कलम भोत्थर अछि।
चूंकि नवतूर सभ विस्थापित भेला अछि आ विस्थापनक कष्ट भोगक मध्य बाबा विद्यापतिक सम्बल पकड़ि एकठाम होइत छथि…… मनोरंजने बहन्ने अपन एकजूटताक प्रदर्शन क’ पबैत छथि त’ अहु मे किछु सार्थकता देखाइत अछि……!! – सहिये कहलनि सर्जक महाकान्त। कविक चिन्ता कोनो नाजायज छन्हि से बात हम नहि। करब त करब कि? जनकक सन्तान छी। विदेहपंथ मूल धर्म अछि। आब जखन ई सब बात धिया-पुता केँ कतहु पढाई लेल भेटत तखन ने? ओकरा त बिहार टेक्स्ट बुक आ एनसीईआरटी केर संशोधित संस्करणक इतिहास आ समाजशास्त्र सब पढय पड़ि रहलैक अछि।
अन्तमे दिलीप भाइक कवितापर वस्तुतः कि मतभेद देखाइछ से विन्दुवार राखय चाहबः
१. बाबाक मृत्यु तिथिक उत्सव नगरे-नगरेः विद्यापतिक स्मृति मे महोत्सवक आयोजन – एकर प्रासंगिकता मातृभाषाक रक्षा, मिथिला संस्कृति ओ सभ्यता सँ भेटल विशिष्ट पहिचानक संरक्षण, मैथिली भाषा केँ बचेबाक लेल नव पीढी मे विषय प्रवेश खासकय तखन जखन विद्यालय आदि मे पढौनी मैथिली वा मैथिलत्वक मृतप्राय अछि – ई महोत्सव आइ प्रवासक स्थल पर राम-बाण केर कार्य कय रहल अछि।
२. बिस्फी सँ उपैट बनगाँव सँ बिलैट – ई बरखी कोनो दृष्टिकोण मे नहि, स्पष्ट संकेत छैक जे ओ युगपुरुष केर रूप मे मिथिलाक एक अभूतपूर्व स्तम्भक रूप मे स्थापित छथि। हुनकर रचनादि लोककंठ मे विराजित अछि। हुनक राज्य प्रति निर्वाह कयल गेल धर्मक गाथा सँ लोक अपन राजनीतिक सामर्थ्य प्रति सेहो चिन्तित रहैत हुनकर स्मरण कय मिथिलाक विशिष्ट पहिचानक रक्षार्थ आगू बढि रहला अछि। ताहि क्रम मे राजनेता सँ लैत विद्वत् जन – कलाकार (भाषाजीवी) सभक नीक सङ्गोर भऽ रहल अछि। राजनीतिक सबलता मे अपन मिथिलाक लोकक नाम आगू आबि रहल अछि। जतय मूल धरातल पर जातीय मत संख्या किनको पक्ष मे अछि तखनहि टिकट भेटत। सभक जननी आइ-काल्हि राजनीति छैक, आर ताहुमे महाकविक नाम सँ मिथिलाक लोककेँ त्राण भेटि रहल अछि।
३. अपना जैड़ उकन्नन हेबाक उत्सव त नहि मना रहल छी – जेकरा चलते देश भरि मे मिथिलाक मान-सम्मान बढि रहल अछि, आन-आन संस्कृतिक लोक सब संग सहकार्यक दिशा मे क्रान्ति आबि रहल अछि – ताहिठाम एहेन ब्यर्थ चिन्ता एकदम नहि करबाक चाही। जाहि राज्य मे छी – ओतय मैथिली भाषा केँ कतहु सँ सम्मान तक नहि देल गेल अछि। करोड़ोंक जनसंख्या मे छी, अपन भाषा मे एकटा आवेदन तक सरकारी कार्यालय मे जमा नहि करा सकैत छी। प्राथमिक विद्यालय मे संविधानक मौलिक अधिकार अनुरूप मैथिली एखन धरि शिक्षाक माध्यम तक नहि बनल अछि।
निष्कर्षः
राजनीति एहेन युवा अवस्था मे पहुँचि गेल अछि वर्तमान युग मे जे बिना राजनीतिक चश्मा लगेने आजुक समय मे हम सब यदि सामाजिक स्थिति पर काव्य रचना करैत छी, आलोचना मे लगैत छी, मूल सरोकारक विषय सँ हँटि ब्यर्थ चिन्तन करैत छी – ई सब अपन समय केँ अपने नाश करब भेल।
हम मिथिलावासी अपन पहिचान सँ भटकल, अपन उर्वर भूमि केँ अपनहि सँ उस्सर बनाकय अपने कमजोर बनल छी। हमरा सब केँ राज्यक उपेक्षाक विरुद्ध फाँर्ह बान्हय पड़त। प्रवासक क्षेत्रक लोक केँ धन्यवाद देबय पड़त। जेहेन देश – तेहेन भेष बनइयो केँ यदि ओ सब हमरा मूल धरातलवासी केँ प्रेरणा दय रहला अछि त ओहि दिशा मे चिन्तन करय पड़त। राजनीति केर अवस्था केँ कियो नकारि नहि सकैछ आइ। हमहुँ-अहाँ एहि विन्दु पर सोची आ अपन-अपन गाम-क्षेत्र केर राजनीतिक बहकाव केँ नियंत्रित कय मिथिलत्वक रक्षा करी।
हरिः हरः!!