विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
ईहो बात कनी ध्यान सँ बुझियौक

१. विद्यापतिक स्मृति मे केवल गाना-बजाना करब सारा मेहनति पर पानि फेरब होएछ।
२. साक्षात् कवि शिरोमणि – कवि कोकिल केर स्मृति दिवस हो आर कविता वाचन व वर्तमान विद्यापति स्वरूपी कवि केँ हम सब श्रवण नहि करब, कविताक बोल आ रस पर मंथन नहि करब त सारा आयोजन ए वेरी बिग जीरो – यानि पूरे शून्य होएछ।
३. विद्यापति सदैव राज्य हित लेल घर सँ बाहर धरि संघर्ष कयलन्हि – अपन राज्य प्रमुख राजा केर जीवन रक्षा सँ लैत रानी लखिमा व बौद्धिक सम्पदाक रक्षा लेल गुप्तवास तक कयलन्हि – तिनकर स्मृतिगान मे अपन राजनीतिक अधिकार प्रति सचेतनामूलक विचार गोष्ठी नहि राखब त हमरा हिसाबे आयोजनक मूल्यांकन पूनः शून्य भेल।
४. विद्यापतिक नचारी हो या राधा-कृष्णक बीच नोंक-झोंक या समदाउन या बटगबनी या जे किछु रचना – लोकक कंठ मे बसि गेल। कारण ओकर मधुर भाव, मधुर स्वर आ मधुर धुन छैक। ताहि स्थान पर हमरा लोकनि जँ खाली ‘रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम’ राखि खाली सजना-सजनी-भौजी-सारि-सरहोजि केँ सुमिरब त बुझि जाउ जे आयोजनक उपलब्धि अहाँ केँ साल भैर काम-वासना मे डूबायत नहि कि विद्यापतिक भक्ति-भाव या श्रृंगार-रस अथवा लोकहित केर कार्य मे प्रेरित करत।
५. महाकवि जतबे रचना मे चतुर आ चुस्त-दुरुस्त रहथि ततबे ओ कर्मठ लोक सेहो छलाह। ओ वर्तमान हमरा लोकनि जेकाँ खाली मोबाइल पर आ कंप्युटर पर चटपटा आ बड़का-बड़का बात लिखिते टा नहि छलाह, ताहि अनुरूपें राजा, प्रजा, ईश्वरक अनुपम सत्ता, पड़ोसी, सम्राज्यवादीक सिपहसलार आ प्रतिद्वंद्वी व आलोचक सब केँ झेलयवला अनेक गुण सँ सम्पन्न छलाह। ताहि हेतु जखन हुनकर स्मृति करब त अपन समाज, भाषा, संस्कृति, लोकहित, वर्तमान समस्या आदि पर सेहो समुचित समाधान लेल सुन्दर आ सारगर्वित निर्णय करबाक संग-संग सार्थक कर्म – कर्तब्यक सेहो निर्वहन करब ई निश्चित करी। नहि त… कतेक कहू… आयोजन पर कयल गेल पाइ केर खर्चा आ समय सबटा गेल पानि मे – सैह बुझू।
जँ, उपरोक्त विभिन्न विन्दु सभपर ध्यान दैत छी त अपना सभक पूर्वज जे विद्यापतिक स्मृति समारोह केर परंपरा आरम्भ कयलन्हि हुनका प्रति सेहो सत्य श्रद्धाञ्जलि अर्पण होएत अछि। आयोजनक बाद अहाँ भांग पीलहुँ आ कि दारुए पीलहुँ, ई अहाँक व्यक्तिगत गुण-दुर्गुण मे पड़ैछ। ताहि पर कम स कम हमरा सनक लोक जे स्वयं कतेको कमजोरी सँ आक्रान्त छी ओ किछु बाजी से धृष्टता हम नहि कय सकैत छी।
एकटा बात आरो कहब… सम्मान पत्र जरुर बाँटबाक चाही। आजुक समाज मे सम्मान आ यश कोनो कर्मठता वास्ते देबाके टा चाही। ताहि मे सूची बनेबाक लेल सेहो कोनो गलत सिफारिश आ कि लोभवश केकरो सम्मान दैत उचित आ कर्मठ व्यक्तित्व केँ जँ नकारैत छी त एकर प्रभाव सेहो कतहु न कतहु अहाँक अपन सेहत संग-संग समाजक स्वास्थ्य पर सेहो असर करैत छैक। से प्रयास करब जे उचित व्यक्तित्व केँ ‘मिथिला विभूति’, ‘मिथिला रत्न’, आदि सम्माननीय उपाधि सँ अलंकृत करी।
संगहि, बिना राज्यक सहयोग कोनो भाषा केँ आ ओकर साहित्य केर रक्षा होयब लगभग असंभव छैक। अहाँक मातृभाषा मैथिली आइ कतहु भऽ कय नहि अछि। ओ त धन्य अहीं सब छी जे दारुओ पिबैत – उत्सवो मनबैत कोनाहू-कोनाहू किछु-किछु आयोजन करैत एकटा सम्बल बनैत छी अपन भाषाक लेल…. आर जे विशुद्ध रूप सँ योगदान दैत एकरा सभक रक्षार्थ फाँर्ह बन्हने छथि ओ त साक्षाते जानकीक दूत सब थिकाह, जनकक सुच्चा सन्तान सब थिकाह, हुनकर यशगान हम शब्द मे नहि कय सकैत छी – बस स्वयंसेवा सँ अपन मैथिली आ मिथिला संस्कृति सनातनकाल सँ बाँचल अछि। हम मैरियो जायब, तैयो आगाँ स्वतः हमरे जेकाँ कियो न कियो सेवक आगाँ एब्बे करता। खास बात अपना सभक यैह अछि – ई मैथिली-मिथिलाक सेवा लेल आवेश (चार्ज) केकरो कियो नहि दय स्वयं जानकीतत्त्व सँ अपने-आप प्राप्त करैछ। तैँ, अहाँक सेवाभाव केँ हम साक्षात् परमेश्वरक विशेष रूप मानि प्रणाम करैत छी।
विगत मे मिथिला लगभग सात शताब्दी सँ विभिन्न दुष्चक्र मे फँसल रहबाक कारण – अपन राजकीय अस्मिता लगभग खंड-पखंड मे विखंडित कय लेबाक कारण; एतय आत्मनिर्णय आ स्वराजसम्पन्न स्वायत्त-शासनक अकाल पड़ि गेल अछि। वर्तमानहु मे ई कतहु बिहार नाम्ना उपनिवेश मे त कतहु नेपाल अथवा ओतुक्का मधेशनाम्ना उपनिवेश मे चेपायल अछि। अवस्था एहने बनि गेल अछि जे अहाँक अपनहि गाम मे केकरो सँ अपन भाषा मे बाट-घाटक पता मैथिली मे पूछबैक त उत्तर हिन्दी अथवा आन भाषा मे भेटत – उधर से जाइये, आगे मिलेगा, उतावाट जानुस, अगाडि भेट्नु हुन्छ, आदि। विद्यालय मे प्रारंभिक शिक्षा तक अपन मैथिली भाषा मे नहि अछि आइ, जखन कि यैह भाषा हिन्दी, नेपाली आदिक जनक भाषा थिक। तैँ, आइ अहाँ सब सन-सन आत्मविवेकी सभ लेल ई आरो जरुरी भऽ गेल अछि जे बेसी स बेसी सभ्यता संरक्षणमूलक क्रियाकलाप केँ समेटू, अपन कला, श्रम, कृषि, स्वास्थ्य, समाज, सरोकार आ सब किछु मे मिथिलत्वक रक्षा करू। विशेष शुभे हे शुभे!!
हरिः हरः!!