स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
भगवतीक स्मृति मे आइ आशीष मांगि एक दृष्टान्त अपन पाठक सब लेल राखबाक अनुमति भेटल अछि। भगवतीक उत्तरचरित्र जे महासरस्वतीक प्रसन्नता लेल हमरा लोकनि दुर्गा सप्तशतीक पाठ करैत छी – जाहि मे ई उल्लेख कयल गेल अछि जे शुम्भ-निशुम्भ असुर अपन बलक घमंड मे शचीपति इन्द्रक हाथ सँ तिनू लोकक राज्य आर यज्ञभाग छीन लेलक, वैह दुनू सूर्य, चन्द्रमा, कुबेर, यम आर वरुणक अधिकारक उपयोग करय लागल, वायु आर अग्निक कार्य सेहो वैह सब करय लागल, सब देवताक अपमानित, राज्यभ्रष्ट, पराजित तथा अधिकारहीन कय स्वर्ग सँ निकालि देलक – तखन एहि दुनू महान् असुर सँ तिरस्कृत देवता अपराजिता देवीक ई वचन –
तयास्माकं वरो दत्तो यथाऽऽपत्सु स्मृताखिलाः।
भवतां नाशयिष्यामि तत्क्षणात्परमापदः॥५-६॥
अर्थात् – देवता लोकनि आफदक समय मे भगतीक स्मरण कयलनि आ सोचलनि जे, “जगदम्बा हमरा सब केँ वर देने छलीह कि आपत्तिकाल मे स्मरण कयलापर हम तोहर समस्त आपत्तिकेँ तत्काल नाश कय देबौ” – यैह विचारिकय समस्त देवता हिमालय पर गेलाह आर ओतय भगवती विष्णुमायाक स्तुति करय लगलाह –
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्॥दुर्गासप्तशत्याम् ५-९॥
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः।
ज्योत्सनायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः॥१०॥
कल्याण्यै प्रणतां वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नमः।
नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः॥११॥
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः॥१२॥
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः॥१३॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै॥१४॥ नमस्तस्यै॥१५॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥१६॥
आइ एहि महत्वपूर्ण स्तुतिक सिर्फ ८ गोट श्लोक मनन करीः देवता विनीत स्वर मे कहय लगलाह –
देवी केँ नमस्कार अछि, महादेवी शिवा केँ सर्वदा नमस्कार अछि। प्रकृति एवं भद्रा केँ प्रणाम अछि। हम सब नियमपूर्वक जगदम्बा केँ नमस्कार करैत छी। रौद्रा केँ नमस्कार अछि। नित्या, गौरी एवं धात्री केँ बेर-बेर नमस्कार अछि। ज्योत्स्नामयी, चन्द्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी केँ सतत प्रणाम अछि। शरणागतक कल्याण करयवाली वृद्धि एवं सिद्धिरूपा देवी केँ हम बेर-बेर नमस्कार करैत छी। नैर्ऋती (राक्षसक लक्ष्मी), राजा आदिक लक्ष्मी तथा शर्वाणी (शिवपत्नी) स्वरूपा अपने जगदम्बा केँ बेर-बेर नमस्कार करैत छी। दुर्गा, दुर्गपारा (दुर्गम संकट सँ पार उतारयवाली), सारा (सभक सारभूता), सर्वकारिणी, ख्याति, कृष्णा आर धूम्रादेवी केँ सर्वदा नमस्कार अछि। अत्यन्त सौम्य तथा अत्यन्त रौद्ररूपा देवी केँ हम नमस्कार करैत छी। जे देवी सब प्राणी मे विष्णुमायाक नाम सँ कहल जाएत छथि, हुनका नमस्कार, हुनका नमस्कार, हुनका बेर-बेर नमस्कार अछि॥९-१६॥
जगज्जननी जगदम्बा की जय!!
हरिः हरः!!
ॐ श्री दुर्गायै नमः!!
काल्हि सँ आरम्भ माँ दुर्गाक अनुपम लीला-चरित्रक एक सुन्दर आख्यान जे देवतादि केँ वरदान देने छलीह, जखन कोनो विपत्तिक समय मे हमरा बजायब, हम तुरन्त ताहि विपत्तिक निदान निकालि देब आर तदनुरूप इन्द्र व अन्य देवता केँ शुम्भ-निशुम्भ नामक दुइ बलवान दानव द्वारा उच्छन्नड़ देलापर देवता कोना भगवतीक प्रार्थना कय रहला अछि ताहि मे काल्हि ८ श्लोक पढने रही, आइ आगू देखीः
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै॥१७॥ नमस्तस्यै॥१८॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥१९॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥२०॥ नमस्तस्यै॥२१॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥२२॥
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥२३॥ नमस्तस्यै॥२४॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥२५॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥२६॥ नमस्तस्यै॥२७॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥२८॥
या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥२९॥ नमस्तस्यै॥३०॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥३१॥
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥३२॥ नमस्तस्यै॥३३॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥३४॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥३५॥ नमस्तस्यै॥३६॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥३७॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै॥३८॥ नमस्तस्यै॥३९॥ नमस्तस्यै नमो नमः॥४०॥
जे देवी समस्त प्राणी मे चेतना कहाएत छथि, हुनका नमस्कार, हुनका नमस्कार, हुनका बेर-बेर नमस्कार अछि। जे देवी सब प्राणी मे बुद्धिरूप सँ स्थित छथि, हुनका नमस्कार, हुनका नमस्कार, हुनका बेर-बेर नमस्कार अछि। जे देवी सब प्राणी मे निद्रारूप सँ स्थित छथि, हुनका नमस्कार, हुनका नमस्कार, हुनका बेर-बेर नमस्कार अछि। जे देवी सब प्राणी मे क्षुधारूप सँ स्थित छथि, हुनका नमस्कार, हुनका नमस्कार, हुनका बेर-बेर नमस्कार अछि। जे देवी सब प्राणी मे छायारूप सँ स्थित छथि, हुनका नमस्कार, हुनका नमस्कार, हुनका बेर-बेर नमस्कार अछि। जे देवी सब प्राणी मे तृष्णारूप सँ स्थित छथि, हुनका नमस्कार, हुनका नमस्कार, हुनका बेर-बेर नमस्कार अछि। जे देवी सब प्राणी मे क्षान्ति (क्षमा) रूप सँ स्थित छथि, हुनका नमस्कार, हुनका नमस्कार, हुनका बेर-बेर नमस्कार अछि।
भक्तजन! ई प्रार्थना एखन निरन्तरता मे अछि। काल्हि दुर्गा सप्तशतीक पाँचम अध्याय जेकरा उत्तरचरित्रक विनियोग सेहो कहल जाएछ ताहि मे ९म श्लोक सँ १६ श्लोक धरि देवता द्वारा विपत्ति मे देवी केँ आराधना आरम्भ करबाक आख्यान शुरू भेल छल। आइ एकरे निरन्तरता दैत श्लोक संख्या ४० धरि पहुँचि पेलहुँ। ध्यान देबैक! भगवान् केर सृष्टि मे मनुष्य (हम-अहाँ) सहित अनेक तरहक दृश्य-अदृश्य अस्तित्व – लोक – समुदाय – समाज – संसार सब छैक। देवता केँ बहुत ऊपर मानल जाएत छन्हि। आर हम मनुष्य सीधे देवताक स्वामित्व मे हुनकहि देल भोग सँ जीवन निर्वाह करैत छी। जँ हमरा सभक स्वामी देवता स्वयं भगवतीक आराधना एना विपत्ति-आपत्ति केँ दूर करबाक लेल कयलनि त हम सब सेहो केना अपन जीवन निर्वाह करब, ई स्वयं विवेक पर निर्भर करैत अछि। अस्तु! बाकी ऐगला दिन!
ॐ तत्सत्!
हरिः हरः!!
तृतीय खंड