फूल काकाक शिक्षा
(बाल मनोविज्ञान अनुकूल नैतिक शिक्षाक दृष्टान्त)
– प्रवीण नारायण चौधरी
सुमनजी काका ओतय सत्यनारायण भगवानक पूजाक हकार सौंसे टोलक लोक केँ पड़ल छलैक। बुझले बात अछि जे पूजाक हकार माने धिया-पुताक वास्ते सौंझका पढाई सँ छुट्टी। भैर टोलक बच्चा सब पूजाक तैयारी मे सहयोग करय लेल पहुँचि जाएत अछि। कियो पटिया आनिकय ओछा रहल अछि, कियो मन्दिर पर सँ घड़ी-घंट-शंख आदि आनय गेल अछि। कियो पंडितजी केँ बजेबाक लेल बाबीक हाक पर दौड़ि गेल। सुमन काका अपने व्रत केने छथि, ओ संध्या-तर्पण करैत पोखरि पर स्नान करैत ओम्हरहि सँ मन्दिर पर जा भगवान् केँ ओरियाकय अनता आ पूजा पर बैसि जेता। एम्हर बाबी, काकी, दीदी, बहिनदाय, बुचिया, बौआ, नुनू सब कियो पूजा आरम्भ करय सँ पूर्व अपना-अपना भागक काज पूरा कय चुकल अछि। बस काका केँ आबय के देरी छन्हि। पंडितजी सेहो दलान पर आबि गेल छथि। जनेऊ सब गेठिया लेलनि। एक जोड़ भगवान् लेल आ दोसर पूजा पर बैसता सुमन काका तिनका लेल। सत्यनारायण भगवानक पूजा भेनाय कोनो राष्ट्रीय पर्व सँ कम थोड़े न छैक अपन मिथिला गाम सब मे। साक्षात् परमात्माक पूजा लेल बच्चा सँ बूढ सब लागि जाएत अछि।
खेलौड़िया उमेरक धिया-पुता सब पहिने सँ पटिया पर आबिकय बैसि गेल अछि। कचबच-कचबच कय रहल छल। फूल काका सेहो गाम आयल छलाह। ओहो कनी सबेरे पूजाक घर पहुँचि गेल छथि। बहुत दिनक बाद पैर लगलैन अछि एना गाम मे सत्यनारायण भगवानक पूजा देखबाक मौका। सुमन काका जा धरि नव वस्त्र (धोती, दुति-वस्त्र, आदि) ता धरि एम्हर पंडितजी अपन आसन पर बैसिकय ठाउं-पीढी आ अरिपन पर विराजित पीढी, कलश, फल-फूल, दही, चूरा, केरा, मखान, पान, सुपारी, प्रसादीक विभिन्न परिकार, अक्षत, चानन, फूल, बेलपत्र, तुलसीदल, दुभि, धान, जौ, तिल व समस्त पूजनोपचार निरीक्षण कय लेलनि। ओहो आब इन्तजार सुमन काका केँ वस्त्रादि पहिरि पूजा करयवला स्थान पर एबाक इन्तजार कय रहला अछि। घरक स्त्रीगण सब सेहो अपन-अपन स्थान दुआरि पर लय चुकली अछि।
फूल काका धिया-पुता सब केँ खेलाएत देखि मोने मोन सोचय लगलाह। आखिर ई धियापुताक दृष्टि मे भगवान प्रति केहेन समझ अछि। ओ धिया-पुता केँ शान्त करैत सब केँ अपना लग बजा लेलाह। जे सब सँ बेसी चकचकिया छल ओकरा सँ पूछलखिन, “कहे त बौआ! आइ एतय कि हेतैक?” ओ चकचकिया बच्चा जबाब देलकैन, “बाबा, एतय पूजा हेतैक।” फूल काका फेर दोसर प्रश्न पूछलखिन, “अच्छा! पूजा माने बुझैत छिहीन? कि सब होएत छैक पूजा मे?” ओ बच्चा फेर जबाब देलकैन, “बाबा, पूजा मे पंडितजी मन्त्र पढबैत छथिन, आ ओ पूजा पर बैसयवला बाबा मंत्र पढैत छथिन।” फूल काका आब बच्चाक जबाब मे संतुलन देखि मुस्कुरा रहल छलाह। मोनेमन ओ बच्चाक प्रतिभा केँ प्रशंसा कय रहल छलाह। फेर पूछलखिन, “ऐँ रौ! मंत्र पढेनाय आ पढनाइये पूजा भेलैक कि?” आ कि दोसर बच्चा टप दिना जबाब देलकैन, “हाहाहा, बाबा! मंत्रे टा पढैत छथिन से? मंत्रक संग देखय नहि छियैक जे भगवान केँ फूल-अक्षत-प्रसाद सब सेहो चढबैत छथिन।” फूल काका ओकर पीठ ठोकिकय कहलखिन, “एकदम ठीक कहलें। अच्छा ई कह, भगवान केँ अपना मोने चढेला स पूजा भऽ गेलैक? आ कि भगवान केँ ई सब भोगो न लगबय पड़तनि।”
फूल काकाक ई प्रश्न धिया-पुता सब लेल भारी भऽ गेलैक। ओ सब हँसैत एक दोसराक मुंह ताकय लागल। ओकरो सब केँ मोन मे ई बात छूबि देलकैक – आखिर पूजा करयवला सुमन काका यदि पंडितजी संग मंत्र उच्चारण करैत सब किछु चढैयो देथिन आ भगवान ओ सब लेबे नै करथिन, या हुनका लैत हम सब देखबे नहि करब त ई केहेन पूजा भेलैक? फूल काका धिया-पुता सँ बड सिनेह करैथ। ओ सभक मनोदशा केँ बुझि रहल छलाह। अपन प्रश्न केँ अपनहि सँ हल्लूक करैत कहलखिन, “देख, भगवान त अदृश्य शक्ति होएत छथिन। ओ त हमरा-तोरा मनुष्यक आँखि सँ देखाएत नहि छथिन। लेकिन भावना सँ भगवान – जे सभक मालिक छथि – तिनका पूजा कयल जाएछ। दुभि-धान-जौ-तिल-अक्षत्-फूल-माला-बेलपात आदि चढायल जाएत अछि। भगवान केँ पूजा करयवला आ देखयवला सब भक्तक भावना सँ मतलब रहैत छन्हि। तैँ पूजा माने भावना सँ जे किछु अर्पण कय सकी से चढेबाक बात मात्र भेलैक। लेकिन आब हमरा तूँ सब ई कहे जे पूजा काल मे भावना केहेन हेबाक चाही?”
बच्चो सब मोनेमन सोचलक जे बाबा पूजाक नीक माने बुझा देलाह। हमरा सब लेल त भगवान माने सबसँ पैघ शक्तिवान् – नहि देखायवला – मुदा हुनका सँ पैघ आर कियो नहि। हुनकहि कृपा पेबाक लेल सब पूजा करैत अछि। बाबा कहलखिन जे भावना सँ पूजन-उपचार केँ अर्पण करब पूजा भेल। आर आब पूछैत छथि जे ‘भावना’ केहेन हेबाक चाही। एकटा गंभीर बच्चा हिम्मत कय केँ कहलकैन, “बाबा, भगवान सभक मालिक होएत छथिन। मालिक कहू या माँ-पिता जेकाँ दुलार करयवला कहू – हम सब त्वमेव माता च पिता त्वमेव कहिकय विनती करैत छियन्हि। हुनके बन्धु आ सखा यानि भाइ आ दोस्त जेकाँ सेहो देखैत छियन्हि। सब किछु वैह होएत छथिन। त माँ, बाबू, भाइ, काका, बाबा, मामा, काकी, बाबी, आदि सब सम्बन्धक लोक संग-संग दोस्त आ सब किछु भगवाने छथि। हुनका खुशी करबाक लेल जेहेन मोन राखब वैह भेल भावना।”
फूल काका ओहि बच्चाक जबाब सुनिकय खूब प्रसन्न भेलाह। आब हुनकर उद्देश्य पूरा भऽ गेल छलन्हि। सुमन काका सेहो पूजाक आसन पर बैसि गेल छलाह। ओ धीरे सऽ ओहि सब चकचकिया धिया-पुता केँ कहलखिन, “एकदम सही कहलें। भावना माने मोनक भाव होएत छैक। भगवान सभक मालिक छथिन। भले ओ देखाएत होएथ वा नहि, लेकिन सभ जीवक जीवनक बागडोर हुनकहि हाथ मे रहैत छन्हि। ई सूरज, चन्दा, तारा, आकाश, गाछ, पहाड़, नदी, नाला, बरखा, आँधी, सर्दी, गर्मी – सब प्रकृति हुनकहि हाथ मे नियंत्रित रहैत छैक। हम सब मनुष्य सेहो हुनकहि कृपा सँ सुन्दर-सुशील शिक्षा आ संस्कार संग अपन जीवन लेल भविष्य नीक हेबाक प्रार्थना हुनका सँ करैत रहैत छी। अतः मोनक भाव भगवान जेकाँ मालिक प्रति समर्पित होयब बहुत जरुरी होएत छैक। यदि पूजाक समय मे खेल पर ध्यान चलि गेल त भगवान ओहि भावना सँ कहियो खुशी नहि भऽ सकैत छथि। अहाँ सब बहुत बुधियार धिया-पुता छी। सब बात नीक सँ बुझैत छी। एखन पूजाकाल मे भगवान प्रति एहेन विनीत भाव राखू जाहि सँ हुनका खुशी हेतनि। ओ आरो नीक बुद्धि, विद्या, स्वास्थ्य, सुविधा, श्रेष्ठक सिनेह आदि सँ अहाँ सब केँ परिपूर्ण रखताह। एतय सब कियो पूजा मे यैह प्रार्थना भगवान् सँ कय रहल अछि। तैँ अहाँ सब चकचक केनाय बन्द करू आ एकदम शुद्ध मोन आ भावनाक संग पूजा देखू।”
फूल काकाक एतेक सुन्दर शैली मे कयल गेल वार्ता सँ बच्चा सब अति प्रसन्न भेल। सब सँ उचक्का टाइप के बच्चा सेहो संच-मंच भऽ भगवान केँ हाथ जोड़ि प्रणाम करैत सम्पूर्ण पूजा अवधि भरि भगवान सँ नीक-नीक प्रार्थना करैत रहल। फूल काकाक ई शिक्षा धियापुता केँ एतेक आनन्दित कयलकैक जे ओ सब ऐगला दिन ई सब वृत्तान्त अपन विद्यालयक शिक्षक एवम् छात्र सब सँ भरल सभा (एसेम्बली) मे सेहो कहलक। विद्यालयक शिक्षक सब मिलिकय फूल काका केँ फूलक गुलदश्ता भेंट कय बच्चाक मनोविज्ञान अनुरूप नैतिक शिक्षा देबाक लेल धन्यवाद कयलन्हि। यथार्थतः बाल मन केँ कोनो उच्च मूल्यक शिक्षा देबाक लेल सुन्दर उदाहरण संग बुझेला सँ ओ सब बात जल्दी बुझैत छैक, फेर ओ सब बात जँ अपन मातृभाषा मे होयत त ओकर विलक्षणता आरो बड बेसी होएत छैक।
हरिः हरः!!