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महादुर्गा व महासरस्वतीक स्वरूपः वैकृतिकं रहस्यम्

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

ॐ श्री दुर्गायै नमः!!

जगज्जननी जगदम्बाक विभिन्न रहस्यमयी स्वरूपक चर्चा आस्थावान ओ समर्पित भक्त-साधक-उपासक लेल निरन्तर करैत आबि रहलहुँ अछि। काल्हि अपने सब पढने रही जे भगवती महाकाली केँ वैकृतिकं रहस्यम् केर अनुसार भगवान् विष्णु केर योगमाया सँ तूलना कयल गेलनि। तहिना आइ देखी जे भगवती महालक्ष्मीक स्वरूप केहेन छन्हिः

सर्वदेवशरीरेभ्यो याऽविर्भूतामितप्रभा।
त्रिगुणा सा महालक्ष्मीः साक्षान्महिषमर्दिनी॥वैकृतिकं रहस्यम् – ७॥
श्वेतानना नीलभुजा सुश्वेतस्तनमण्डला।
रक्तमध्या रक्तपादा नीलजङ्घोरुरुन्मदा॥८॥
सुचित्रजघना चित्रमाल्याम्बरविभूषणा।
चित्रानुलेपना कान्तिरूपसौभाग्यशालिनी॥९॥
अष्टादशभुजा पूज्या सा सहस्रभुजा सती।
आयुधान्यत्र वक्ष्यन्ते दक्षिणाधःकरक्रमात्॥१०॥
अक्षमाला च कमलं बाणोऽसिः कुलिशं गदा।
चक्रं त्रिशूलं परशुः शङ्खो घण्टा च पाशकः॥११॥
शक्तिर्दण्डश्चर्म चापं पानपात्रं कमण्डलुः।
अलंकृतभुजामेभिरायुधैः कमलासनाम्॥१२॥
सर्वदेवमयीमीशां महालक्ष्मीमिमां नृप।
पूजयेत्सर्वलोकानां स देवानां प्रभुर्भवेत्॥१३॥

सम्पूर्ण देवता लोकनिक अङ्ग सभ सँ जिनकर प्रादुर्भाव भेल छलन्हि, ओ अनन्त कान्ति सँ युक्त साक्षात् महालक्ष्मी थिकीह। हुनकहि त्रिगुणमयी प्रकृति कहल जाएत छन्हि तथा वैह महिषासुरक मर्दन करयवाली छथि। हुनकर मुख गोर, भुजा श्याम, स्तनमण्डल अत्यन्त श्वेत, कटिभाग आर चरण लाल तथा जाँघ आर पिंडली नील रंगक छन्हि। अजेय होयबाक कारणे हुनका अपन शौर्यक अभिमान छन्हि। कटिक आगूक भाग बहुरंग वस्त्रसँ आच्छादित होयबाक कारण अत्यन्त सुन्दर आर विचित्र देखाय दैत अछि। हुनक माला, वस्त्र, आभूषण तथा अङ्गराग सब किछु विचित्र अछि। ओ कान्ति, रूप आर सौभाग्य सँ सुशोभित छथि। जखन कि हुनकर हजारों भुजा (हाथ) छन्हि, तथापि हुनका अठारह भुजा सँ युक्त मानिकय पूजा करबाक चाही। आब हुनकर दाहिना भागक निचुलका हाथ सँ लैत बाम भागक निचुलका हाथ धरि मे क्रमशः जे अस्त्र सब अछि तेकर वर्णक कयल जाएत अछिः अक्षमाला, कमल, बाण, खड्ग, वज्र, गदा, चक्र, त्रिशूल, परशु, शङ्ख, घण्टा, पाश, शक्ति, दण्ड, चर्म (ढाल), धनुष, पानपात्र आर कमण्डलु – एहि आयुध सब सँ हुनकर भुजा सब विभूषित अछि। ओ कमलक आसनपर विराजमान छथि, सर्वदेवमयी छथि तथा सभक ईश्वरी छथि। राजन! जे एहि महालक्ष्मी देवीक पूजन करैत अछि, ओ सब लोक तथा देवता लोकनिक स्वामी होएत अछि।

ॐ श्री दुर्गायै नमः!!
 
आस्थावान् भक्त बंधुगण – अपन मिथिला मे भगवतीक पीरी – गोसाउनि – कुलदेवताक रूप मे अपन-अपन कुल ओ मर्यादाक क्रम मे स्थापित कयल जाएत छथि। घर-घर मे भगवतीक पाठ कयल जाएत अछि। गाम-गाम मे मन्दिर आ मठ आदि मे शक्तिदात्री जननी केर भजन-कीर्तन तथा आध्यात्मिक चर्चा सब होएते रहैत अछि। यैह त अपना सभक संस्कार आ महत्वपूर्ण परम्परा थिक जे आर सँ अलग आ विशिष्ट बनबैत अछि। स्वाध्याय सेहो अपना सभक विज्ञ समाजक एक आभूषण होएत अछि। वर्तमान समय अपने सब धरि एहि स्वाध्यायक किछु अंश नित्य सोझाँ आनि रहल छी। वर्तमान समय – वैकृतिकं रहस्यम् अनुरूप महाकाली आ महालक्ष्मीक स्वरूपक चर्चा उपरान्त आइ महासरस्वतीक स्वरूपक चिन्तन आ दर्शन करब।
 
गौरी देहात्समुद्भुता या सत्त्वैकगुणाश्रया।
साक्षात्सरस्वती प्रोक्ता शुम्भासुरनिबर्हिणी॥वैकृतिकं रहस्यम्-१४॥
दधौ चाष्टभुजा बाणमुसले शूलचक्रभृत्।
शङ्खं घण्टां लाङ्गलं च कार्मुकं वसुधाधिप॥१५॥
एषा सम्पूजिता भक्त्या सर्वज्ञत्वं प्रयच्छति।
निशुम्भमथिनी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी॥१६॥
 
जे एकमात्र सत्त्वगुणक आश्रित रहैत गौरी केर शरीर सँ प्रकट भेलीह अछि तथा जे शुम्भ नामक दैत्यक संहार कयने छलीह, ओ साक्षात् सरस्वती कहल गेली अछि। पृथ्वीपते! हुनक आठ भुजा (हाथ) छन्हि तथा ओ अपन हाथ मे क्रमशः बाण, मुसल, शूल, चक्र, शङ्ख, घण्टा, हल एवं धनुष धारण करैत छथि। ई सरस्वती देवी, जे निशुम्भक मर्दन तथा शुम्भासुरक संहार करयवाली थिकीह, भक्तिपूर्वक पूजित भेलापर सर्वज्ञता प्रदान करैत छथि।
 
भगवती केँ बेर-बेर प्रणाम – हम समस्त मिथिलावासी पर हिनकर विशेष कृपा सदैव बनल रहय!
 
हरिः हरः!!

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