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लोभ मात्र समस्त पापक जैड़ थिक – नैतिक कथा

लोभः पापस्य कारणम् (हितोपदेश) – लोभ सँ प्रेरित होएछ ठगी
 
by योगेन्द्र जोशी in दर्शन, नीति, संस्कृत-साहित्य, सूक्ति, हितोपदेश, Morals
 
(अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी)
 
एम्हर किछु समय सँ टीवी समाचार चैनल सब पर ठगीक मामिला सभक चर्चा सुनबाक लेल भेट रहल अछि। कहल जा रहल छैक जे गुजरातक अशोक जडेजा केँ देश भरि मे ठगी केर जाल पसरल छैक। एहि कथाक चर्चाक एक-दुइ दिन बादहि सँ दिल्लीक सुभाष अग्रवालक कारनामा सभक सेहो चर्चा होमय लागल। ठगीक ई मामिला मे वास्तविक तथ्य कि छैक से बात टीवी दर्शक द्वारा तय कय पायब संभव नहि छैक। ई सब जनैत अछि जे ई चैनल पूरे प्रकरण केँ अक्सरहाँ सनसनीखेज तथा अतिरंजित बनाकय परसैत अछि। तदापि ओ निराधार नहि हेबाक चाही से मानल जा सकैत छैक।
 
ठगीक घटना अपन समाज मे होएते रहैत छैक। हरेक घटनाक समाचार अखबार और टीवी चैनल द्वारा प्रसारित नहि कएल जा सकैछ, लेकिन ओ घटित होएते रहैत छैक। केकरो धन दुगुना-तिगुना करबाक नाम पर ठकल जाएत छैक, तऽ केकरो नौकरी दियेबाक नाम पर । केकरो अस्पताल मे कारगर इलाजक नाम पर ठकल जाएत छैक, तऽ केकरो सरकारी दस्तावेज बनेबाक नाम पर, इत्यादि । कतेको सोझ-सुधा लोक बेवकूफ बनि जाएत अछि, तऽ किछु गिनल-चुनल शातिर लोक बेवकूफ बनबैत रहैत अछि लोक केँ।
 
किछु मामिला छैक जाहि मे लोक केँ ठकल जेबाक बात बुझय मे अबैत छैक। अपन देशक अधिकांश जनता अनपढ़ तथा नियम-कानून सँ अनभिज्ञ रहैत छैक। ओहेन लोक कतेको मौका पर दोसराक झांसा (लोभ) मे आबि सकैत अछि, विशेषतः सरकारी कामकाजक संदर्भ मे। लेकिन जे लोक गहना-जेवर केँ बैसले-बैसल दोब्बर कय देबाक वचन देनिहारक चंगुल मे फँसैत अछि आर जे धनराशि केँ अल्पकालहि मे दोब्बर-तेब्बर कय केँ लौटेबाक बात कयनिहार झांसा मे अबैत अछि ओकरा हम मूर्ख तथा लोभी मानैत छी। कनेक सोचबाक बात भेल ई जे कियो लोक कोना एहेन चमत्कार कय सकैत छैक? और जँ केकरो पास एहेन जादुई शक्ति छैक त ओ कियैक दोसर पर एतेक दयावान (मेहरबान) होबय गेल? कियैक नहि ओ बिना किछु लेनहिये जनसेवाक कार्य मे लागि जाएत अछि?
 
एहि तरहक घटना सभक पाछू लोभ एक, कदाचित् एकमेव, कारण रहैत छैक ई हमर मान्यता अछि। लोभहि थिक जे मनुष्य केँ उचितानुचित केर विचार त्यागिकय धन-संपदा अर्जित करबाक लेल प्रेरित करैत छैक। ई तऽ भेल ठगी कयनिहारक बात। दोसर दिश लोभहि थिक जे कोनो अन्य मनुष्य केँ ठगी कयनिहार मनुष्यक दावी पर विश्वास करबाक लेल बाध्य करैत छैक। गंभीरता सँ विचार कयला पर आर वस्तुस्थिति ऊपर पर्याप्त जानकारी हासिल केनहिये बिना ओ झांसा मे आबि जाएत छैक।
 
शिक्षाप्रद लघुकथा केर संग्रह ‘हितोपदेश’ ग्रंथ मे लोभक बारे मे कहल गेल छैकः
 
लोभात्क्रोधः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते ।
लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम् ।।
(हितोपदेश, मित्रलाभ, २७)
 
अर्थात् लोभ सँ क्रोध केर भाव उपजैत छैक, लोभ सँ कामना या इच्छा जागृत होएत छैक, लोभहि सँ व्यक्ति मोहित भऽ जाएत अछि, यानी विवेक हेरा बैसैत अछि, आर वैह व्यक्ति केर नाशक कारण बनैत छैक। वस्तुतः लोभ समस्त पाप केर कारण थिक।
 
एकरा अलावे आरो कहल गेल छैकः
 
लोभेन बुद्धिश्चलति लोभो जनयते तृषाम् ।
तृषार्तो दुःखमाप्नोति परत्रेह च मानवः ।।
(हितोपदेश, मित्रलाभ, १४२)
 
अर्थात् लोभ सँ बुद्धि विचलित भऽ जाएत छैक, लोभ सरलता सँ नहि मिझायवला तृष्णा केँ जन्म दैछ। जे तृष्णा सँ ग्रस्त होएत अछि ओ दुःख केर भागीदार बनैत अछि, एहि लोक मे और परलोक मे सेहो।
 
ग्रंथ मे अन्यत्र ईहो वचन पढ़बाक लेल भेटैत अछिः
 
यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते ।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ते अध्रुवं नष्टमेव हि ।।
(हितोपदेश, मित्रलाभ, २१५)
 
अर्थात् जे व्यक्ति ध्रुव यानी जे सुनिश्चित् अछि ओकर अनदेखी कय केँ ओहेन वस्तुक पाछाँ भगैत अछि जे अनिश्चित् हो, तऽ अनिष्ट हेब्बे टा करत।
 
निश्चित् केँ सेहो ओ हेरा बैसैत अछि आर अनिश्चित् केँ तऽ पहिने सँ कोनो भरोस नहि रहैत छैक। ठगीक मामिला मे फंसल लोक केर बारे मे यैह बात पूर्णतः लागू होएछ। जाहि जमा-पूंजी केँ निश्चित् रूप सँ ओ अपन कहि सकैत अछि तेकरा जँ ओ बिना सोचने-बुझने दांव पर लगा दैछ, तऽ ओहि सँ त ओ हाथ धोइये लैत अछि, आर बदला मे कोनो वांछित फलो नहि पबैत अछि।
 
ई सब कहबाक तात्पर्य यैह अछि जे अविलंब अपन धनसंपदा केँ दुगुना-तिगुना करबाक चाहत सँ व्यक्ति केँ बचबाक चाही आर ओकरा ई बुझबाक प्रयास करबाक चाही जे कोनो व्यक्ति कोना धनवृद्धि केर अपन अविश्वसनीय दावी केँ सफल कय सकैत अछि।
 
लोभ या तृष्णा यानी भौतिक धन-संपदा आदिक प्रति अदम्य चाहत केर बारे मे महाकाव्य महाभारत मे सेहो बहुत किछु कहल गेल अछि, जेकर संक्षिप्त उल्लेख हम एहि ब्लॉग मे अन्यत्र (‘कहियो नहि बुढ़ायवला तृष्णा …’ एवं ‘तृष्णा सँ मुक्ति भोग सँ नहि …’) मे केने छी । – योगेन्द्र
 
हरिः हरः!!

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