कि रंगकर्म जीविकोपार्जन लेल नीक विकल्प अछिः विशिष्ट रंगकर्मी लोकनिक उत्तर पढू

सितम्बर १७, २०१७. मैथिली जिन्दाबाद!!

चूँकि मिथिला एक पूर्ण सभ्यताक परिचायक रहल अछि, एतय साहित्यक संग कलाकर्म, चित्रकर्म, रंगकर्म व हरेक विधाक साधना पूर्वकाल सँ होएत आबि रहल अछि। जीविकोपार्जन लेल कृषि पर निर्भरता सँ आइ मिथिला क्षेत्रक लोक दुनियाक अन्य भाग संग डेग मे डेग मिलबैत बढबाक यत्न कय रहल अछि। राज्य केर उपेक्षाक कारण विशाल उद्योगक एतय घोर अकाल एखनहु देखा रहल अछि, जेहो उद्योग छल सेहो ध्वस्त भऽ चुकल अछि… न पेपर मिल, न चीनी मिल, न जूट, न प्रोसेस्ड फूड्स, न आम-लिचीक पल्प, कतहु किछु नहि। तथापि छोट-छोट स्तर पर आजुक समय मे प्रयास होएत देखा रहल अछि। सरकार द्वारा सेहो कृषि भूमि केँ व्यवसाय लेल प्रयोग करबाक कानून बनेला सँ थोड़-बहुत प्रगति मैझला आकारक उद्योग सब लगेबा मे उद्योगी-व्यवसायी-लगानीकर्ता सभक ध्यान पहुँचि रहल अछि से देखि सकैत छी। तथापि जनसंख्याक अनुपात मे आ उपलब्ध संसाधनक समुचित दोहनक स्थापित सूत्र मुताबिक हाल धरि एतय कोनो तरहक उपक्रम सरकारी अथवा गैर-सरकारी, निजी वा कोनो अन्य कतहु नहि देखा रहल अछि। एहेन स्थिति मे एतुका लोकक लेल ‘रोजगार’ यानि जीविकोपार्जन प्रथम आ अन्तिम चुनौती बनल छैक। लोक-पलायन रोजगारक खोज मे भऽ रहलैक अछि। सभ्यता मेटा रहलैक अछि। कम सँ कम अपन मौलिकता केँ त लोक अपनहि घृणा करय लागल अछि, कियैक तँ स्वयं अपनहि मातृभाषा तकक प्रयोग करब लोक मे लज्जाबोध दैत छैक। मुदा मूल स्थानक ठीक बिपरीत प्रवासक स्थल पर मिथिला जिबैत आ विकास करैत देखा रहल अछि। मिथिलाक मूल भूमि पर कय टा रंगकर्मी समूह मैथिली या आनहि भाषा रंगकर्म केँ जियाकय राखि रहल अछि से तकलो पर विरले कतहु भेटि जाय – मुदा देशक राजधानी दिल्ली जतय लगभग १ करोड़ मैथिलीभाषी मिथिलाक जनमानस आइ प्रवास पर जीविकोपार्जन मे लागल अछि, ओतय दर्जनों संस्था अपन मिथिलत्व केँ जिया रहल अछि, अपन भाषा-संस्कृति आ साहित्यक संग-संग रंगकर्म, गीत-संगीत, फिल्म, धारावाहिक आदि विधा मे बहुत रास सृजनात्मक कार्य कय रहल अछि।

गाम-घर मे कोनो पाबनि, उत्सव या समारोहक समय नाटक मंचन होयबाक बात हम सब देखैत आबि रहल छी। मुदा रंगकर्मक विधा सँ रोजगार आ जीविकोपार्जन मे लगैत विरले कतहु भेटैत होयत। जखन कि राष्ट्रस्तरीय फिल्म निर्माण व्यवसाय मे रंगकर्म सँ रोजगार भेटब संभव छलैक, आइयो छैक आर आगामी समय मे ई बढिते जेतैक। दसकों सँ दिल्ली मे प्रवास करैत रंगकर्म विधा सँ जीविकोपार्जन मे लागल दुइ गोट व्यक्तित्वक चर्चा करब एतय। संतोष कुमार – मूल घर मधुबनी तथा अमरजी राय – मूल घर सुपौल। दुनू गोटा श्रीराम सेन्टर मे ३० अगस्त केँ आयोजित नाटक ‘अगुरवान’ मे क्रमशः मास्टरसाहेब आ बाबू बंगट मिश्र केर भूमिका मे देखेलाह। ऐगला दिन एकटा समीक्षा बैसार मे पुनः भेंट भेल रहैथ। परिचयक क्रम मे ई ज्ञात भेल जे दुनू गोटा फूल टाइमर ड्रामा आर्टिस्ट होयबाक संग-संग रंगकर्म सँ जुड़ल अन्य-अन्य क्षेत्र मे सेहो अपन योगदान दैत छथि। प्रश्न उठल – कि रंगकर्म सँ जीविकोपार्जन हेतु उचित जीविका भेटब संभव अछि आ कि एकरा संग आरो कोनो रोजगार करब आवश्यक छैक? एहि पर संतोष कुमार आ अमरजी राय केर विचार लगभग मिलैत-जुलैत भेटल। संतोषजी कहलनि जे रंगकर्म मे सिद्धहस्त छी त मनोरंजनक संसार मे अहाँ लेल बड पैघ अवसर इन्तजार करैत रहैत अछि। आइ टेलिविजन केर दुनिया मे एतेक रास धारावाहिक, एडवर्टाइजमेन्ट, तकनीकी सहयोग, लेखनी, निर्देशन आदिक अनेकानेक काज भेटब संभव अछि। तखन संघर्ष त सब क्षेत्र मे करय पड़ैत छैक। बहुत बेलना बेललाक बाद उचित पारिश्रमिकक प्राप्ति आ जीविका चलैत छैक। अमरजी कहलनि जे काजक कमी नहि छैक। प्रतिभाक सम्मान जरुर होएत छैक। थियेटर आर्टिस्ट केर बहुत पैघ डिमान्ड छैक। आइ जतेक उत्कृष्ट सूपर स्टार फिल्म लाइन मे चमकैत अछि ओकर बैकग्राउन्ड कतहु न कतहु रंगकर्म सँ जुड़ल देखाएत अछि।

आत्मसंतोष सब सँ पैघ कमाई थिक। अमरजी, संतोषजी, कुणालजी, किसलयजी, राजीवजी – बहुते कलाजीवी सब संग हमरा लोकनि आपसी समीक्षा वार्ता मे रही। संतोषजी लेल त हाथो-हाथ नीलम कला केन्द्र केर कोनो परियोजना लेल अफर किसलयजी मार्फत अबैत देखलहुँ। अमरजी काफी रास टेलिफिल्म, सीरियल, एड फिल्म आदि मे व्यस्त रहबाक बात कहलनि। ताहि पर सँ मैथिली रंगकर्म त अपन मौलिक कला मे पड़ैत अछि, जखन कतहु मौका भेटैत अछि त एक फ्रीलांसर आर्टिस्ट केर रूप मे काज करैत छी ओ कहलैन। राजीव मिश्र – मूल मधुबनी निवासी सेहो साउन्ड इंजीनियर छथि। नाटक मे निर्देशनक कार्य सेहो करैत छथि। अगुरवान नाटक केर निर्देशन सेहो यैह केने छलाह। नीलम कला केन्द्र मे सेहो कार्यरत छथि। किसलय कृष्ण सेहो वर्तमान समय नीलम कला केन्द्र मे कार्यरत छथि। तकनीकी निर्देशन आ कार्य संयोजनक विशिष्ट कलासंपन्नता आ लेखन मे महारत – उद्घोषण मे ओतबे दक्ष, फिल्म निर्देशन मे सक्षम – एहि सब सामर्थ्य सँ नीलम कला केन्द्र केर प्रोडक्सन मे नीक योगदान दय रहला अछि। कार्यक्रम मे आमंत्रित अतिथि नरेन्द्र झा सेहो पहिने थियेटर सँ जुड़ल छलाह। ओ अपनो बजलाह जे श्रीराम सेन्टर आ एनएसडी सँ जुड़ल रहलाक कारण ओ आइ कतेक लाभ बालीवूड मे पाबि रहला अछि। कोलकाता मे सेहो दर्जनों मैथिल रंगकर्म विधा सँ जुड़ल अभरलाह। ओतहु पता लागल जे रंगकर्म केर विधा मे समय खर्च करब रोजगार उपलब्ध करेबाक वैकल्पिक साधनक रूप मे प्रचलित अछि। शुभ नारायण झा संग एहि विधाक उपयोगिता पर काफी लंबा चर्चा भेल छल। ओहो एहि बातक समर्थन कएलनि आर कलाकारक घोर अकाल होयबाक बात कहलनि।

एम्हर जनकपुर आ विराटनगर मे सेहो रंगकर्म मे लागल लोक केँ रोजगार आ जीविकोपार्जनक व्यवस्था कोना होएछ ई सब देखबाक अवसर भेटैत रहल अछि। हर तरहें ई कहि सकैत छी जे कलासम्पन्न भेला सँ जीवन कोना चलायब ताहि लेल सोचबाक जरुरत नहि पड़त। दुनिया मे अहाँक डिमान्ड अहाँक कला-विद्या मात्र सँ होएत छैक। गाम-घर मे देखल अछि जे लोक एक्के बेर सिनेमाक हिरो बनबाक सपना देखैत अछि, मुदा नाटकक मंच पर ओ अपन प्रदर्शन नहि कय पबैत अछि। फिल्म मे जेबाक अछि त नीक रंगकर्मी बनय पड़त। ई विधा आजुक युग मे रोजगार उपलब्ध करेबाक नीक साधन थिक। रंगकर्म केँ गाम-गाम स्थापित करबाक जरुरति अछि। दिल्ली, कोलकाता, जनकपुर, विराटनगर, पटना आदि मे कार्यरत समूह सब सँ आशा करी जे हालहि मधुबनी मे सम्पन्न नाट्यलेखन प्रशिक्षण कार्यशाला जेकाँ रंगकर्म सँ जुड़ल विभिन्न विधा पर आमजन मे जागरुकताक प्रसार करैथ। एहि लेल अन्य भाषा-साहित्य-कला सँ जुड़ल संघ-संस्था सब सेहो सहकार्य करैत प्रयास केँ आगू बढबैथ त एकर लाभ आम जनमानस मे सेहो पहुँचि पाओत आर असह्य बेरोजगारी सँ मिथिला केँ मुक्ति भेटत।

हरिः हरः!!