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मिथिला मे जीतिया पाबनि – कठिन व्रतक संग एकजुटताक सन्देश

मिहिर कुमार झा ‘बेला’, मधुबनी। सितम्बर १३, २०१७. मैथिली जिन्दाबाद!!

जितिया पावनि (जिमूतवाहन व्रत)

“जितिया पावनि बड़ भारी…धिआ पुता के ठोकि सुतएलौं, अपने खएलौं भरि थारी” – एहि पाबनि सँ जुड़ल ई लोक-कहिनी बहुत अर्थपूर्ण अछि। यथार्थतः जितिया मे निर्जला व्रत कएल जाएछ – एकर विधान बहुत कड़ा आ सावधानी सँ पूरा करयवला होएछ। माय अपन सन्तानक संग-संग पति व सम्पूर्ण परिवार एवम् परिजनक कुशलताक कामना संग ई विशेष व्रत धारण करैत छथि, व्रत आरम्भ करय सँ पूर्वक रात्रिकाल ओ बेस भोजन करैत छथि कारण ऐगला दिन सँ हुनका जलो नहि ग्रहण करबाक छन्हि आर व्रतक सब विधान पूरा केलाक बादे ओ पारन कय सकतीह। तैँ, ई कहिनी बेसी प्रचलित अछि।
 
ई व्रत आसिन मासक कृष्ण पक्ष अष्टमी कऽ हो‌इत अछि । एहि पाबनिक पूर्व दिन मे मरुआ रोटी ओ माछ खयबाक प्रथा अछि । व्रत केनिहारि सप्तमी दिन नदी-पोखरि में सामूहिक रूपें नहाय अरबा-अरबा‌ईन खा‌एत छथि। अष्टमी दिन निराहार आ निर्जला रहिकय ई व्रत राखल जाएछ ।
 
एक टा माय लेल अप्पन बच्चाक सुख, स्वास्थ्य आ दीर्घायु होयबाक कामना लेल कयल गेल ई पाबनि बहुत कठिन होएछ । निराहार आओर निर्जला उपवास आओर 36 घंटा बाद भोरे-भोर पारन, अहि कारण मिथिला मे एहि पाबनि केँ सभ सँ भारी पाबनि कहल जाएत अछि ।
 
व्रत केनिहारि नहेलाक बाद झिमनिक पात पर ख‌ईर आ सरिसोक तेल जितवाहन भगवान् केँ चढ़बैत छथि । खीरा, केरा, अँकुरी, अक्षत, पान-सुपारी, मखान, मधूर लऽ कऽ नवेद दैत छथि आ धूप-दीप जरबैत छथि ।नवमी दिन फ़ेर ओही तरहें पूजा पाठ कय कऽ खीरा, अंकुरी, अक्षत, पान-सुपारी नवेद दऽ धूप-दीप जराकऽ विसर्जन करैत छैथ ।
 

जीतिया पाबनि मनाबय के पाछाँ कथा छैक जे एकटा राक्षस एकटा गाम में आतंक मचौने छल जकरा सँ श्रीकृष्ण जी जीमूतवाहन केर रूप में अवतार लय रक्षा केलाह । परम्परानुसार तेकरा बाद सँ एहि विशेष तिथि केँ हुनका सँ विशेष आशीर्वाद निमित्त ई पाबनि मनेबाक विधान मिथिला मे खास रूप सँ प्रचलित अछि। कहबियो छैक, वेदक विधान मिथिलाक जीवनशैली मे निहित अछि।

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