कि छलन्हि भक्त प्रह्लाद केर प्राण रक्षाक सूत्र, पिता-पुत्र वार्ता सँ प्रत्यक्ष

ध्रुव शर्मा केर आध्यात्मिक विचारक मैथिली अनुवाद

विष्णु पुराणमे, पिता हिरण्यकशिपु अपन पुत्र प्रह्लादजी सँ पूछलखिन –

प्रह्लाद! तोहर एहि अतुलनीय प्रभाव केर कारण कि छौक? हरेक बेर तूँ अपन प्राण कोना बचा लैत छँ (तलवारक वार सँ, विषयुक्त भोजन सँ, अग्नि सँ, हाथीक झूंड द्वारा कुचलल गेला सँ, विषालू सर्पक प्रहार सँ)? कि तूँ कोनो मंत्र जनैत छँ या जन्महि सँ कोनो सिद्धि प्राप्त कएने छँ?

प्रह्लादजी उत्तर दैत छथिन –

न मंत्रादिकृतं तात न च नैसर्गिको मम।
प्रभाव एष सामान्यो यस्य यस्याच्युतो हृदि॥

पिताजी! ई नहि त मन्त्र केर प्रभाव सँ होएछ नहिये ई कियो नैसर्गिक (जन्म सँ प्राप्त हेबाक) प्रभावहि थिक। जँ केकरो हृदय मे अच्युत (भगवान विष्णु) बसैत छथि त ई बहुते सामान्य बात भेल।

तैँ ई जानि ली हम सब, जे भक्त झाड़फुक​-मंत्र​-तंत्र-चमत्कारक आश्रय नहि लैछ, ओ तऽ मात्र अपन स्वामी श्रीहरि केर परमसुखद चरणाश्रय केँ मात्र ग्रहण करैत अछि।