।। की कहू आब ।। की कहू आब, किछु नय फुरैत अछि । घ'र आँगन मे भम्हटा पड़ैत अछि ।। कत' गेल साओन बसात ओ झकास । धूरा बनि सभतरि मनुक्खटा उड़ैत अछि ।। मजरक सुगंध ने, नेमोक फड़ । सभठाम देखू , अलकतरा जड़ैत अछि ।। तोड़ि-ताड़ि निज सम्बंधक डोर केँ । नोन-रोटी दिल्ली मे नवतुर हेरैत अछि ।। बूढ माइ बाप की पित्ती पित्तिआइनि । पोसल यौवन आब किछु ने बूझैत अछि ।। बिलखि रहल अछि मालजालक बथान । सहरी अनतहिया आब रिकसा ठेलैत अछि ।। बिलटि रहल अछि खेत-बारी खरिहान । ह'र बला हाथ आब बेलचा उघैत अछि ।। मधुर ने नेह रहल, ने समांगक प्रीति । दोआरि पर जातिक जिंजीर चढैत अछि ।। आँगन मे भाउज, ने दलान पर भाइ । गाम मे गमक ने, सहर महकैत अछि ।। की कहू आब, किछु नय फुरैत अछि । घ'र आँगन मे भम्हटा पड़ैत अछि ।। Tel: 9532877302 [email protected]