कथा
– प्रवीण नारायण चौधरी
“हँ, हम प्रेम करैत छी अहाँ सँ – लेकिन प्रेम केँ बचेबाक लेल अहाँ केँ संग लय केँ भागब हमरा उचित नहि लगैत अछि।” – किसुन अपन स्थिति एकदम स्पष्ट भाषा मे बुझबैत कहलकैक पूजा केँ। पूजा चौंकि गेल। एकदम अपेक्षाक बिपरीत ओकरा ई जबाब बुझेलैक। ओ फेरो टोकलकैक, “किसुन! अहाँ केँ बुझल अछि जे एतुका स्थिति हमर-अहाँक प्रेम केँ कहियो स्वीकार नहि करत। हम अहाँक छात्राक रूप मे जानल जाएत रहल छी। अहाँ हमर गुरु छी। फेर ई प्रेम केर सम्बन्ध केँ कलंकित करयवला बात भेल। कि कहत लोक सब?” किसुन फेरो पूजा केँ बुझबैत कहलकैक, “लोक भले जे कहय। प्रेम त भेल अछि। विद्यार्थिये सँ प्रेम भेल अछि। परिस्थितिये प्रेम करेलक अछि। अहाँ प्रेम करय लेल बाध्य कय देलहुँ।” हँसैते कहैत रहैत छैक पूजा सँ… मुदा पूजा ओकर एहि हँसी सँ बड बेसी उत्साहित नहि भऽ रहल अछि…. ओ बिच्चे मे टोकलकैक, “ठीक छैक। हमहीं बाध्य कय देलहुँ। मुदा आब ई लोक त एतेक बेक्छाकय नहि बुझय जायत जे विद्यार्थी अपन टीचर केँ प्रेम करय लेल बाध्य कय देलकैक। सेहो सोचलियैक किसुन?”
किसुन पूजाक माथ अपन कोरा मे रखने ओकर केस केँ अपन आंगूर सँ बेर-बेर थकरैत आ मुंह पोछैत कहलकैक, “ताहि सब केँ हम झेल लेब। यैह न दुनिया हमरा बदनामी देत – सब कहत जे शिक्षक रहितो अपन छात्र सँ प्रेम केलक। हम कहि देबैक जे प्रेम मे लोक आन्हर होएत छैक। मुदा हम भागि नहि सकब अहाँ केँ लय केँ कतहु आर ठाम।” पूजा केँ वर्दाश्त सँ मानू बेसी भऽ गेल होएक, ओ तड़ैपकय उठल आ सीधे ठाढ भऽ पैर-हाथ पटकैत किसुन पर मानू क्रोध सँ भरि गेल हो – ओकर बात आ विचार केँ किसुन एखनहु मास्टर केर दृष्टि सँ देखि रहबाक शिकायत ओकर आँखि मे साफ देखा रहल छलैक। ओ फेर कहलकैक, “अहाँ कहि देबैक जे प्रेम आन्हर होएत छैक। मुदा हम? हम कि कहि सकबैक? एतय पूरा समाज मे हमर माय-बापक एकटा प्रतिष्ठा छैक। भागि जेबैक त लोक कनी दिन लेल हुनका सब केँ कहबो करतैक जे फल्लाँक बेटी मास्टरे संगे भागि गेलैक। मुदा सब दिन उल्हन-उपराग सुनय लेल हम त नहि न रहब सभक सामने। हमरा वर्दाश्त कोना होयत?”
किसुन फेर पूजा केँ अपन अंग मे सटबैत कहलकैक, “देखू पूजा! प्रेम एतेक कमजोर भाव नहि होएत छैक जाहि मे हम सब समाज सँ डराकय आन ठाम जा कय घर बसा लेब। अहाँ जनैत छी न जे हम कतेक वृद्ध – बेसहारा माता-पिता आ छोट भाइ-बहिन सभक जिम्मेदारी सहित एतय शहर मे दू पाइ के रोजगार करैत हुनका सब केँ पोसैत छी। हम अपन जीवनक कतेक छोट अवस्था सँ ई जिम्मेदारी कपार पर लेलहुँ से अहाँ सँ छुपल नहि अछि। तखन अहाँ जँ हमरा ई सब जिम्मेदारी छोड़ि बस प्रेम आ प्रेमिकाक संग कोनो नया शहर अथवा स्थान पर भागय लेल कहि रहल छी से सोचू जे कि अवस्था होयत। जरुरी नहि छैक जे ओतय तुरन्त हमरा ट्युशन पढेबाक लेल या कोनो प्राइवेट स्कूल मे पढेबाक लेल नौकरी भेट जायत। संघर्ष करय लेल सेहो किछु प्रारंभिक सहयोगक आवश्यकता होएत छैक।” पूजा किसुनक आँखि मे अपना लेल अथाह प्रेम त देखिये रहल छल, संगहि ओकर कमजोर आर्थिक अवस्था आर ताहि पर सँ वृद्ध माँ-बापक सहारा होयबाक जिम्मेदारी सेहो देखेलैक। पूजा एकदम निढाल बस आँखि मुनने नोरे-झोरे कानि रहल छल। भावहीन…. बस आन्तरिक मन भीतर सब द्वंद्वक दर्शन करैत आ प्रेम कतेक असह्य पीड़ा एखनहि सँ दय रहल अछि से सोचैत…. ओ अपना केँ बुझा रहल छल।…..
किसुन ओकर मोनक भाव केँ पढैत कहलकैक, “आइ न हम मास्टरी कय रहल छी। काल्हि जखन अहाँ डाक्टरनी बनि जायब त अहाँक माता-पिता अहाँक इच्छा जरुर पूछत आर अहाँ ताहि समय मे हमर नाम कहबैक त ओ सब एको बेर नहि नै कहता।”… पूजा लेकिन शून्य मे – आँखि मुनने नोरे-झोरे कतहु आरे हेरायल अछि। ओकरा प्रेम त भऽ गेल छैक, मुदा प्रेमीक बात सब सँ कोनो उत्साह नहि जागि रहलैक अछि। ओ परेशान अछि। किसुन केर बुझेबाक शैली शिक्षक केर रूप मे ओकरा विषय त नीक सँ सिखा सकैत छल, लेकिन ई नैतिक शिक्षाक कोनो टा असैर नहि पड़ि रहल छलैक ओकरा ऊपर। ओ किसुन एक साधारण शिक्षक रहितो ओकर आँखि, बात आ हृदयक भाव सब केँ ततेक बेसी पसीन करैत छल जे अन्ततोगत्वा अपन हृदयक बात एक दिन कागज पर कोरिकय किसुन केर किताब मे धीरे सँ सरका देलक। बाद मे किसुन जखन घर पर आयल आर ओकर किताबक भीतुरका पाना मे फँसल ओ पहिल प्रेम पत्र एक विद्यार्थी हाथ सँ प्राप्त केलक त ओकरो अपन सुधि-बुधि केर ठेकान नहि रहलैक। ओ सोचय लागल ओहि सब प्रकरण पर जे पूजा ओकरा पहिनहुँ मन मे दुविधाक स्थिति कइएको बेर बनेने रहैक। लेकिन आब त एहि पत्र मे स्पष्ट कय देलकैक जे ओ एकरा बहुत चाहैत छैक। पूजा सेहो आँखि मुनने एहि फ्लैश बैक मे डूबल अछि आर आँखि सँ दहो-बहो नोर सावनक झरी जेकाँ झहैर रहल छलैक। किसुन ओकरा एम्हर अपनहि धून मे शिक्षक जेकाँ प्रेम-विज्ञानक क्लास लय रहल छलैक। ताहि मे नैतिक पाठ, प्रेमीक जिम्मेवारी, प्रेमिकाक सहयोगीक रूपें भूमिका आदि सब बात कहने जा रहल छलैक। लेकिन पूजा…..
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समय आबि गेलैक। किछुए दिन मे ई प्रेमक रंग प्रेमी पर एहि तरहें चढि जाएत छैक जे कतबो नुकाउ, ई वैरी संसार बुझिये जायत। किसुन द्वारा पूजा केँ कतबो बुझायल गेलैक, लेकिन ओ अपन एक छोट गलती सँ आखिरकार अपन प्रेम होयबाक बात अपनहि परिवारक लोक केर सोझाँ प्रकट कय देलक। किसुन जखन कि ओकरा बुझेने छलैक जे कोनो हाल मे पढाई करैत उमेर मे ई सब भान अपन अभिभावक या केकरो नहि होबय देबाक छैक। धरि प्रेम एक एहने स्वाभाविक प्रक्रिया थिकैक जे लोकक मन-मस्तिष्क आ सब हाव-भाव मे रचय-बसय लगैत छैक। नहियो चाहैत आकर्षण मन केँ खींचने चलि जाएत छैक। लोकलज्जाक ज्ञान किसुन आ पूजा दुनू मे रहैक। लेकिन दुनू एकर दुष्परिणाम केँ अपना-अपना तरहें भोगय लेल तैयार छल। तैँ प्रेम करैत छल एक-दोसर सँ। आर आइ ओहि दिनक मिलनकाल मे कएल गेल गप केर दुष्परिणाम सोझाँ आबि गेलैक। पूजा जे किसुनक प्रेम पत्र पढिकय नुकेलक से ओकर छोट बहिन देवी देख लेलकैक आ ओ पढि लेलकैक। देवी केँ पूजाक ई बात अनसोहाँत लगलैक आर ओ तुरन्त ओ पत्र अपन माय केँ देखा देलक। माय सेहो एकरा रहस्य बनाकय नहि राखि सकल आर ओ दुनू गोटा होएत-होएत परिवारक सब सदस्य सँ एहि रहस्य केँ शेयर कय लेलक। पूजा केँ एकाएक परिवारक सब सदस्यक सम्मिलात बैसार मे बजायल गेलैक आर पूछल गेलैक जे तोहर ट्युशन सर संग केहेन सम्बन्ध छौक। ओकर नजरि झुकि गेलैक। ओकरा किसुनक बात मोन पड़ि गेलैक। किसुन पहिनहिये बुझा देने रहैक जे मानि लियऽ पूजा जे अहाँक हाथ सँ ई प्रेम पत्र केकरो दोसराक हाथ लागि गेल आर हमर-अहाँक सम्बन्ध केँ कियो स्वीकार त करत नहि, तऽ अहाँ पर कि बीतत…. ओहि दिन त पूजा ‘धू जाउ, एहनो कहूँ भेलैक जे हमर प्रेम पत्र दोसर पढि लेत..’ से कहिकय टारि देने रहैक… लेकिन किसुन ओकरा बुझा देने रहैक जे “जँ कहियो एहेन भऽ जाय त सहज स्वीकार कय लेब जे हँ, अहाँ केँ हमरा संग प्रेम अछि, एक निश्छल प्रेम… शरीर आ जबानीक प्रेम सँ बहुत ऊपर मात्र आ मात्र मनक आकर्षण सँ उत्पन्न प्रेम…. भविष्यक एक विचित्र सपनाक प्रेम जाहि मे अहाँ आर हम एक संग अपन दुनिया सजेने छी…. ताहि सँ बेसी कोनो प्रेम नहि…. हिन्दी फिल्म वला त एकदम्मे नहि।” – बस पूजाक दिमाग मे अचानक प्रकाश पसैर गेलैक आर ओ सब सँ नजरि मिलाकय कहि देलक जे “हाँ, सर सँ हमरा प्रेम अछि। ओ हमरा बहुत मानैत छथि। क्लास मे टौप करेला आ हमर सब कमजोरी केँ दूर कय देला। हमरा हुनका सँ सचमुच बहुत प्रेम अछि।”
सुसंयोग सेहो ओकर नीक रहैक। प्रेम पत्र त एगो पकड़ायल रहैक मुदा आब ओकर गार्जियन सब ओकरा सँ दबाव दय केँ सब पत्र सब निकलबा लेलकैक। पूजा सेहो किसुनक सिखायल बाट पर चलैत ओ सब पत्र आराम सँ गार्जियन केँ देखा देलक। ओ कोनो भारीपन नहि महसूस कय रहल छल। कारण ओकर प्रेम सच मे निश्छल छलैक। एकटा ट्युटर संग ओकर जेहेन बर्ताव होएत-होएत प्रेम मे परिणति पेने रहैक ताहि मे कतहु सँ दोषयुक्त प्रेमक कोनो बाते नहि रहैक। ओ प्रेम केवल मनक प्रेम रहैक। आत्माक प्रेम रहैक। ओहि मे शरीर केर कोनो भूमिका कतहु नहि रहैक। नहिये कतहु सँ कोनो प्रेम पत्र मे एहि तरहक किछु बात कहियो ओ दुनू एक-दोसर केँ लिखने छल। तैँ गार्जियन एहि निश्छल प्रेम सँ बेसी आतूर नहि भेल। लेकिन…. ओकरा आब ट्युशन पढय सँ मना भऽ गेल। सर केर छाया सँ दूर रहबाक कठोर आदेश भेट गेलैक। एतेक तक जे एहि पोल खुलबाक प्रकरण सँ अनभिज्ञ किसुन जखन पूजा सहित ओकर भाइ-बहिन केँ पढेबाक लेल ओकर घर पहुँचल त विद्यार्थी सभक बदला घरक जतेक महिला सदस्य छलखिन ओ सब आबिकय ओकरा सँ प्रश्नक झड़ी लगा देलखिन। किसुन तेज दिमागक कुशल शिक्षक होयबाक कारणे बेसी समय नहि लैत सब रहस्य सँ अवगत भऽ गेल। ओ मुस्कुराइत आइ-माय केर सब प्रश्नक जबाब दैत रहल। अन्त मे ओकरा सँ सीधे पूछल गेलैक, “कि सर? अहाँ केँ एहेन अपवित्र सम्बन्ध बनेबाक चाही?” किसुन हँसैत कहलकैक, “मैडम! जेकरा अहाँ अपवित्र बुझि रहल छियैक तेकरा हम पवित्रो सँ पवित्र बुझि रहल छियैक। अपवित्र त ओ भेलैक जे गुरू-छात्र सम्बन्ध मे हवस – सेक्स – अबैध शारीरिक सम्बन्ध आदि वला प्रेम करय। हमरा त अपन एक तेज-तीक्ष्णबुद्धि छात्र सँ ओकरा डाक्टर बनेबाक लेल प्रेम भेल अछि। एकर प्रमाण हमरा सभक बीच भेल प्रेम-वार्ताक चिट्ठी सब अछि।” ताहिपर गार्जियन सब सेहो कन्विन्स भेल। किसुन केर घर धरि आबि पूजाक सब चिट्ठी वापस करबाक जिद्द केर कारण ओहो सब त नहि मुदा अधिकांश पत्र वापस कय देलकैक। कारण ओ ई सब कैलकुलेशन पहिनहि कय चुकल छल जे कहियो आ कखनहु एहेन परिस्थिति भऽ सकैत छलैक। लेकिन गुप्त समझौता दुनू मे यैह रहैक जे भले कतबो झंझटि लागत, मुदा अपन प्रेम केँ कहियो हारय नहि देब। एहि तरहें प्रेम-पत्र सब वापस भऽ गेलाक बाद किसुन आ पूजाक प्रेमकथाक पहिल दृश्यक पटाक्षेप भऽ गेलैक। मुदा दोसर दृश्य पुनः समझौता मुताबिक भेलैक से दोसर दिनक कथा मे!