मिथिलाक ऐतिहासिक पुरुष
मिथिलाक किछु महान आ महत्वपूर्ण व्यक्तित्व लोकनिक चर्चा
डा. लक्ष्मीकान्त श्रीवास्तव रचित लोक-संस्कृति कोश सँ बहुत नीक-नीक जानकारी सब भेटैत रहल अछि। शब्दकोश रचना मे हुनका द्वारा संग्रहित विशाल भंडार सँ लेखकक महानता त सिद्ध होएते अछि, ईहो बुझय मे अबैत अछि आजुक युग मे हमरा लोकनि बेसी पेटे पाछू बेहाल छी। एहि तरहक महत्वपूर्ण रचना सब फेरो – वर्तमान युग मुताबिक कियो कय रहल अछि या नहि… ई दुविधा मे देने अछि। टिटही जेकाँ ‘मैथिली महायात्रा’ केर कार्य हमहुँ शुरु कय एहि तरहक महान व्यक्ति सभक परिचय समेटबाक लेल सोचलहुँ, मुदा परिवार, पेट आ पहिचान प्रति जिम्मेवारीक कारण गति बहुत धीमा अछि। आउ, महान लोक सभक चर्चाक क्रम मे ‘क’ सँ किछु विभूतिक चर्चा करैत छी।
किराय मुसहरः
भारतीय जनतन्त्र द्वारा मानवीय समता केँ व्यवहार मे प्रकट करबाक जे प्रयास कएल गेल, तेकरे एक प्रतिमान पुरुष भेलाह अछि – ‘किराय मुसहर’। मधेपुरा जिला निवासी किरायजी प्रथम संसदीय चुनाव मे मधेपुरा क्षेत्र केर प्रतिनिधि बनलाह। हिनकर भोलापन देखि भारतक सांसद मे काफी चर्चा होएत छल। ओ जखन बजैत छलाह त अति सहज-सहज उदाहरण जे गाम-घर सँ जुड़ल बात सब होएत छल आर हुनकर बौद्धिक दृष्टि मे व्यवहार मे देखल-बुझल बात सब होएत छल – ओहि मे कोनो बनाबटी भभटपन सब या मिथ्या कल्पनाक पुट कतहु सँ नहि होएक। ई विशिष्टता हुनकर निश्छल स्वभाव प्रकट करय जे तत्कालीन प्रधानमंत्री आ काँग्रेस (सत्तापक्ष) नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू केँ खूब नीक लगैत छलन्हि।
कीर्तिसिंहः
मिथिला नरेश राजा ज्ञानेश्वर अथवा गणेश्वर केर तीन पुत्र छलन्हि – वीरसिंह, कीर्तिसिंह आ राजसिंह। वीरसिंह शत्रु-संग्राम मे स्वर्गवासी भऽ गेलाह। अतः हुनकर अनुज कीर्तिसिंह मिथिलाक राज-सिंहासन पर प्रतिष्ठित भेलाह। ताहि समय इब्राहिम शाह सल्तनत पूरे भारत पर अपन दबदबा रखने छलैथ। यैह राजा कीर्तिसिंह मैथिली महाकवि कोकिल विद्यापति केर आश्रयदाता छलाह। ‘कीर्तिलता’ एवं ‘कीर्तिपताका’ केर रचना विद्यापति हिनकहि यशगान करैत अछि।
कृत्यानन्द सिंहः
वर्तमान पुर्णियां जिला अन्तर्गत पड़यवला राजबनैली मिथिलादेशक एक प्रसिद्ध राज रहल अछि। एकर कतेको रास कीर्ति आइयो मिथिलाक नाम आ गुण दुनू केर संरक्षण मे महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करबाक प्रमाण जीबित प्रभाव मार्फत दैत अछि। राजबनैली केँ मिथिला संस्कृति केर सुसंस्कृत केन्द्रक रूप मे ख्याति प्राप्त अछि। एहि राजवंशक एक सुहृद् साहित्यसेवी भेलाह – राजा कृत्यानन्द सिंह। ओ एकटा ग्रन्थ सेहो लिखने छथि – ‘पुर्णियांः शिकार की भूमि’। बिहार प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन केर वार्षिक अधिवेशन (१ नवम्बर, १९४२ ई) केर अवसर पर हिनकर मुद्रित अभिभाषण हिन्दी-साहित्यक एक गवेषणात्मक कृति थिक।
कुमार गंगानन्द सिंहः
राजबनैली परिवारक एक दोसर प्रसिद्ध पुरुष कुमार गंगानन्द सिंह भेलाह। मिथिलाक सांस्कृतिक परिष्कार एवं वाणी संस्कार केर अग्रणी पुरोधा मानल जाएत छन्हि हिनका। कलकत्ता विश्वविद्यालय सँ एम.ए. केर उपाधि मात्र हिनकर लघु परिचय थिक। संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी केर निष्णात पंडत और हिन्दी तथा मैथिली केर सर्जनात्मक प्रतिभा सँ विभूषित एहि साहित्यकार केर अविस्मरणीयता बिहार प्रान्तीय राजनीति केँ सेहो उपलब्ध भेल। हिनकर जन्म २४ सितम्बर, १८९८ ई. केँ श्रीनगर (पुर्णियां) में भेल आर मृत्यु १७ जनवरी, १९७० केँ भेलनि। १९१७ ई सँ मैथिली सेवक केर रूप मे ई दत्तचित्त भऽ कार्य आरम्भ कएलनि। मैथिली केर कथा-साहित्य ‘मनुष्यक मोल’ केर गौरव लय केँ गंगाबाबू केँ याद करबैत अछि। ‘जीवन संघर्ष’ आर ‘अगिलही’ (उपन्यास) अनुभूति तथा लोकजीवन केर गाथाक साक्ष्य प्रकट करैत अछि। ‘विवाह’, ‘पंडितपुत्र’, ‘पंच-परमेश्वर’, ‘आमक गाछी’, ‘बिहाड़ि’, शीर्षक केर कथा सब केँ ‘पंचपत्र’ सँ मैथिली साहित्यक गौरव बढल अछि। कुमार गंगानन्द बाबू बिहारक शिक्षा मंत्री सेहो रहलाह। कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालयक कुलपति पद केँ सेहो ई सुशोभित कएलनि।
ई क्रम बहुत दूर धरि जाएत अछि। ‘क’ सँ सैकड़ों विभूतिक चर्चा भेटैत अछि उपरोक्त पोथी मे। पुनः दोसर बेर आरो किछु महान विभूतिक विषय मे लिखब।
हरिः हरः!!