स्वाध्यायः रामचरितमानस सँ सीख – २३

१. रामायण कीर्तिरूपिणी नदी छहो ऋतु मे सुन्दर रहैछ। हर सहमय ई परम सुहाओन आर अत्यन्त पवित्र रहैछ। एहि मे शिव-पार्वतीक विवाह हेमन्त ऋतु थिक, श्रीरामचन्द्रजीक विवाह सुन्दर शिशिर ऋतु थिक, श्रीरामचन्द्रजीक विवाह-समाज केर वर्णन आनन्द-मंगलमय ऋतुराज बसंत थिक, श्रीरामजीक वन-गमन दुःसह ग्रीष्म ऋतु थिक जाहि मे मार्गक कथा कड़ाका रौदा आ लू थिक, राक्षसक संग युद्ध वर्षा ऋतु थिक जे देवकुलरूपी धानक लेल सुन्दर कल्याण करयवाली अछि, रामजीक राज्यकालक सुख, विनम्रता आर बड़ाई निर्मल सुख देबयवला शरद ऋतु थिक।
२. एहि रामायणरूपी नदीक जल केर निर्मल तथा अनुपम गुण सती शिरोमणि सीताजीक गुणक कथा थिक। श्रीभरतजीक स्वभाव एहि नदीक सुन्दर शीतलता थिक जे सदा एक समान रहैत अछि आर जेकर वर्णन नहि कएल जा सकैत अछि। चारू भाइ केर परस्पर देखब, बाजब, भेटब, एक-दोसर सँ प्रेम करब, हँसब आर सुन्दर भाइचारा एहि जलक मधुरता व सुगन्ध थिक।
३. रामायणरूपी जल बहुते उत्कृष्ट अछि जे सुनले सँ गुण करैत अछि आर आशारूपी प्यास केँ आ मनक मैल केँ दूर कय दैत अछि। ई जल श्रीरामचन्द्रजीक सुन्दर प्रेम केँ पुष्ट करैत अछि, कलियुगक समस्त पाप और ओहि सँ होवयवला ग्लानि केँ हैर लैत अछि। ई संसारक जन्म-मृत्यु रूप श्रम केँ सोइख लैत अछि, सन्तोष केँ सेहो संतुष्ट करैत अछि। पाप, ताप, दरिद्रता और दोष सब केँ नष्ट कय दैत अछि।
४. रामायणरूपी जल काम, क्रोध, मद, लोभ तथा मोह केँ नाश करयवला आर निर्मल ज्ञान तथा वैराग्य केँ बढबयवला होएछ। एहि मे आदरपूर्वक स्नान कएला सँ आर एकरा पीयइ सँ हृदय मे रहयवला सब पाप-ताप मेटा जाएत अछि। जे एहि जल सँ अपन हृदय केँ नहि धोलक, ओ कायर कलिकाल द्वारा ठकल गेल बुझू। जेना प्यासल हिरन सूर्यक किरण रेतपर पड़ला सँ उत्पन्न भेल जल केर भ्रम केँ वास्तविक जल बुझिकय पीबय लेल दौड़ैत अछि मुदा जल नहि पाबिकय बहुत दुःखी होएछ तहिना कलियुग सँ ठकल गेल लोक सेहो विषय सभक पाछाँ भटैककय दुःखी होयत।
५. अपन बुद्धिक मुताबिक एहि सुन्दर जलक गुण सब केँ विचारिकय स्नान कय केँ श्रीभवानी-शंकर केँ प्रणाम कय केँ ई कथा कहबाक-सुनबाक चाही। हर तरह सँ भटकैत मन केँ संयमित कय केँ श्रीरामचन्द्रजी केर चरण मे अनुरत भऽ हमरा लोकनि केँ एहि चरित्रक आनन्द लेबाक चाही।
हरिः हरः!!