स्वाध्यायः रामचरितमानस सँ सीख – २१

१. रामायण चरित्र केँ सावधानीपूर्वक गान करयवला एहि सरोवर केर चतुर रखबारि थिक, एकरा आदरपूर्वक सुनय वला सुन्दर मानस केर अधिकारी उत्तम देवता थिक।
२. अति दुष्ट आ विषयी अभागल मनुष्य एहि रामायणरूपी सरोवर हेतु बगुला आ कौआ थिक जे एहि सरोवरक पास तक नहि जाएत अछि – कियैक तँ घोंघी, बेंग आ सेवार केर समान विषय-रस सँ भरल नाना तरहक कथादिक कमी छैक एतय। ताहि सँ विषयी लोक एहि सरोवर धरि नहि पहुँचि सकैत अछि। कहल जाएत छैक श्रीरामजीक कृपा बिना एतय धरि एनाय केकरो लेल संभव नहि छैक। श्रद्धा, सत्संग आर भगवत्प्रेम केर बिना कियो एकरा नहि पाबि सकैत अछि।
४. घोर कुसंग भयानक खराब रस्ता थिक, कुसंगीक वचन बाघ, सिंह आर साँप थिक, गृहस्थीक जंजाल बड़का-बड़का पहाड़ थिक, मोह, मद, आर मान बीहड़-वन थिक तथा नाना प्रकारक कुतर्क भयानक नदी सब थिक। जेकरा पास श्रद्धारूपी बटखर्चा नहि छैक आर संतक संग नहि छैक, आर जेकरा श्रीरघुनाथजी प्रिय नहि छथिन ओकरा वास्ते ई मानस जन्महि सँ अगम छैक।
५. जँ केओ मनुष्य कष्ट उठाकय ओतय धरि पहुँचियो जायत त ओतय जाएत देरी ओकरा नींदरूपी जूड़ी आबि जाएत छैक। हृदय मे मूर्खतारूपी बड़ा कड़ा जाड़ लागय लगैत छैक, जाहि सँ ओतय गेलो पर ओ अभागल स्नान नहि कय पबैत अछि। एहेन अभागल सँ कँ कियो ओतुका हाल पूछत त ओ अपन अभाग्यक बात नहि कहि सरोवर केर निन्दा करैत ओकरा बुझबय लगैत अछी। मुदा श्रीरामचन्द्रजी जेकरा सुन्दर कृपाक दृष्टि सँ देखैत छथिन ओकरा एहि बाधा आदिक कोनो भय नहि होएत छैक। वैह आदरपूर्वक एहि सरोवर मे स्नान कय पबैत अछि, जलपान करैत अछि आर महान भयानक त्रिताप (आध्यात्मिक, आधिदैविक व आधिभौतिक) सँ नहि जरैत अछि।
६. जेकरा मोन मे श्रीरामचन्द्रजीक चरण मे सुन्दर प्रेम छैक ओ एहि सरोवर केँ कहियो नहि छोड़ैत अछि। तैँ, जे एहि सरोवर मे स्नान करबाक इच्छा रखैत हो ओकरा लेल मोन लगाकय सत्संग करब आवश्यक छैक। गोस्वामी तुलसीदासजीक सेहो एहने तरहक प्रभुजीक सत्कृपा-सत्संगत पेबा सँ एहि मानस-सरोवर केँ हृदयक नेत्र सँ दर्शन भेलाक कारण आइ ई रामायणरूपी हुनकर श्रीरामजीक प्रति उमड़ल प्रेम प्रवाह भेटल अछि। एहि प्रवाह सँ रामायण समान सरयूजी निकलली जे सुन्दर मंगल केर जैड़ थिकी। लोकमत आ वेदमत एहि नदीक दुइ सुन्दर किनार थिक। ई सुन्दर मानस-सरोवर केर कन्या सरयू नदी बहुत पवित्र अछि आर कलियुगक पापरूपी तिनका तथा वृक्षादि केँ उखाड़ि फेंकैत अछि। तिनू प्रकारक श्रोता लोकनिक समाज एहि नदीक दुनू किनारापर बसल बस्ती, गाम आ नगर छथि, आर संत लोकनिक सभा समस्त मंगल केर जैड़ अनुपम अयोध्याजी छथि।
हरिः हरः!!