मैथिली राज्यक दमन झेलैत कतेक दिन जियत

कोर मिथिला - ऐतिहासिक राजधानी जनकपुर मे 'स्वागतपट्ट नेपालीमे' - मैथिली नदारद - फोटो: अमित आनन्द

मैथिलीभाषी सात करोड़ – लेकिन मैथिलीक अधिकार एकहु टा नहि। ई कथन तखन चरितार्थ होइत अछि जखन राज्य द्वारा मैथिली केँ अधिकारविहीन बनाकय राखल जाइछ। दशकों धरि अपन संघर्षक बल पर भारतकेर संविधान मे ससम्मान मैथिली स्थान पौलक, लेकिन ताहि सँ पूर्व मैथिली सँ जन्म लेल अनेको भाषा केँ संविधान स्थान दऽ देलक। ई सब एहि लेल संभव होइत अछि जे मैथिलीभाषी सँ राजनैतिकरूप मे बेसी सशक्त आ जाग्रत ओ सब भाषाभाषी अछि। बिन मंगने माइयो बच्चा केँ दूध नहि पियबैत अछि, मैथिलीभाषीक माँग पर स्वयं मैथिलीभाषियेक विमति, घमर्थन आ आपसी कूतर्की बहसक परिणाम अछि जेकर प्रमाण भारतीय संविधानक आठम अनुसूची मे मैथिली सँ जन्म लेल भाषा बंगाली, असमिया, नेपाली, आदि केँ पहिनहि स्थान भेट गेल आ मैथिली केँ हारि-थाकि अन्त-अन्त मे भारतीय राष्ट्रवादिताक समर्थक दल द्वारा २१म शताब्दीक प्रारंभ मे देल जा सकल। केन्द्र स्तर पर विभेदक एहि सँ बेसी दोसर उदाहरण नहि भऽ सकैत अछि। दोष केकर आ कोना ई सब स्वयं सोचनीय विषय अछि। आब संविधानक आठम अनुसूची मे स्थान पाबि चुकल मैथिली सरकारी विज्ञापन व राज्यक गजेट व बजेट मे कतेक अधिकार पौलक अछि ई ओहि सँ इतर विषय आ वर्तमान सरोकारक बात थीक जाहि पर राजनीतिकर्मी सँ लैत सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, भाषिक, बौद्धिक कर्मी लेल सोचबाक आ तदनुरूप कार्य करबाक विषय थीक।

कुल जनसंख्याक तीन-चौथाई मैथिलीभाषी वर्तमान भारतक बिहार राज्य मे अछि – लेकिन विडंबना कहब आ कि षड्यन्त्रकारी राजनीति, मैथिली भाषा केँ एखन धरि ‘राजभाषा’क दर्जा तक नहि देल गेल अछि। षड्यन्त्रकारी राजनीति कहबाक तात्पर्य अछि जे जखन मैथिलीकेँ भाजपा नेतृत्वक केन्द्रीय सरकार संविधान मे स्थान दैत अछि तऽ बिहारक तथाकथित समाजवादी धराक प्रखर नेतृत्वकर्मी आ स्वयं मैथिलीभाषी तथाकथित जननेता लोकनिक टिप्पणी अबैत अछि जे ई मैथिली भाषाकेँ भाजपा द्वारा सम्मान देला सँ अल्पसंख्यक ब्राह्मण-कायस्थ व किछेक उच्च जातिक वोट बढत, मैथिली आमजनक भाषा नहि छी, ताहि हेतु आमजनक वोट हुनके सबकेँ भेटत। स्पष्ट अछि, बिहारक राज्यसत्ता हर समय मैथिलीकेँ उच्चवर्गक भाषा कहि कूप्रचार करैत रहल अछि।

पहिने कर्पुरी ठाकुर केर मुख्यमंत्रीत्व मे मैथिली केँ शिक्षा सँ हँटेबाक कुत्सित कार्य भेल, हलाँकि फेर ओ अपन निर्णय वापस लय मैथिलीकेँ आमजनक भाषा मानैत पुनर्बहाल कय देलनि; पुन: लालू यादव केर मुख्यमंत्रीत्व मे मैथिली केँ बिपीएससी सँ हँटेबाक निर्णय, डा. जयकान्त मिश्र केर जीतल याचिका जे संविधानप्रदत्त अधिकार मैथिलीभाषी केँ मैथिली माध्यम सँ प्राथमिक शिक्षा भेटय तेकर विरुद्ध बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट तक अपील मे गेल आ मैथिलीभाषी केँ अधिकारहीन राखय लेल कोनो कसैर बाकी नहि रखलक, बाद मे ओहि अपीलक विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट द्वारा रूलिंग देलाक बावजूद आइ धरि बिहार सरकार द्वारा कोनो तरहक शैक्षणिक व्यवस्था मे मैथिलीकेँ स्थान नहि देल जा सकल अछि। गोटेक रास देखाबटी लेल – नाम लेल जे कार्य मैथिली अकादमीक स्थापना कय कैलो जा रहल अछि, ओहि सँ गोटेक सरकारी चाटुकार सबहक पेट टा चलय आ मंत्रालय तक कमीशन पहुँचय, किछु एहने सन डेग सब उठल प्रतीत होइछ। अकादमी सँ मैथिली केँ लाभ भाषा संवर्धन-प्रवर्धन मे नाम लेबा योग्य एकहु टा नहि अभरैत अछि।

पटनाक दुर्दशा तऽ एहने अछि जे एकमात्र सर्वश्रेष्ठ मैथिलक संस्था चेतना समिति तक केँ बिहारी राजनीतिक तीर सँ गाँथिकय भीष्म-पितामह समान इच्छा मृत्युक वरदान सहित कुरुक्षेत्र मे तेना सुता देलक जेकर चर्च करैत अफसोसक सिवा दोसर किछु नहि होइत अछि। जाहि चेतना समितिक संस्थापकगणक सुदृढ दूरदृष्टि ओ संकल्प सँ मैथिलीकेँ संविधानक आठम अनुसूची मे स्थान भेटल तेकर दशा एहने अछि जे पटना मे स्व. डा. जयकान्त मिश्रक सपना अनुकूल बिहार सरकार सँ माँग करैत आमरण अनशन कैल जाइछ, लेकिन स्व. ललित ना. मिश्रक नेता सपुत विजय मिश्र केँ एक बेर हालोचाल पूछबाक अवसर नहि भेटैत छन्हि। पटनाक योगदान मैथिली लेल अविस्मरणीय अछि, चाहे रेडियो युग हो, चाहे छापा पत्रिकाक युग, चाहे रंगकर्म, चाहे सांस्कृतिक आयोजन, पोथीक प्रकाशन – सब क्षेत्र मे पटना चीरकाल धरि मैथिली लेल संघर्ष करैत महत्त्वपूर्ण स्थान दियौलक, लेकिन आजुक पटना केँ नहि जानि केहन लकबा मारि देलक जे आमंत्रणक बावजूद मैथिली लेल उठल एक उत्कृष्ट डेग ‘अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली कवि सम्मेलन-२०१५, विराटनगर’ मे सहभागिता जनेबाक ओकादि नहि होइत अछि एहि ठामक स्रष्टा ओ मुहपुरखाकेँ। बिहार सरकारक दलाली सँ पृष्ठपोषण चाहनिहारक जबरदस्त भूमिका केँ नकारल नहि जा सकैछ पटनाक एहि दुर्दशा मे, लोक सोचैछ जे पटनो मे जे किछु आयोजन होइत अछि से कहीं बन्न नहि भऽ जाय जँ बिहार सरकारक विरुद्ध अपन अधिकार लेल आन्दोलन करब तँ। किछु यैह सब कारण सँ मैथिली नहिये राजभाषाक दर्जा पौलक, नहिये अकादमी सँ समुचित लाभ, नहिये चेतना समितिक पूर्वक समान प्रखर पकड़… हर तरहें मैथिली नितदिन ह्रासोन्मुख बुझाइछ। समग्र मे राज्यक षड्यन्त्र सँ एना उपेक्षित अछि मैथिली।

नेपालमे मैथिली दोसर सबसँ बेसी बाजल जायवला भाषा थीक। सरकारी आँकड़ा सेहो यैह कहैत अछि। नेपालीभाषी ४०%, मैथिलीभाषी १३% व अन्य भाषा सँ नेपाल सेहो बहुभाषिक आ बहुसांस्कृतिक, बहुजातीय मुलुक अछि। आब भारत जेकाँ एतहु संघीय शासन प्रणाली अनबाक वास्ते संविधान सभाक दोसर बेर चुनाव होइत राज्यक संचालन कैल जा रहल अछि। एतय सेहो प्राथमिक शिक्षा मे मैथिली माध्यम केर स्वीकृति देल गेल अछि। भाषा नीति मे सबहक मातृभाषाकेँ सम्मान देल गेल अछि। अन्तरिम संविधान सँ शासित वर्तमान मुलुक नेपाल मैथिली लेल उदारता देखबैत अछि। बेर-बेर कहैत अछि जे मैथिली दोसर राजभाषाक रूप मे स्थापित होयत। लेकिन एतहु राजनीतिक षड्यन्त्र किछु बिहारे जेकाँ वोट-बैंक आ सत्तालिप्साक पूर्ति हेतु सम्पर्क भाषाक रूप मे हिन्दीकेँ स्थापित करबाक खूब जोरदार माँग करैत अछि, तैँ मैथिली लेल कहियो मुह सँ चूँ तक नहि निकलैत छैक। मैथिलीभाषी केँ एतहु बिहारक बिहारिये जेकाँ वृहत् पहिचान ‘मधेशी’ कहि उछालबाक प्रयास होइत छैक, मुदा प्राकृतिक न्याय सँ मातृभाषा ओ संस्कृति प्रति कोनो निस्तुकी सोच तक परिलक्षित नहि होइत छैक।

कोर मिथिला - ऐतिहासिक राजधानी जनकपुर मे 'स्वागतपट्ट नेपालीमे' - मैथिली नदारद - फोटो: अमित आनन्द
कोर मिथिला – ऐतिहासिक राजधानी जनकपुर मे ‘स्वागतपट्ट नेपालीमे’ – मैथिली नदारद – फोटो: अमित आनन्द

राज्यक दमन एतहु छैक। एक तरफ देब, दोसर तरफ पेंच लगायब! मैथिली मे पोथी छपि गेल छैक, मुदा वितरण आ व्यवस्थाकेँ लागू करबाक कार्य आइ धरि नहि भेलैक अछि। यदि कतहु काज बढेबाक लेल सरोकारवाला आगू बढितो छैक तऽ ओतय जिला प्रशासन, न्यायपालिका आदि द्वारा पेंचियल नीतिक बात कहि अधिकार दमन कैल जाइत छैक। सरकारी विज्ञापन, पत्र-पत्रिका लेल अनुदान, मैथिली पोथीक प्रकाशन आदि मे राज्यक सहयोग नदारद छैक। कोर मिथिला मे ‘नेपाली भाषा’ मे वाल-पोस्टर व बोर्ड-बैनर आदि टांगिकय उनटे नेपाली भाषाक एकल रूप केँ संरक्षित रखबाक कुत्सित कार्य कैल जाइछ। एतहु सरकारी व्यवस्थापन मे भाषा आ संस्कृति लेल ग्राम-पंचायत या नगरपालिका द्वारा स्थानीय स्वायत्त शासन मे आ पुन: जिला विकास समिति द्वारा केन्द्रिय अनुशंसित योजना मे – मैथिली केँ कतहु खास ध्यान नहि देल जाइत छैक। ललीपप चटेबाक लेल एकटा विद्यापति संरक्षण कोषक स्थापना कैल गेलैक, लेकिन ओकरो भूमिका मैथिली अकादमी या साहित्य अकादमी जेकाँ बायस्ड – पूर्वाग्रही छैक। एतहु मठाधीशी प्रवृत्तिकेँ जानि-बुझि बढाबा देल जाइत छैक जे जनमानसक जुड़ाव एहि भाषा संग नहि होइक आ हर तरहें मैथिली मृत्युकेँ प्राप्त करय। ई नीति विस्मयकारी बुझा रहल छैक। एना लगैत छैक जे किछु सोचल-बुझल चालि द्वारा मैथिलीकेँ मारबाक योजना पर काज भऽ रहलैक अछि। अन्त-अन्त तक कारण तकबाक प्रयास मे केवल यैह प्रतीत होइत छैक जे दुनू राष्ट्र केँ ‘मिथिला एकीकरण’ केर खतरा सँ निजात पेबाक लेल यैह एकटा उपाय देखाइत छैक जे मैथिली भाषाक मृत्युदान देल जाय।

संयोग एहेन छैक जे स्वयंसेवा आ स्वसंरक्षणक सिद्धान्त सँ मिथिला आइयो जीबित अछि, बिना निर्धारित भूगोलहु मिथिला अपन सनातन पहिचान केँ संरक्षित रखने अछि, मैथिलीभाषा मे कार्य करबाक लेल स्वस्फूर्त योगदानदाता सोझाँ अबैत रहलैक अछि, नहि तऽ मैथिली-मिथिलाक इहलीला कहिया न समाप्त भेल रहैत। लेकिन समय एहि लेल आबि गेल छैक जे सहिष्णुताक सीमा नंघन भेला पर सुसुप्त मैथिल कोना जागत ताहि पर बेर-बेर सोचय आ तदनुकूल आचरण करय।