रामायण केर नाम रामचरितमानस कियैक, पढब-सुनब आ प्रचार करब सभक कर्तब्य

स्वाध्यायः रामचरितमानस सँ सीख १९

आइ १९म भाग मे हमरा लोकनि महाकवि तुलसीदासजी द्वारा शुभ कार्य ‘रामायण’ केर रचना आ ओकर नामकरण ‘रामचरितमानस’ सँ जुड़ल किछु रोचक तथ्य सब पढब। एहि मे चमत्कार केर अनुभूति कवि आ कर्ता केँ कोना होएत अछि ई ज्ञान छुपल अछि। हम सब सेहो कोनो शुभ कार्य आरम्भ करय सँ पहिने कि सब करी ई ज्ञान निहित अछि। आगाँ रामायण केर प्रचार सेहो करबाक चाही, से कियैक, आर कि लाभ – ई उपदेश सेहो भेटैत अछि। आउ, पढी पूरा बात।

रामचरितमानस सँ सीख – १९

१. कोनो शुभ कार्य संदेह केँ मन सँ निकालिकय श्रीगुरुक चरणकमल मे ध्यान कय सब केँ विनती करैत आरंभ करू जाहि सँ ओहि शुभ कार्य (रामायण समान शुभ कृतिक रचना) मे कोनो दोष स्पर्श नहि करय। श्रीशिवजी केँ माथ झुकाकय उपरोक्त बात पर ध्यान धरैत तुलसीदासजी रामायण – रामचरितमानस कथा केर आरम्भ कएलनि। चैत्र मास नौमी तिथि मंगल दिन केँ श्रीअयोध्याजी मे एहि चरित्र (रामायण) केर प्रकाशन भेल।
 
२. आजुक दिन श्रीरामजीक जन्म होएत अछि, वेद कहैत अछि जे एहि दिन सब तीर्थ एतय अयोध्याजी मे आबि जाएत अछि। असुर, नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवत सब अयोध्याजी मे आबिकय श्रीरघुनाथजीक सेवा करैत छथि। बुद्धिमान लोक सब जन्मक महोत्सव मनबैत छथि आर श्रीरामजीक सुन्दर कीर्तिगान करैत छथि।
 
३. वेद-पुराण कहैत अछि जे श्रीरघुनाथजीक जन्मदिन पर या अन्य दिन सेहो श्री सरयूजीक दर्शन, स्पर्श, स्नान आ जलपान पापसमूह केँ नष्ट करैत अछि।
 
४. जगत् मे अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज आ जरायुज चारि तरहक अनन्त जीव होएछ, एहि मे सँ जे कियो अयोध्याजी मे शरीर छोड़ैत अछि ओ फेर संसार मे जन्म-मृत्युक चक्कर सँ छूटिकय भगवान् केर परमधाम मे निवास करैत अछि।
 
५. श्रीतुलसीदास जी जाहि रामायण केर रचना कएलनि ओकर नाम ‘रामचरितमानस’ थिक जेकरा कान सँ सुनैत देरी शान्ति भेटैत अछि। मनरूपी हाथी विषयरूपी दावानल मे जैर रहल अछि, जँ ओ एहि रामचरितमानसरूपी सरोवर मे पड़त त ओहो सुखी होयत।
 
६. ई रामचरितमानस मुनि लोकनि प्रिय थिक, एहि सुहाओन आ पवित्र मानस केर रचना शिवजी स्वयं कएलनि। ई तीनू प्रकारक दोख, दुःख और दरिद्रता केँ तथा कलियुगक कुचाइल आर सब पाप केँ नाश करयवला थिक।
 
७. श्रीमहादेवजी एकर रचना कय केँ अपन मनहि मे रखने छलाह आर बाद मे सुअवसर पाबि पार्वतीजी सँ कहलनि। ताहि सँ शिवजी एकरा अपन हृदय मे देखिकय आर प्रसन्न भऽ एकर सुन्दर नाम ‘रामचरितमानस’ रखलनि।
 
८. श्री उमा-महेश्वर एहि कथा केँ कहब-सुनब सँ जगत् केर कल्याण होयबाक बात कहलनि अछि, तैँ हम सब यैह स्मरण करैत अपन कर्तब्य बुझैत एकर प्रचार करी जाहि सँ प्रभुजी अवश्य प्रसन्न भऽ हमरा सभक योगक्षेम वहन करता।
 
ॐ तत्सत्!!
 
हरिः हरः!!