अनन्त राम केर अनन्त गुणसमूह आर अनन्त अवतारक अनन्त रामायण

स्वाध्यायः रामच्ररितमानस सँ सीख – १८

महाकवि तुलसीदास केर बेर-बेर नमन – रामचरितमानस सन गुरु नहि भेटत जे गूढ रहस्य केँ सहज उदाहरण व उपमा-उपमेय संग हमरा लोकनि केँ बुझा दैत अछि। आजुक १८म भाग मे श्रीरामजीक गुणसमूह पर विशेष प्रकाश देल गेल अछि। निश्चिते, एकटा भक्त लेल आस्थाक आधार यैह सहज समझ होएत छैक। आशा करैत छी जे अपने लोकनि एहि शृंखला सँ लाभान्वित भऽ रहल छी। विशेष शुभे हो शुभे!

१. रामकथा मन्दाकिनी नदी थिक, सुन्दर निर्मल चित्त चित्रकुट थिक, और सुन्दर स्नेह टा वन छी जाहि मे श्रीसीताराम जी विहार करैत छथि।
 
२. श्रीरामचन्द्रजीक चरित्र सुन्दर चिन्तामणि थीक आर संतक सुबुद्धिरूपी स्त्रीक सुन्दर शृंगार थिक।
 
३. श्रीरामचन्द्रजीक गुणसमूह जगत् केर कल्याण करयवला मुक्ति, धन, धर्म आर परमधाम केर देबयवला थिक। ज्ञान, वैराग्य और योगक लेल सद्गुरु थिक। संसाररूपी भयंकर रोग केँ नाश करय लेल देवता लोकनिक वैद्य अश्विनीकुमार केर समान थिक। पाप, संताप आर शोक केँ नाश करयवला तथा एहि लोक आ परलोक केर प्रिय पालनहार थिक। विचाररूपी राजाक लेल शूरवीर मन्त्री आ लोभरूपी अपार समुद्रक लेल सोखनिहार अगस्त्य मुनि थिक। भक्तक मनरूपी वनमे बसयवला काम, क्रोध तथा कलियुगक पापरूपी हाथी सब केँ मारबाक लेल सिंह केर बच्चा थिक। शिवजीक पूज्य आर प्रियतम अतिथि थिक, संगहि दरिद्रतारूपी दावानल केँ मिझेबाक लेल कामना पूरा करयवाला मेघ थिक। विषयरूपी साँपक जहर उतारयवला मन्त्र आर महामणि थिक। अज्ञानरूपी अन्धकार केँ हरण करयवला सूर्यक किरण समान आर सेवकरूपी धान केर पालन करय मे मेघक समान थिक। मनोवाञ्छित फल देबाक लेल कल्पवृक्षक समान आ सेवा करय मे हरि-हर केर समान सुलभ आ सुख देबयवला थिक। सम्पूर्ण पुण्य केर फल महान भोग केर समान होएत छैक। जगत् केर छलरहित यथार्थ हित करय मे साधू-संतक समान होएत छैक। सेवक केर मनरूपी मानसरोवर केर वास्ते हंसक समान आर पवित्र करय मे गंगाजीक तरंगमालाक समान होएत छैक।
 
४. श्रीरामचन्द्रजीक गुणक समूह कुमार्ग, कुतर्क आर कलियुगक कपट, दम्भ एवं पाखण्ड सब केँ जरेबाक लेल ओहिना छैक जेना ईंधन वास्ते प्रचण्ड आगि।
 
५. नाना प्रकार सँ श्रीरामचन्द्रजीक अवतार होएत रहल अछि आर सौ करोड़ सँ बेसी व अपार रामायण छैक।
 
६. कल्पभेद केर मुताबिक श्रीहरिक सुन्दर चरित्र सब केँ मुनिश्वर लोकनि अनेकों प्रकार सँ गान करैत रहला अछि।
 
७. श्रीरामचन्द्रजी अनन्त छथि, हुनकर गुण सेहो अनन्त अछि आर हुनकर कथा सब केँ विस्तार सेहो असीम अछि।
 
हरिः हरः!!