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नाम आ नामी मे स्वामी आ सेवक केर संबंधः रामचरितमानस सँ सीख – १२

स्वाध्यायः रामचरितमानस सँ सीख – १२

आजुक स्वाध्याय मे नाम आ रूप केर बीच बड नीक चिन्तन केँ महाकवि तुलसीदास जी स्थापित करैत निर्णय देलनि अछि जे हम सब सदा-सदा लेल अपन मुखरूपी दरबज्जाक चौखैट यानि जिह्वा पर एहि राम नाम केर दीपक केँ जराकय राखी। हमर देह सिहरैत अछि जखन महाकविक भावरूप दोहा सब सँ गूढ अर्थ केर निचोड़ ताकि पबैत छी। अवश्ये ई शृंखला ‘रामचरितमानस सँ सीख’ जीवनक एक महत्वपूर्ण कृति सिद्ध होयत। आउ देखी विस्तार सँः

रामचरितमानस सँ सीख – १२
 
१. बुझय मे नाम आ नामी दुनू एक्के सन लगैछ मुदा दुनू मे परस्पर स्वामी आ सेवक समान प्रीति छैक। जेना स्वामीक पाछू सेवक चलैत अछि ठीक तहिना नामक पाछू नामी चलैत अछि। नाम लिते स्वामी नामी राम नाम केर अनुगमन करैत अछि।
 
२. नाम आ रूप दुनू ईश्वर केर उपाधि थिक, एहिमे कोन पैघ आ कोन छोट ई कहब अपराध होयत। एहि दुनूक गुणक तारतम्य सुनिकय साधू पुरुष स्वयं बुझित जेता। रूप नामक अधीन छैक, बिना नामक रूप केर ज्ञान नहि होएछ।
 
३. केहनो विशेषरूप बिना ओकर नाम जनने हथेलीपर लिखलो रहला सँ ओकर पहिचान नहि भऽ पबैत छैक, जखन कि रूप केँ बिना देखनो नामक स्मरण कएला पर विशेष प्रेमक संग ओकर रूप हृदय मे आबि जाएत छैक।
 
४. निर्गुण आ सगुण केर बीच मे नाम सुन्दर साक्षी थिक और दुनूक यथार्थ ज्ञान कराबयवला चतुर दुभाषिया थिक।
 
५. जँ अहाँ भीतर आ बाहर दुनू तरफ उजाला (ज्ञानज्योति) चाहैत छी त मुखरूपी केबाड़ (द्वार) केर जीभरूपी मोख (चौखैट- देहरी) पर राम नामरूपी मणिदीपक (दीप) केँ राखू।
 
६. नाम आर रूपक गति केर कहानी अकथनीय अछि, मुदा बुझय मे बहुत सुखक अनुभूति भेटैत अछि।
 
हरिः हरः!!

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