सीता आ राम अभिन्न छथि – बेर-बेर ‘सीताराम’ केँ प्रणाम करीः रामचरितमानस सँ सीख-१०

स्वाध्यायः रामचरितमानस सँ सीख – १०

सियाराममय सब जग जानी, करहुँ प्रणाम जोड़ि जुग पाणी!! आजुक स्वाध्यायक ई दसम् भाग अति विशिष्ट अछि। हमरा सब लेल बहुत रास वांछित कर्म निर्दिष्ट अछि।

रामचरितमानस सँ सीख – १०
 
१. गंगाजी मे स्नान केला सँ आर जल पीबय सँ पापक हरण होएछ और सरस्वतीजी गुण तथा यश कहय-सुनय सँ अज्ञानक नाश करैत छथि।
 
२. श्री महेश आ पार्वती गुरु एवम् माता-पिता थिकाह, वैह दीनबन्धु तथा नित्य दान करयवला छथि, ओ सीतापति श्रीरामचन्द्रजीक सेवक, स्वामी आर सखा थिकाह। वैह हमरा लोकनिक कपटरहित हित करनिहार सेहो थिकाह।
 
३. शिव-पार्वती द्वारा कलियुग केँ देखिकय ‘शाबर मन्त्रसमूह’ देल गेल अछि, जाहि मन्त्रक अक्षर बेमेल छैक, जेकर न कोनो ठीक अर्थ होएत छैक आर नहिये जपे भऽ सकैत छैक, तथापि श्रीशिवजीक प्रताप सँ एकर प्रभाव प्रत्यक्ष छैक।
 
४. राति केर शोभा तरेगन सहित चन्द्रमा सँ छैक।
 
५. प्रणाम करबाक चाही – अयोध्यापुरी, कलियुगक पाप केँ नाश करयवाली श्रीसरयू नदी, अवधपुरीक नर-नारी जिनकापर श्रीरामजीक ममता कम नहि छन्हि; सीताजीक निन्दा करयवला धोबी आर ओकर समर्थको केर पापसमूह केँ नाश कय ओकरा शोकरहित बनाकय अपन धाम मे बसा देलनि।
 
६. कौशल्यारूपी पूर्व दिशा सेहो वन्दनीय छथि जतय सँ विश्व केँ सुख देनिहार और दुष्टरूपी कमल केर लेल पाला (ओस) समान श्रीरामचन्द्रजीरूपी चन्द्रमा प्रकट भेलाह।
 
७. सब रानी सहित राजा दशरथजी केँ पुण्य और सुन्दर कल्याणक मूर्ति मानिकय हम मन, वचन आ कर्म सँ प्रणाम करैत छी।
 
८. अवध केर राजा दशरथजी श्रीरामजीक चरण मे सत्य प्रेम रखैत छलाह, जे दीनदयालु प्रभुजीक बिछुड़न होएते अपन प्यारा शरीर केँ मामूली तिनका (तृण, घासफूस) जेकाँ परित्याग कय देलनि।
 
९. परिवार सहित राजा जनकजी सेहो वन्दनीय छथि, हुनकर श्रीरामजीक चरण मे गूढ प्रेम छल जेकरा ओ योग आ भोग मे नुकाकय रखने छलाह, जे श्रीरामचन्द्रजी केँ देखिते प्रकट भऽ गेल छल।
 
१०. भाइ सबमे सबसँ पहिने भरतजी केँ प्रणाम अछि जिनकर नियम आ व्रत केर वर्णन नहि कएल जा सकैछ तथा जिनकर मन श्रीरामजीक चरणकमल मे भँवरा जेकाँ लोभायल रहैछ, कखनहु हुनकर सामीप्य नहि छोड़ैछ।
 
११. लक्ष्मणजी जे शीतल, सुन्दर आर भक्त केँ सुख देनिहार छथि, ओ प्रणम्य छथि। श्रीरघुनाथजीक केर कीर्तिरूप पताकामे हिनकहि यश दंड (स्तम्भ) केर समान अछि। ओ सदिखन हमरा सब पर प्रसन्न रहैथ।
 
१२. श्री शत्रुघ्नजी बड़ा वीर, सुशील आ श्रीभरतजीक पाछू चलयवला छथि ओहो प्रणम्य छथि।
 
१३. महावीर श्री हनुमानजी केर बेर-बेर विनती अछि जिनकर यश केर वर्णन स्वयं श्री रामजी अपने कएलनि।
 
१४. बानरक राजा सुग्रीवजी, रीछक राजा जाम्बवान् जी, राक्षसक राजा विभीषणजी आर अंगदजी आदि जतेक बानरक समाज अछि, सभक सुन्दर चरण वन्दनीय अछि। ई सब अधम् पशु आर राक्षसक शरीर मे पर्यन्त श्रीरामचन्द्रजी केँ प्राप्त कएलनि।
 
१५. पशु, पक्षी, देवता, मनुष्य, असुर समेत जतेको रामजीक चरणक उपासक छथि ओ सब वन्दनीय छथि कियैक तँ ओ सब श्रीरामजीक निष्काम सेवक सब थिकाह।
 
१६. शुकदेवजी, सनकादि, नारद मुनि आदि जतेक भक्त और परमज्ञानी श्रेष्ठ मुनि लोकनि छथि हुनका सभक वन्दना करैत हुनका सबसँ स्वयंकेँ दास बुझि कृपा करबाक लेल प्रार्थना हेबाक चाही।
 
१७. जनकनन्दिनी, जगत्-माता और करुणानिधान श्रीरामचन्द्रजी केर प्रियतमा श्रीजानकीजी केर दुनू चरणकमल मे सदैव प्रणाम करबाक चाही जिनकर कृपा सँ निर्मल बुद्धिक प्राप्ति होएत अछि।
 
१८. मन, वचन आ कर्म सँ कमलनयन धनुषबाणधारी, भक्तक विपत्ति केँ नाश कएनिहार आर हुनका सुख देनिहार भगवान् श्रीरघुनाथजीक सर्वसमर्थ चरणक वन्दना करी।
 
१९. जे वाणी आर ओकर अर्थ तथा जल एवम् जलकेर लहरक समान कहय मे अलग-अलग छथि मुदा वास्तव मे अभिन्न छथि, ओहि ‘सीताराम’जी केर चरणक वन्दना अवश्य करी। हिनका दीन-दुःखी अत्यन्त प्रिय छथिन।
 
अपने समस्त पाठक जे एहि मर्म केँ पढि आ बुझि रहल छी, जिनकर मन आ भावना मे भगवान् स्वयं आबिकय दर्शन दय रहला अछि, तिनका हम ‘प्रवीण’ केर प्रणाम अछि।
 
हरिः हरः!!