स्वाध्यायः रामचरितमानस सँ सीख – ९
सीताराम चरित अति पावन, मधुर सरस अरु अति मनभावन – आजुक ९वम भाग केर रामचरितमानस सँ सीख एहि सुन्दर स्मरण सँ कय रहल छी। एहि सँ पूर्व ८ भाग पाठक लोकनिक बीच काफी लोकप्रियता हासिल कय रहल अछि। सब पाठक सँ निवेदन अछि जे मैथिली जिन्दाबाद पर राखल जा रहल अपन रुचिक लेख-आलेख-समाचार सभक लिंक अपन मित्र सब सँ शेयर करैत मैथिली भाषा मे कएल जा रहल महत्वपूर्ण संग्रह केँ उचित प्रचार-प्रसार जरुर करी।
रामचरितमानस सँ सीख – ९
१. अपना सब केँ पृथ्वीलोक सँ लय केँ परमेश्वरक सब लोक मे अपन श्रेष्ठ सँ आशीर्वाद ग्रहण कइये केँ कोनो शुभ कार्य प्रारंभ करबाक चाही। सभक सहयोग सँ मात्र हम सब कोनो कीर्ति कय सकैत छी।
२. कीर्ति, कविता आ सम्पत्ति वैह उत्तम होएछ जे गंगाजी जेकाँ सभक हित करयवाली हो।
३. रेशम केर सिलाई टाटपर सेहो नीक लगैत छैक, अर्थात् सभक आशीर्वाद आ प्रभुजीक कृपा जँ प्राप्त हो त कोनो काज करब शुभे शुभ होयत।
४. चतुर पुरुष वैह कविताक आदर करैछ जे सरल हो आर जाहि मे निर्मल चरित्रक वर्णन भेटय; संगहि जेकरा सुनिकय शत्रु सेहो स्वाभाविक वैर केँ बिसैरिकय ओकर सराहना करय लागय।
५. वाल्मीकि मुनि वन्दनीय छथि, जे रामायण केर रचना कएलनि। ओ खर (राक्षस) होएतो बड़ा कोमल और सुन्दर छथि, तथा ओ दूषण (राक्षस) भेलो दूषण यानि दोष सँ रहित छथि।
६. चारू वेदक वन्दना अवश्य हेबाक चाही। कियैक तँ संसाररूपी समुद्र केँ पार करबाक लेल यैह जहाज थिक।
हरिः हरः!!