जून ११, २०१७. मैथिली जिन्दाबाद!!
ऐतिहासिक ओ धार्मिक स्थलः हरदी दुर्गास्थान (जिलाः सुपौल)
इतिहासविदित अछि जे मिथिलाक पवित्र भूमि तंत्र सिद्ध अछि। मान्यता कहैछ जे माधव विदेह द्वारा मुंह मे यज्ञाग्नि केँ सुरक्षित राखि सदानीरा (गंडकी) नदीक पुबारि पार कोसी नदीक पछिमबारि पार आ गंगा नदीक दछिनबारि पारक दलदल आ जलजमावक बहुल्य भूमि पर आबि कय यज्ञायोजन करैत एतय मनुष्यक बसोवास योग्य भूमि तैयार कएल गेल। शास्त्रीय आख्यान एहि तिरभुक्ति (तीन नदीक भीतर रहल विशिष्ट भूमि अंश) केर महिमा बहुतो तरहें गबैत अछि। सर्वविदिते अछि जे बाद मे यैह भूमि पर कुटी-आश्रम बनाकय गौतम, कपिल, कणाद, जैमिनी, याज्ञवल्क्य आदि कतेको रास विज्ञजन कालान्तर मे निवास कएलनि। एहि ठामक राजा स्वयं सूर्यवंशी कुलक दीपक विदेहराज जनक भेलाह। हिमालय समान मुकुटमणि आ गंगा समान पतित-पावनी सहित अनेकानेक छोट-पैघ नदी आ हरियर वन सँ आच्छादित एहि पावन मिथिलाक महिमा वेद आ पुराण सब गेलक अछि। एकर ऐतिहासिकताक व्यापकता केँ पैघ-पैघ कवि लोकनि अदौकाल सँ वर्णन करैत आबि रहला अछि। एहि क्रम मे मिथिला धरा पर विभिन्न जनसमुदायक वीर पुरुष लोकनि अवतार लैत रहल छथि। आरो-आरो देश सँ मिथिलादेश मे प्रवेश कएनिहार कतेको रास लोकपुरुष केर चर्चा इतिहास मे अबैत रहल अछि। आइयो ढंग सँ देखलापर गाम-गाम मे एहेन महान आत्माधारी सज्जनवृन्द – महापुरुष आ विद्यावान् लोकक दर्शन एहि भूमि पर होएत अछि। प्रसंगवश चर्चा करबाक अछि यदुवंशी लोकदेव लोरिक केर आ हिनकहि आराध्या बनदेवी दुर्गा केर।
बनदेवी दुर्गा देवी मिथिला मे कतेको ठाम पूजित छथि। पूर्व मे जतय-जतय लोकवास केर उपक्रम होएत गेल, जेहेन-जेहेन लोक-समुदाय – जनजाति एवम् आदिवासी लोकसमाज सब बास लैत गेलाह, अपन-अपन इष्ट आर कुलदेवता केँ सर्वोपरि महत्व दैत हुनकर स्थान स्थापित करैत गेल छथि। लोरिकदेव ओना त बाहरी देश सँ मिथिलादेश मे एला कहल जाएछ, लेकिन ओ बास लेलनि वर्तमान सुपौल जिलाक हरदी गाम मे। ओतहि लोरिक आराध्या बनदेवी दुर्गाक मन्दिर अवस्थित अछि जतय आइ धरि लोक ओतबे श्रद्धा आ विश्वासक संग देवी आराधना मे जुटल देखाएछ। विभिन्न जाति-समुदायक सामूहिक बसोवास मिथिलाक गाम-गाम केर मर्यादा थिक, कम या बेसी, हरेक गाम मे एतय सब जाति-समुदायक लोक रहिते टा छथि। तहिना सुपौल जिलाक हरदी क्षेत्रक इतिहास सेहो परापूर्वकाल सँ समृद्ध आ लोकहित लेल अनेक कथा-गाथा समेटने आइयो फलित-फूलित अछि। लोरिकदेव केर वंशक लोक आइयो कोनो न कोनो रूप मे एतय अस्तित्व मे छथि ईहो कहब अतिश्योक्ति नहि होयत, कारण यादव समाजक बड पैघ जनसंख्या हरदी आर आसपास भेटैत अछि।
एहि गाम सँ सुविज्ञ आ प्रतिष्ठित युवा समाजसेवी मुन्ना चमन कहैत छथि, “मिथिलाक प्रसिद्ध शक्तिपीठ, वीर लोरिक केर अधिष्ठात्री माँ हरदी वाली दुर्गा मैया केर स्वरुप, माँ दुर्गा हरदी वाली केर पिंड रुप केर पूजा अहि ठाम होएत छैक। सर्वमनोकामना पूर्ण करयवाली मैया दुर्गा केँ वनदुर्गा केर नाम सँ सेहो जानल जाएत छन्हि। ई पवित्र, पावन आ ऐतिहासिक स्थान सुपौल जिला मुख्यालय सँ सीधे दस किलोमीटर पूरब एस. एच. ६६ पर स्थित अछि। माता केर दरबार मे प्रतिदिन छागर बलिप्रदान केर परम्परा छैक। दूर-दूर सँ लोक सब माता केर दर्शन करबा लेल हाजिरी बजबैत छथि।”
बनदेवी शक्तिदात्री देवीक रूप मे पूजित छथि। कारण सघन जंगल जतय खतरनाक जानवर सब सेहो रहैत अछि तेेहेन दुर्गम स्थान मे मनुष्य जखन बास लैत अछि त आस्था आ विश्वासक सर्वमान्य शक्ति ‘दुर्गा’ केँ स्थापित कय अपना केँ सुरक्षित बुझैत अछि। हरदी नामक स्थान पर जाहि कोनो कालखंड मे मानुसिक वास केर आरम्भ भेल होएक, आसरा सभक यैह देवी बनलीह। बुझले बात अछि जे देवी (शक्ति) केर अधिष्ठात्री बलिप्रदान मे सेहो विश्वास करैत अछि। मिथिलाक लोकाचार मे पशुपालन आर पशु सँ भेटयवला आहारक विभिन्न रूप केँ उपभोग कएल जाएत रहल छैक, आर सर्वविदिते बात छैक जे मनुष्य स्वयं जे पान करय ताहि मे सँ सर्वोत्तम भोग पहिने देवता केँ अर्पण करय – ई धार्मिक आस्था व परम्परा बहुत पहिने सँ प्रचलित अछि। जलाच्छादित-वनाच्छादित भूखंड मिथिला मे जलफल (माछ) केर महिमा त सबकेँ बुझले अछि, एतुका पण्डित समाजक परिचायक झंडा मे समेत माछहि केर छापक उपयोग कएल गेल अछि। तहिना पशु बलि देवी आराधनाक एक महत्वपूर्ण परम्परा एतय आदिकाल सँ देखल जाएछ। जाहि समाज मे पशु बलि बन्धित छैक, ओतय कुम्हर या कदीमा केँ पशुवत् मानि देवी केँ चढाओल जाएत अछि। हरदी दुर्गास्थान मे नित्य छागर चढब निश्चिते देवीक उग्र शक्ति आ भक्तवत्सला होयबा कठोर प्रमाण पेश करैछ कहि सकैत छी। कारण, जखन-जखन भक्त-साधक अपना केँ कोनो तरहक अंजान अथवा सुजान भय सँ आक्रान्त देखैछ, ओ देवी केर मानसिक गोहार लगबैछ आर कबूलैत अछि जे हे देवी, हमर फल्लाँ कामना पुर्ति हो, हम छागर बलिप्रदान करब। आर फेर देवीक आशीर्वाद सँ ओहि कामनाक पुर्ति भेलापर बलिदान देल जाएछ। हरदी भगवतीक महिमा अपरम्पार – यैह कहैत अछि भैर संसार।