स्वाध्याय
१. रसगर हो वा अत्यन्त फीका – अपन कविता केकरा नहि नीक लगैत छैक!
२. एहि संसार मे पोखरि आर नदी जेकाँ बेसी लोक भेटैत अछि जे बाढिक जल ग्रहण कय बढैत अछि अर्थात् अपन उन्नति सँ प्रसन्न होएत अछि। समुद्र जेहेन बहुत कम लोक भेटत जे चन्द्रमाक पूर्णता देखि उछाल भरैत अछि, यादि दोसरक उत्कर्ष देखि स्वयं प्रसन्न होएत अछि।
३. भाग्य छोटो भेल त कि, इच्छा हमेशा बड पैघे होएत छैक।
४. दुष्ट यदि अहाँ पर हँसय त नीके होयत से बुझू। मधुर कंठवाली कोयल केँ कौआ कठोरे कहल करैत छैक। जेना बगुला हंस पर आर बेंग पपीहा पर हँसैत छैक, तहिना मलिन मनवला लोक निर्मल वाणीवला लोक पर हँसैत छैक।
५. जे हरि आ हर मे अन्तर केर आ ऊँच आ नीच केर कल्पना नहि करैत अछि, ओकरा श्रीरघुनाथजी केर कथा रामायण अवश्य मीठ लागत।
६. मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी केर कथा रामायण केँ हुनकर भक्ति सँ भरल आ सुसज्जित रहबाक कारण सज्जन पुरुष सुन्दर वाणी सँ प्रशंसा करैत पढैत-सुनैत छथि।
७. नाना तरहक अक्षर, अर्थ आ अलङ्कार – विभिन्न तरहक छन्द रचना, भाव आ रस केर अपार भेद और कविताक भाँति-भाँति गुण-दोष होएत छैक। रामायण मे एहि सब विचार केँ छोड़ि मात्र गुण केँ ग्रहण करबाक लेल निर्मल ज्ञान ओ सुन्दर बुद्धिक लोक जरुर पढैत अछि।
हरिः हरः!!