स्वाध्याय
रामचरितमानस केर बालकाण्ड मे वर्णित महाकवि तुलसीदास द्वारा मंगलाचरणक क्रम मे बहुत रास अति महत्वपूर्ण जीवनोपयोगी यथार्थ शिक्षा देल गेल अछि। हम मानव समुदाय सदैव नीक सीखबाक लेल अपना केँ शिक्षित करैत रहैत छी। शिक्षाक समग्र माने सेहो अनुशासन होएत छैक। अतः ई श्रृंखला सँ अपने पाठक लोकनि निश्चित लाभान्वित होएत होयब एहि आशाक संग आइ पूर्वक दुइ भागक आगू तेसर भाग देल जा रहल अछि। पूर्वक दुइ भाग सेहो ‘दर्शन’ शीर्षक मे अपने लोकनि एतय ताकिकय पढी।
१. विधाता द्वारा एहि जड़-चेतन विश्व केँ गुण-दोषमय रचल गेल अछि; किंतु संतरूपी हंस दोषरूपी जल केँ छोड़िकय गुणरूपी दूध केँ मात्र ग्रहण करैत अछि।
२. जे ठग अछि ओकरो लोक नीक भेष मे पूजा करैत छैक, मुदा एक न एक दिन ओकर पोल खुजिते टा छैक; जेना कालनेमि, रावण आ राहू।
३. साधूकेर खराबो भेष मे सम्मान कएल जाएत छैक, जेना जाम्बवान् आर हनुमानजी केर भेलनि।
४. खराबक संग सँ हानि आ नीकक संग सँ लाभ होएत छैक।
५. कुसंगक कारण धुआँ कालिख कहाएत अछि, वैह धुआँ सुसंग सँ सुन्दर रोशनाई बनिकय पुराण लिखय मे काज दैत अछि। और वैह धुआँ पानि, आगि आर हवाक संग सँ बादल बनिकय जगत केँ जीवन देमयवला बरखा बनि जाएत अछि।
६. ग्रह, औषधि, जल, वायू आर वस्त्र – ई सब सेहो कुसंग आ सुसंग पाबिकय संसार मे खराब आर भला पदार्थ बनि जाएत अछि। चतुर आर विचारशील पुरुष मात्र ई सब बात जानि पबैत छथि।
हरिः हरः!!