आलेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
मिथिला मे केवट (कैवर्त्त)
प्रसिद्ध आदि-पुरुषः केवट
‘सोइ राम केवटहिं निहोरा’ (मानस) केर एहि पाँति मे भगवान् राम द्वारा वनवास लेल प्रस्थान करबाक समय गंगाजी पार जेबा लेल केवट नाम्ना नाविक केँ निहोरा करबाक बोध होएत अछि। प्रसंग बहुत लम्बा छैक, मुदा संछेप मे एतेक बुझब आवश्यक छैकः
केवट केर अनुपम भक्ति
केवट नाविक हृदयक बहुत भोला आ निश्छल छल, भगवान् राम केर विषय मे ओकरा एतबे बुझल छलैक कि हुनकर चरणधूलि सँ पत्थररूपी अहिल्या फेर सँ जीवन्त भऽ एक स्त्रीक रूप मे आबि गेल छलीह। केवट केँ राम कतेको प्रलोभन देलखिन जे कोहुना हमरा सबकेँ गंगाजी के ओहि पार पहुँचा दे, नाव-उतराईक रूप मे चूड़ामणि तक देबाक बात कहि देलखिन…. मुदा केवट एक्केटा जिद्द केने छल जे हम बड गरीब लोक छी, अहाँक चरणधूलिक महिमा हम सुनि चुकल छी, कहीं हमर नाव सेहो नारीक रूप मे परिणत पाबि जायत त हम कमायब-खायब कतय सँ आर फेर ई नवकी नारी केँ कोना सम्हारब। जाबत अहाँ अपन चरण केँ नीक सँ नहि पखारय देब, ताबत हम नावपर नहि चढायब। केवटक एहि भोलापन आर छुपल भक्तिक अनुराग रामचन्द्र केँ मने-मन बहुत प्रीतगर लागल आर केवट केँ अपन चरण धोबय देबाक सहमति देलनि। केवट अतिशय प्रेम मे साक्षात् परमपिता परमेश्वरक पैर केँ धोएत अविरल अश्रुधारा बहबैत भगवानक असीम प्रेममे डूबल रहल आर चरणधोनक जल चरणोगत ग्रहण कय अपना केँ कृत-कृत्य कएने छल। परमेश्वर राम सब भेद बुझैत छलाह। भक्त केवट केर स्वाभिमान, निर्लोभता, परमपिताक सत्तामे शरणागत सेवक आर अपन कठिन परिश्रम सँ अर्जित थोड़-बहुत आमदनी सँ परिवारक पोषण करबाक सिद्धान्त – रामचन्द्रजी, सीताजी आ लक्ष्मणजी सब कियो केवटक भगति सँ बहुते प्रभावित आ प्रसन्न भेलाह। सीताजी सेहो हुनका नाव-उतराई देबाक जिद्द केली, मुदा केवट एक्के ठाम कहि देलक जे जकरा भगवानक चरणधोन भेट गेल, ओकरा आर कोनो मूल्यक कोन जरुरी, सबसँ अनमोल धन भगवानक दर्शन आ चरणोगत थिक। सब कियो केवट केँ भरपूर आशीर्वाद दय पुनः अपन मार्गपर प्रस्थान कएने छलाह।
केवट जातिक इतिहास
ताहि केवट पर गर्व कएनिहार स्वाभिमानी आ अन्तर्ज्ञान सँ भरल मानवक एक विशिष्ट जातिक नाम सेहो अछि ‘कैवर्त्त’ अर्थात् केवट। मिथिला मे केवट जाति केँ कियोट, केउट, कीयट आदि शब्द सँ सेहो पुकारल जाएछ। एहि जातिक उल्लेख प्राचीन धर्म-ग्रन्थ मे सेहो भेटैत अछि। एकर उपशाखा कुल तीन वर्गक कहल जाएछः
क. हालिक और जालिक – केवटक जे शाखा हर जोतिकय यानि खेतीपाती, पशुपालन आ कृषिकार्य कय केँ अपन जीवनयापन चलबैत अछि ओहि समुदाय के हालिक केवट कहल जाएछ। आर दोसर जे जलकृषि केर विभिन्न कार्य जेना जलकर (माछ पोसब आ माछ मारबाक कार्यक संग जल मे होमयवला फल यथा मखान, सिंगहार, आदिक उपजा आ फसल सँ जीवनयापन करैत अछि ओहि समुदाय केँ जालिक केवट कहल गेल अछि।
ख. दोसर शाखा मे अवधिया, घिविहरि, गर्भाइत, सधौर और मछुआ (धीवर) आदि पड़ैत अछि।
ग. तेसर शाखा मे जेठोवत, सगहा, घीवहा, बहिऔत तथा कामती आदिक गणना होएत अछि।
केवट केर अनेकों उपाधि सब प्रचलित अछि। विश्वास, मंडल, कापरी, भण्डारी, चौधरी, कामैत, कामती, वर्मा, आदि मुख्य उपाधि थिक। परम्परागत राज-दरबार मे मुंहलगुआ आ राजाक सहायक मे केवट जातिक प्रसिद्धि रहल अछि। राजकाज मे भण्डारक कार्य सम्हारनिहार – ‘भण्डारी’, माछ मारिकय गुजर कएनिहार ‘धीवर’, राजा अथवा जमीन्दारक ‘कामत’ पर खेती आदि कएनिहार ‘कामती’ आर राजाक कपड़ा आदि सम्हारनिहार ‘कापड़ी’ (कापरी, कापरि) कहेला। विश्वकोश केर मुताबिक कैवर्त्त केँ गीतज्ञान, नक्षत्र-ज्ञान तथा फसल-सुरक्षा-विषयक ज्ञान विलक्षण रहल अछि।
पौराणिक ग्रन्थ मे चर्चा
ब्रह्मकैवर्त्तपुराण मे केवट केर उत्पत्तिक दुइ अलग-अलग आधार सँ संकेतित कएल गेल अछि। प्रागैतिहासिक उल्लेखानुसार ‘हालिक’ कैवर्त्त केर पूर्वज गाण्डीवधारी अर्जुन सँ दक्षिण-पश्चिम भारतक समुद्र तटपर घनघोर युद्ध कएने छल। महाभारत केर मुताबिक धीवर (कैवर्त्त-मल्लाह) केर कन्या सत्यवती (मत्स्यगंधा, योजनगंधा) केर गर्भ सँ पराशरपुत्र त्रिकाश महर्षि एवं आर्षग्रन्थक प्रमुख प्रणेता आचार्य वेदव्यास केर जन्म भेल छल। अमर-कोशकार हेमचन्द्र, हलायुध आदि अभिधान रचयिता लोकनिक मुताबिक ‘कैवर्त्त’ शब्दक प्रयोग मत्यस्यजीवी यानि मछुआ – मल्लाह केर रूप मे कएल गेल। हालिक कैवर्त्त केर गोत्र – भारद्वाज, मुग्दल, पराशर आदि थिक।
भारतवर्ष मे केवटक इतिहास
एहि जाति मे कतेको रास पराक्रमी राजा भेलाह अछि। दक्षिण मे कैवर्त्त केर ‘तमुलवंशी’ राजा १६२४ ई. धरि शासनारूढ रहलाह। ११म शताब्दी मे ‘भीम कैवर्त्त’ द्वारा पूर्वी मिथिला आ पश्चिमी बंगाल पर अपन राज्य स्थापित कएल गेल छल। तत्कालीन पालवंशक राजा केँ परास्त कय हुनक राज्यक बड पैघ हिस्सा हस्तगत कय लेने छलाह। ओहि समय बाशी (काशी) केवटक बड पैघ लोक-प्रसिद्धि छल। केवट कुलीना आ धर्मपरायणा रानी रासमयीदेवीक पवित्र ठाकुरबाड़ी (बंगाल) मे स्वामी रामकृष्ण परमहंस आध्यात्मिक साधना कएने छलाह। १८६२ सँ १९३१ ई केर बीच उत्तर बिहार मे व्याप्त महामारी सब – यथाः हैजा, प्लेज, आदिक कारण एतय आन जाति जेकाँ केवट जातिक संख्या सेहो बहुत घटि गेल, मुदा नव-विकासक प्रतिस्पर्धा मे यादव, कोइरी, कुर्मी केर तुलना केवट समुदाय सेहो केकरो सँ कम नहि मानल जाएछ।
स्रोतक चर्चा
उपरोक्त तथ्य लोकसंस्कृति कोश (मिथिला खंड) मे वर्णित, डा. लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव रचित पोथी सँ लेल गेल अछि। डा. श्रीवास्तव द्वारा वर्णित सन्दर्भ पोथीक रूप मे १. हिस्ट्री अफ तिरहुत (पृष्ठ ३६), २. एन्सियेन्ट इन्डियन हिस्ट्री (तृतीय संस्करण, पृष्ठ ४००) तथा ३. भागलपुर-दर्पण, लेखकः झाड़खण्डी झा केर उल्लेख कएल गेल अछि।
मिथिलाक कर्मकाण्ड आ केवट समाजक महत्व
विदिते अछि जे मिथिला मे वैदिक रीति अनुसार जीवन-पद्धति सँ जुड़ल हरेक बात-विचार कएल जाएछ। कृषि हो, पशुपालन हो, मुण्डन, उपनयन, विवाह, श्राद्ध आदि लोकसंस्कार केर आयोजन हो, यज्ञ-पूजा-पाठ या भजन-कीर्तन आदि हो, शिक्षा-दीक्षा केर पाठशाला या गुरु-आश्रमक संचालन हो, चिकित्सालय या औषधालय केर संचालन हो, उपहारक आदान-प्रदान लेल भार आदि पठेबाक बात हो – हरेक गतिविधि लेल पारंपरिक मूल्य ओ मान्यताक बड पैघ महत्व भेटैत अछि। एहेन कोनो पक्ष नहि जतय विधान अनुरूप कार्य निष्पादन करबाक विचार नहि हो। एहेन स्थिति मे सामाजिक सौहार्द्र केर अनुपम नमूना भेटैत अछि मिथिला समाज मे। आर कैवर्त्त समाजक लोक पर बड पैघ भार देल जेबाक विधान वर्णित अछि एतय। ब्राह्मण गुरुक सेवा हो, राजाक सेवा हो, समाजक पूज्य अगुआक सेवा हो, यैह समाज सँ खबास, भण्डारी, घर-अंगना आ आंगनबारीक समस्त राजकाज लेल आधिकारिक तौर पर कियोट (केवट) केँ मात्र अधिकार देल गेल अछि एतय। हर जोतय सँ लैत फसल कटाई धरिक सम्पूर्ण कारोबार लेल एहि समुदाय पर लोकनिर्भरता अछि। पूर्वहि लिखल गेल उच्च-परिष्कृत समाज मे सेवामूलक कार्य हेतु एहि समुदायक विलक्षण इतिहास भेटैत अछि। वर्तमान समय शिक्षा-दीक्षा आर कला क्षेत्रक संग उद्योग-व्यवसाय आदि मे ई समुदाय बहुत आगू देखाएछ। मिथिला केँ समृद्ध बनेबाक लेल सभक योगदान ओतबे महत्वपूर्ण अछि।
विद्वान् राकेश झा द्वारा पंजी व्यवस्था पर देल गेल व्याख्यान अनुरूप राज हरसिंह देव केर समय पंजी परम्परा आरम्भ मिथिला मे बसनिहार हरेक जाति ओ समुदाय केर जातिक पूर्व मे ‘मैथिल’ मूल जाति जोड़ि अन्य समस्त जाति केँ उपजाति बनाओल गेल छल। ओ तर्क दैत कहैत छथि जे जाहि मिथिला भूमिक राजा मैथिल छलाह, जे अपन समस्त प्रजा केँ सदैव अपने समाज मानदान कएलनि, ताहि ठामक सम्पूर्ण प्रजाक प्रथम जाति ‘मैथिल’ आदिकाल सँ रहल आर पंजी परम्परा मे एकजुटताक ई सूत्र केँ स्थापित करबाक कार्य राजा हरसिंह देव द्वारा कएल गेल। ताहि तर्क अनुरूप मिथिलाक कियोट (केवट) समाज केँ ‘मैथिल केवट’ कहल जाएछ। आर एहि ठामक सम्पूर्ण केवट समाजक एकमात्र गोत्र ‘काश्यप’ तत्कालीन राजाक गोत्र सँ प्रचलित अछि। पंजी परम्परा केँ निर्बाध रूप सँ आगू बढेबाक लेल बहुतो रास आरो नियम छल जे कालान्तर मे लोकसमाज द्वारा निर्वाह नहि भऽ सकबाक कारण आब लगभग उठाव भऽ गेल अछि, वर्तमान पंजी राज्य ओ देशक जनगणना, राशन कार्ड, आधार कार्ड, आदि मे निहित भऽ गेल प्रत्यक्षे अछि। प्राचीनकालक पंजी परम्परा समाजक शिक्षित आ अगुआ वर्ग ब्राह्मणो मे आब नाममात्र रहि गेल अछि।
हरिः हरः!!