मैथिली कथाः सुलेखा दीदी
सुजीत कुमार झा, जनकपुरधाम
हमर आंगुर पकरने भीतर गेलीह । फेर बामा मुड़ली आ एकटा सीट पर बैसि रहलीह । हम हुनक कोरामे बैसले छलहुँ की अचानक आगामे पर्दापर रंगक ईन्द्रधनुष उतरि आएल । जे संगीत बजि रहल छल, ओकर झनकार हमरा रंगक रथपर बैसा कऽ दोसर संसारमे लऽ जा रहल छल । हम सिनेमा हाँलमे बैसि कऽ अपन जीवनक पहिल सिनेमा देखि रहल छलहुँ । सिनेमाक नाम छल ‘दूधक कर्ज’ ।
सुलेखा दीदीक घर हमरासभक ठीक आगामे छल । हुनकर बाबू नहि छलन्हि । माय आ भैया मिल कऽ घर चलबैत छलीह । भैया भूजा बेचैत छल । बेरिएसँ हुनक माय भूजाक लेल प्याउजसभ काटब शुरु कऽ दैत छलीह । साँझ होइते हुनकर भैयाक ठेलापर भूजा आ मसालासभ सजाओल जाइत छल आ ओ चौक दिस बेचए लाए निकलि जाइत छलथि ।
सुलेखा दीदीक उमेर ओहि समय १५÷१६ वर्षक छल हएत । हम तीन कक्षामे पढैत छलहुँ आ सुलेखा दीदीसँ बहुत घनिष्टता छल । सिनेमा हुनक प्राण छल ।
हमर घरक लगहिमे हनुमान टाँकिज अछि, जाहिमे सुलेखा दीदी नियमित रुपसँ सिनेमा देखए जाइत छलीह । हम हरेक समय हुनका सँगे जाइत छलहुँ । हम छोट छलहुँ आ छोट बच्चा एहि बातकेँ अघोषित ग्यारेन्टी लैत छलहुँ, हमरा होइत कोनो अनैतिक काज कएल नहि जा सकैत छल । संगहि हमरा लऽ गेलापर टिकटो नहि कटाबए पड़ैत छल । हम हुनकर कोरामे बैसि रहैत छलहुँ । हम सुलेखा दीदीकसँंग हरेक हप्ता एकटा सिनेमा देखबाक हिसाबसँ एतेक सिनेमा देखलहुँ जे हमर मित्र सभ हमरासँ ईर्ष्या करए लागल छल । संकट मोचन माध्यमिक विद्यालयक टिफिनमे जखन सभ पकड़ा पकड़ी वा आसपास खेलैत छल तखन हम चारि पाँचटा लड़का लड़कीसँ घेरल कोनो नव सिनेमाक कथा सुना रहल रहैत छलहुँ । सिनेमा देखब सुलेखा दीदीक लेल नशा छल । ई बात पूरे टोलबैयाकेँ पता छल । एहिद्वारे ककरो बिरोध नहि छल ।
हम धीरे–धीरे हुनक आओर बहुत नजदिक भऽ गेलहुँ । मुदा एहि सँगहि हुनकामे किछु परिवर्तन सेहो देखाए लागल । ‘शोले’ देखैत समय ओ हमरा बैसा कऽ किछु देरक लेल गाएब भेलीह तऽ हमरा भेल ओ बाथरुम गेलीह अछि । मुदा जखन ओ १५ -२० मिनटक बाद अएलीह तऽ कनी घबराएल आ अस्तव्यस्त सन छलीह ।
फेर एकरबाद ई नियमे भऽ गेल छल । ओ हरेक सिनेमामे हमरा बैसा गाएब भऽ जाइत छलीह । शुरुमे ओ १५ – २० मिनेटमे फिर्ता आबि जाइत छलीह फेर १ – १ घण्टाधरि गाएब होबए लगलीह । हम किछु पूछैत छलहुँ तऽ ओ उदास भऽ जाइत छलीह । जखन एना ओ अनिल कपुर आ माधुरी दिक्षितक एक सिनेमामे कएलीह तऽ हमरा शक होबए लागल । अनिल कपुर आ माधुरी दिक्षित हुनकर आराध्य छल आ माधुरी दिक्षित हुनका लेल पृथ्वीपर कोनो चमत्कार जकाँ । हुनक जीवनकेँ सभसँ बड़का इच्छा छल अनिल कपुर आ माधुरी दिक्षित विवाह कऽ लैथि । हुनका सीटपरसँ उठलाक १० मिनेटक बाद हमहुँ उठलहुँ आ बाथरुम दिस चलि गेलहुँ । बाथरुमक पाछूबला देवालसँ किछु आवाज आएल तऽ हम ओम्हर चलि गेलहुँ । हम देखलहुँ हमरे टोलक सुटबा जे हलमे टिकट चेक करैत छल, सुलेखा दीदी हुनकेसँंग छल । सुलेखा दीदी हुनकर माथ सहला रहल छलीह ।
किछुए देरक बाद हुनका पाछू धकेलला तऽ ओ हँसय लगलीह । ‘कतए जाएब….?’ सुलेखा दीदी पुछलन्हि ।
‘कतहुँ……जतए सिनेमा हल हएत । हमर नोकरी लागि जाएत । जतेक पैसा भेटत हमसभ खा लेब आ अहाँ सिनेमा देखब,’ सुटबा दीदीकेँ हाथ पकड़ैत कहलन्हि ।
एहि समयमे हुनक नजरि हमरापर पड़ल ओ धरफराकऽ दीदीसँ अलग भऽ गेलथि ।
‘टिंकू …..! चलू सिनेमा देखए,’ ओ हमरासँ कहला ।
दीदीकेँ नजरि हमरासँ मिलल आ ओ चुपचाप सिनेमा हाँलमे घुसि गेलीह ।
बाटभरि दीदीसँ हमरा कोनो बात नहि भेल । दोसर दिन दीदी हमरा खेलाइतकाल बजौलीह आ कहलीह ओ सुटबासँ प्रेम करैत छथि । जेना सिनेमामे अनिल कपुर माधुरी दिक्षितसँ करैत छथि आ हुनकासँ विवाह करबाक लेल कोनो हदधरि जा सकैत छथि । एकर बाद दू तीनटा सिनेमा सुलेखा दीदीक जीवनक सभसँ सुन्दर सिनेमा छल । हमरा हाँलमे बैसा कऽ ओ सुटबासँ भेटए चलि जाइत छलीह । ओ दुनू कोनो कोनमे अपन भविष्यक सपना देखए लगैत छलीह । दीदी हरेक सिनेमा दू बेर देखैत छलीह । कारण एक बेर ओ हाँलमे पूरे समय रहैत छलीह । जाहि दिन हमसभ ‘तामाचा’ सिनेमा देखि कऽ अएलहुँ हमरा दू आ सुलेखा दीदीकेँ अनगिन्ती थापर लागल छल । किओ हुनका विषयमे हुनकर भैयाकेँ पता नहि की कहि देने छल । ओकर एक दिनक बाद भोरे दोसर दिन हमरो पेशी भेल ।
‘सुटबाकेँ चिन्हैत छी ? देखने छी एकरा सने कहिओ ? सिनेमाक बीचेमे निकलैति अछि की नहि, एक्केटा सिनेमा दू—दू बेर किए देखए जाइत छएँ ?कतेक देर तोरासँग रहैत छौ ई ?’
सुलेखा दीदीक भैया लग अनगिन्ती प्रश्न छल । हम सभकेँ जवावमे मात्र इएह कहलहुँ जे सिनेमा हमरा बढि़या लगैत अछि तेँ ओकरा दोबारा देखबाक हमही जिद्द करैत छी । दीदी पूरा सिनेमा हमरेसँंग देखैत छथि ।
हमरा बातकेँ विश्वास नहि कएल गेल आ सुलेखा दीदी किछु कहए लेल मुहँ खोलनहे छलीह कि हुनकर भैया हुनका पीटए लागल । दीदीक माँ सेहो अपना बेटाकेँ पीटए लेल उक्सा रहल छलीह । हम कानए लगलहुँ आ हुनका रोकएकेँ कोशिस कएलहुँ तऽ ओ हमरा एहन धक्का देलन्हि जाहिसँ हमर माथ एहि प्रकारे देबालमे टकराएल जे तत्काले टेटर उगि गेल । हम कनैत घर चलि अएलहुँ ।
एक दिन भोरमे सुटबाक लाश हनुमान टाँकिजक पूरब दिस भेटल । पुलिस कहने छल सुटबाकेँ जूवा खेलएबाक आदति छल । ककरो सँ उधार लऽ जूवा खेलने छल । उधार समयपर चुक्ता नहि कएलाक कारण हत्या कऽ देल गेल । ओहि महिनाक अन्तधरि सुलेखा दीदीक विवाह सेहो तए भऽ गेल । दीदी मात्र बरण्डापर कहिओ–कहिओ देखाइत दैत छलीह । हुनकर आँखि भीजल रहैत छल । ओ नहि जाइन कतए हेराएल रहैत छलीह ।
हुनकर विवाहमे हम नव कपड़ा पहिरने छलहुँ ।
दुरागमनकाल ओ हमरा गला लगा कऽ खूब कानए लगलीह ।
हम एक दिन स्कूलसँ घर आबिए रहल छलहुँ कि बाटमे खुन भरी मांगक पोस्टर देखलहुँ । ई पोष्टर हमरा एक हप्तासँ परेशान कऽ रहल छल । हम सुलेखा दीदीकेँ स्मरण करैत आबि रहल छलहुँ रेखाक ई सिनेमा ओ पहिने दिन देखा देने रहितथि ।
हमर दिमागमे पोस्टरक आधारपर पचासो कहानी दौडि़ रहल छल । जखन हम घर पहुँचलहुँ तऽ प्रसन्नतासँ झुमि उठलहुँ । सुलेखा दीदी हमरा घरमे बैसल माँसँ बात कऽ रहल छलीह ।
हम अपन बैग फेकलहुँ आ दौड़ कऽ हुनका पजिआ लेलहुँ ।
ओ हमरा माथपर हाथ फेरए लगलीह ‘केहन छएँ टिंकू ?’ हुनक आवाज दू तीन महिनामे एतेक बदलि गेल छल जे चिन्हमे नहि आबि रहल छल, एकदम टुटल सन आवाज, बिखरलसन लागि रहल छल ।
ओ जाए लगलीह तऽ हमर आँखिमे नोर चलि आएल । ओ हमर माथ सहलौलन्हि, ‘बेटा भऽ कऽ कानि रहल छएँ । कानू नहि, साँझमे बरण्डापर भेटब ।’
साँझमे माँ बाबूजीसँ किछु कहि रहल छलीह, जाहिमे हमरा एतबे बूझएमे आएल सुलेखा दीदीकेँ सासुरक लोक टेप रेकर्डर आ साइकिल माँगि रहल अछि । हुनका मारिपीटिकऽ एतए पठा देल गेल अछि । ओ सामान लऽकऽ आबए लेल कहल गेल अछि । हम एहि बातकेँ जतेक बुझि सकलहुँ ओहिमे हमरा ईहे लागल जे मारि खाएब कोनो बड़का बात नहि आ जतेक दिन टेप रेकर्डर आ साइकिल नहि देल जाएत ओतेक दिन सुलेखा दीदी हमरासँंग रहतीह ।
जखन हम बरण्डापर पहुँचलहुँ दीदी पेन्टिङ्ग बना रहल छलीह । हम हुनकासँ कहलहुँ खुन भरी मांग अवश्य बढि़या सिनेमा हएत । हमरा सभकेँ देखबाक चाही ।
‘हम देखि लेलहुँ अछि’, ओ कहलीह ।
हमर चेहरा मुरझा गेल, मुदा ओ तत्क्षण हमर ढाँढ़ीमे गुदगैयाँ लगबैत पुछलीह, ‘कहानी सुनबएँ ?’
‘हँ, हँ …..सुनाउ ने,’ हम उत्साहित भऽ गेलहुँ ।
दीदीक आवाजमे उदासी कायमे छल ।
कथाक शुरुमे ओ उर्जाक अनुभव नहि भेल मुदा जहिना कथा ९,१० मिनेटक यात्रा तए कएलक, सुलेखा दीदी नहि जानि कतए हेरा गेलीह । फेर उर्जा फिर्ता आबि गेल छल ।
सुलेखा दीदी फाँर्ममे आबि गेल छलीह । हँस्सीबला अवसरपर हुनकर आवाज, हुनकर आँखि, हुनकर पूरे शरीर हँसय लगैत छल आ भावुक समयमे पूरा टोलकेँ भावुक जकाँ कहि रहल छलीह ।
कहानी किछु एहन छल–धनिक बापकेँ दूटा बेटी छल जाहिमे एकटा सुन्दर आ दोसर कुरुप । सुन्दर बहुत घमण्डी आ कुरुप बहुत आज्ञाकारी । रेखाक एहिमे डबल रोल छल । बापक मरलाक बाद सुन्दर बेटी अपने मोनसँ विवाह कऽ लैत अछि आ कुरुप बहिनकेँ अपना मोनसँ विवाह नहि करए दैत अछि । कुरुप रेखा राकेश रोशनसँ प्रेम करैत छल, सुन्दर रेखा ओकरा मारएके योजना बनाबए लगैत अछि । सुन्दर रेखा एक दिन अपन पति कबिर बेदीसँ मांग करैत अछि जे ओ हुनकर बहिनकेँ मारि दैथि । ‘खुन’ सँ ‘भड़ल’ ई ‘मांग’ सुनि कऽ हुनकर पति डेरा जाइत छथि । मुदा हुनका पत्नीक ‘खुन भरी मांग’ पूरा करए पड़ैत अछि ।
ई हमर अन्तिम भेट छल । किछु महिनाक बाद बाबूजी ओहि शहरक दोसर टोलमे जमीन कीन कऽ घर बना लेलन्हि । हम सभ भाड़ाक घर छोडि़ एतए चलि अएलहुँ । हम ६ कक्षामे आबि गेल छलहुँ आ अपन मित्र सभक बीच घूलिमिलि गेलहुँ ।
माँ अपन पुरान पड़ोसीसँ भेटए पुरनका टोलमे कहिओ—कहिओ जाइत रहैत छलीह । एक दिन ओ ओतएसँ घुमि कऽ अएलीह तऽ कहलीह सुलेखा दीदी आएल छौ आ ओ तोरा विषयमे पुछि रहल छलहुँ । हम घरमे चलि गेल छलहुँ । माँ बाबूजीसँ कनैत बजलीह जे बेचारी एतेक हसँमुख लड़की मात्र हड्डीकेँ ढाँचामे रहि गेल अछि । हम ९ कक्षामे चलि गेल छलहुँ । एक दिन माँ फेर सुलेखा दीदीक विषयमे कहलक, से सुनिते रोँइयाँ ठाढ़ भऽ गेल । दीदीक अपने सासुरमे जडि़ कऽ मुत्यु भऽ गेल छल ।
माँ बाबूजीसँ कहलक जे साइकिल आ टेप रेकर्डर देलाक बाद हुनकर सासुरक लोक सोनाक चैन मांगि रहल छल । एहिसँ पहिलका भेटमे सुलेखा दीदी कनैत ओकरासँ कहने छल यदि हुनकर मांग पुरा नहि भेल तऽ हमरा मारि देत । हमरा कानएकेँ मोन भेल मुदा हम दबा लेलहुँ । दू चारि दिन धरि कतहु जाएके मोन नहि करैत छल । फेर सभ समान्य भऽ गेल ।
हम एमएससीक फाइनलमे पहूँच गेल छी । दिन राति पढाइमे लागल रहैत छी । एक दिन नेपाल टेलिभजनसँ खुन भरी मांग सिनेमा आबए लागल । प्रत्येक शनिदिन नेपाल टेलिभिजनसँ हिन्दी सिनेमा दैत छल । ओ सिनेमाक नाम सुनितहि हम सभ काज छोडि़ ओ सिनेमा देखए लगलहुँ । जहिना—जहिना सिनेमा देखैत गेलहुँ हमरा भीतर किछु भरैत गेल आ किछु खाली सन होइत गेल । सिनेमाक समाप्त होबए धरि पूरे तरहेसँ भरि कऽ खाली भऽ गेल छलहुँ । नहि सिनेमामे रेखाक डबल रोल छल आ नहि खुनसँ भड़ल कोनो मांग छल । जकरा ककरो पूरा करबाक लेल ककरो खुन करबाक छल । हम स्वयंकेँ ओहि अवस्थाकेँ बुझबाक कोशिसमे अचानक हिचकए लगलहुँ । माँ दोसर रुमसँ आबि गेल ‘किए कनैत छएँ ?
‘नहि नहि …,’
हम आँखि पोछैत कहलहुँ, ‘ओकरा मारि देलकैक..।’ हम बातकेँ सम्हारबाक प्रयास कएलहुँ ।
‘ककरा…?’ माँ घबड़ा गेल । ओ टिभी दिस तकलक ।
रेखा अपन हत्या करएबला कबिर बेदीकेँ खूब मारि रहल छल ।
‘रेखाकेँ……,’
हम किछु लजा कऽ सामान्य होबएकेँ प्रयास कएलहुँ ।
‘बेबकुफ नहितन…….रेखा तऽ जीबिते अछि । ओहे तऽ बदला लऽ रहल अछि । सिनेमाक कीरा नहि तन…..’
माँ बरबराइते बाहर निकलि गेल ।
हम छत दिस तकलहुँ आ एकटा लम्बा श्वास लेबएकेँ प्रयास कएलहुँ मुदा फेफरामे किछु फँसि गेल सन लागल ।