काल्हि नव-वर्ष २०७४ केर शुरुआत – संक्रान्तिक दिन – नव संवत्सर आरम्भक दिन – हिन्दू नव वर्ष – मिथिला नव वर्ष आ जतय-जतय संवत्सरक हिसाब सँ नव वर्ष होएत अछि तेकर सभक नव वर्ष, नेपालदेशक सेहो नव वर्ष १ वैसाख २०७४ केँ काल्हि भेल। सतुआइन पाबनि जाहि मे सत्तू आ गूड़ केर भोग भगवानो केँ लगाओल जाएछ आर लोक अपनो ग्रहण करैछ। मिथिलाक कृषि परम्परा मे बूटक खेती आर बूटक एक अति स्वास्थ्यकर परिकार होएछ सतुआ जेकरा लोक पूर्व मे बड नीक ढंग सँ घरहि मे तैयार करैत छल। आब त लोकपलायनक दंश आ कृषि परम्परा पर पड़ल प्रभाव सँ बूटक खेती आ फसल केर हिसाब-किताब राखब-बुझब लोकमानस लेल कठिन अछि, मुदा भाग्य सँ सतुआ व्यवसायिक वस्तु बनिकय बाजार मे उपलब्ध अछि। विभिन्न ब्रान्डेड कम्पनी सेहो एकर उत्पादन करैत शुद्धताक दाबी करैत अछि, कारण एहि मे खेसारीक दाइल सँ बनल सतुआ केँ मिलावट आर खेसारी दाइल खेला सँ खेसरा रोगक प्रकोप होयबाक सरकारी विज्ञापनक बात लोकक मन-मस्तिष्क मे बसि गेल छैक। खैर, सतुआ पाबनि मे सतुआ खेलाक बाद सतुआ भरल पुचका (पूरी), तहिना दैलपूरी, बरी सुखलो आ झोरायल दुनू – ई सब काल्हिये बनाओल गेल छल घरे-घर। तुलसी मे नव बाँसक छिपाठ मे डाबा बान्हि ओकर पेनी मे भूर कय ओहि मे कूश पैसाकय जल ठोपे-ठोप भैर वैसाख तुलसी केँ सिंचन करैत रहत – ई सब व्यवस्था काल्हिये भेल। गाम-घर मे आइयो जे सजग सज्जन लोकनि वास करैत छथि ओ सब अपन मृत पुरखाक सारा पर सेहो यैह प्रक्रिया केने हेता। बाँसक छिपाठ मे डाबा आर ताहि मे नित्य जल भरि कूशक छिप होएत जल ठोपे-ठोपे पितरो लोकनि केँ शीतलता प्रदान करत यैह सोच रहैत छैक लोकमानस मे।
वैसाख मास सब सँ भीषण गर्मीक मास होएछ एहि मिथिला क्षेत्र मे। घास सब सेहो जैर जाएत अछि। गाछक पत्ता सब मौलाय लगैत अछि। लोक पसीने-पसीना नहायल रहैत अछि। ताहि समय मे एतय एक पाबनि वैसाख मासक दोसर दिन यानि २ गत्ते केँ बसिया भात आ बरी केर भोजन आ देवता-पितरादिक भोग मे सेहो यैह लगेबाक अनुपम परम्परा छैक। गाम-घर मे एखनहु गोटेक लोक धूरखेल खेलाएत अछि। थाल-कादो-पानि आदिक छींटा सँ लोकक देह केँ शीतलता प्रदान कएल जाएछ। ताहू सँ पहिने भोरे उठू त अपन जेठ-श्रेष्ठ केँ गोर लागू आ हुनका सभक हाथ सँ जलसिंचन सहित माथा ठोकि आशीर्वाद भेटत। आर दिन मे जहिना लोक होली दिन रंग-अबीर खेलाएत अछि, तहिना जुड़िशीतल दिन धूरखेल खेलायल जाएछ दिनक पूर्वार्ध मे, अपराह्नकाल लोक गाछी-जंगल दिशि जा कय शिकार खेलाएछ। नर्हिया, शाही, खड़िया, बनैया सुग्गर आर कतेको प्रकारक जंगली जीव केँ विविध प्रकारक तिकड़म सँ खेहारि-खेहारिकय मारबाक काज केँ मिथिला ग्रामीण क्षेत्र मे शिकार बुझल जाएछ। एहि तरहें जुड़िशीतल पाबनिक अपन अलगे महत्व जन-गण-मनमे प्रचलित अछि।
आइ-काल्हि विज्ञानक दृष्टि सँ सब बातक मर्म केँ बुझबाक एकटा फैसन सेहो छैक, आवश्यकता सेहो। फैसन एहि लेल जे सब अपन पाबनि आ परम्परा आदिक आधार-तथ्य केँ वैज्ञानिक सिद्ध करबाक लेल लालायित रहैत अछि। आवश्यकता एहि लेल जे विभिन्न कारण सँ पौराणिक परम्परा सँ दूर भऽ रहल नव पीढी केँ ई जना देबाक छैक जे एकर महत्व वैज्ञानिक स्तर सँ सेहो गणनीय छैक, आर एहि लेल जीवन मे पाबनिक व्यवहार टूटबाक-छूटबाक नहि चाही। तथापि, बाते टा मे बड़का-बड़का आधार-विन्दु आ वैज्ञानिक माहात्म्य रहि जाएछ – एहनो मिथ्याचार एहि समाज मे प्रत्यक्ष अछि। मंच सँ भाषण अलगे, जीवन मे व्यवहार अलगे! जीवन-पद्धति मे परिवर्तन सँ ई पौराणिक लोक-परम्परा सब आब प्रयोजनहीन बनि गेल ई कहबा मे हर्ज नहि, दोसर बात, अपन संस्कृति केँ छोड़ि पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति मे बेसी डूबि जेबाक कारण सेहो ई पाबनि सभक माहात्म्य केवल श्रवणीय छैक ई कहि सकैत छी। मुदा नहि! जे लोक पहिने सँ एहि सब पाबनिक चहट चाखि लेने अछि ओकरा आइयो खोज बनल रहैत छैक जे कतहु ओ मित्र भेटितय जे बाल्यकाल मे धूरखेल आ शिकार आदि लेल भेटैत छल। बिल्कुल यैह मानसिकता सँ एहि बेरुक जुड़िशीतल मनेबाक लेल कियो नहि भेटला पर बहुत दिन सँ आलू कोरब बाकी छल सेहो कोरबाक काज गाम सँ दूर एक छोट शहरक अपन बारी मे कएलहुँ आर बेटा केँ बजाकय माटि मे पानि मिला थाल बनाकय भैर देह मे लगबेलहुँ। अनुभूति ताजा करबाक छल, से केलहुँ। धिया-पुता आ घरवाली – सब हँसैत रहय। कहब जरुरी नहि जे शीतलताक आनन्द जे भेट रहल छल ताहि सँ ओ सब अन्जान छल। टटका-टटकी अनुभव ई रहल जे शरीरक भीतरक तापक्रम केँ बाहरक माटि-पानि सानल थालक लेप काफी राहत प्रदान केलक। माथमे चढल लेप त मानू जेना सर्वदुःखहारा बुझायल। काल्हिक नव-वर्षक अवसरपर प्रयोग मे आनल अंग्रेजिया सोमरसक प्रभाव केँ सोडा-लेमन सँ कोनो राहत नहि भेटल, मुदा एहि थालक लेप सँ सचमुच एकटा अलगे आनन्द भेटल। छुधा जाग्रत भेल। बसिया भात आ बरीक आनन्द सेहो लेल। मुनिगाक तरकारी उपलब्ध नहि भऽ सकल, तथापि करैलक भरुआ आ कचड़ी संग परोरक तरुआ आ खीरा-आलूक अँचार आ टमाटर-धनियांक चटनी – मायक बदला घरवालीक हाथक खेबा लेल भेटल। मायक हाथवला आनन्द भले नहि हो, मुदा घरवाली त घरवालिये होएत छैक, जिनका अछि से बुझिते छी। हँ, ई सब प्रक्रियाक फोटोग्राफी सेहो कएल जाहि मे सँ एकटा एतय प्रेषित कय रहल छी। उम्मीद अछि जे ई मूल्यवान परम्परा केँ हम सब अवश्य बचाकय राखब, खाली गप मे वैज्ञानिक आधार आ भाषण मे पर्यावरण हित केर दाबी केला सँ जुड़िशीतलक शीतलता नहि भेटत। मिथ्याचारी नहि बनी हम सब। अस्तु!
हरिः हरः!!