श्रीसीता-शतक
1.
कर वीणा पद्मासना सकल ज्ञान आगार
सरस्वती शुभदायिनी करिअ नमन स्वीकार।।1।।
जय गणेश गिरिजा-तनय काव्य-कला-गुण धाम
सकल सिद्धिदाता प्रभु कोटि-कोटि परनाम।।2।।
शशि शोभित जनि भाल पर सिर पर सुरसरि धार
कर त्रिशूल लए कष्ट हरू शिव करुणा अवतार।।3।।
विष्णु-प्रिया बनि जानकी मिथिला मे अवतार
राम रमापति ‘चन्द्रमणि’ बनि हरलनि भव भार।।4।।
सिरमा मे गिरिराज अटल पदतल गंगाधार
बंग बाम गंडकी दहिन मिथिला मोक्षक द्वार।।5।।
पावन मिथिला देश मे निर्मित भेल अकाल
राज पुरोहित कहल तखन ह’र जोतथि महिपाल।।6।।
जन-गण केर दुःख त्राण हित तत्पर जनक नरेश
जोति देलनि नृप खेत केँ हरलनि प्रजा कलेश।।7।।
सीत-सिराउरि सँ प्रकट घट मे सीता अम्ब
बरिसल घन आनन्द के जयति जयति जगदम्ब।।8।।
धन्य धरणि केर खण्ड ओ सीतामही विशेष
सीतामढ़ीक नाम सँ एखनहु नगर अशेष।।9।।
घट केर आभा देखिकए चकित सुनयना माय
झट सँ शिशुकेँ कोर कय आँचर लेलनि समाय।।10।।
2.
राक्षस कुल संहार हित अवधागम भगवान
जनक-सुता केर रूप सिया दशरथ-सुत श्रीराम।।11।।
जनम लेलनि जगदम्बिके मिथिला सन के आन
कुंज-कुंज भरि गेल कुसुम सगर बसंतोद्यान।।12।।
कमला अयली अयोनिजा कर लेने मणिपद्म
शुक्ल नवमि बैशाख मे लक्ष्मी सीता-छद्म।।13।।
अवसर पुत्री जन्म के किंचित सुनइछ कान
हरखक पारावार नहि चहुँदिशि सोहर गान।।14।।
धन्य-धन्य मिथिलापुरी धन्य जनकपुर धाम
जनक-सुता पग पैजनी झंकृत वन-पथ-गाम।।15।।
सुखक समय गति तेज तेँ बीतल पलक समान
वर-कनियाँ के खेल मे सीता भेली सयान।।16।।
पिता जनक ऋषि तुल्य गृह शिव-धनु रहय जोगाय
नीपथि धनु-तल सिया धनुष बामहि हाथ उठाय।।17।।
नृप देखल ई दृश्य तS मन बड़ अचरज भेल
सीता के पति होथि जे तोड़थि धनु व्रत लेल।।18।।
नन्दन-वन सन वाटिका सिया बहिनपा संग
गिरिजा पूजन हेतु सुमन संचथि रंग-विरंग।।19।।
तखनहि अयला राम-लखन अवसर बहुत विचारि
जनिक रूप-छवि देखिकेँ हरखित सकल कुमारि।।20।।
3.
राम मुग्ध सिय रूप पर सिया मुग्ध लखि राम
सुखक आगमन सीय केँ फड़कनि अंगहि बाम।।21।।
मध्य नगर मिथिलेश के यज्ञभूमि निर्माण
शिवक धनुष भंजन करता जे अतिशय बलवान।।22।।
टारि सकल नहि भंजन की दस सहस्र नृप-टोल
तोड़लनि शीश झुकाय धनुष रामक जय अनघोल।23।।
सिया-राम केर पुनर्मिलन वरण कयल जयमाल
पुष्पवृष्टि कयलनि सुरगण दए-दए नाचथि ताल।।24।।
नइहर तेजलि मैथिली संगहि अवध किशोर
पति संग नारि सुहागिनी सबदिन सँ अछि शोर।।25।।
दशरथ कयलनि घोषणा ज्येष्ठ पुत्र छथि राम
राजा बनिकेँ राज करथु राम सकल गुणधाम।।26।।
सुरपुर चिंतित भेल सकल के टारत भू-भार
सुर-नर-मुनि उद्धार हित नारायण अवतार।।27।।
कैकेयी केर जीभ पर सरस्वती आसीन
मध्य-मातु भेलीह भ्रमित कयलनि नृप आधीन।।28।।
राजतिलक मम भरत केँ रामक हो बनवास
करिअ वचन निर्वाह नृप नहि तs मरब उपास।।29।।
मायक इच्छा मानि कए पिता सँ आज्ञा लेल
संग लक्ष्मण राम सिया वनक गमन कय देल।।30।
4.
सन्यासी केर भेष मे चलला दुनू भाय
सीता स्वयं तपस्विनी भावी नहि टरि जाय।।31।।
राम-लखन के दुर्दशा देखि सिया अकुलाय
कंटक पद-पंकज गरनि ईस्स कहल नहि जाय।।32।।
तृण पर सूतथि राम जौं पद-तल सीता माथ
सीता सन के पतिव्रता जानथि सब श्रीनाथ।।33।।
सदा कामिनी सूर्पनखा देखल लखन कुमार
मोहित लखनक रूप पर कहल करू स्वीकार।।34।।
अति हठ सँ अति क्रुद्ध भए कहलनि कय-कय बेर
छेदि नाक देलनि तखन अबिहेँ नहि घुरि फेर।।35।।
लंकापति केर बहिन स्वयं सूर्पनखा कुल-डंक
कहलनि अग्रज हमर दशा कयलनि वन केर रंक।।36।।
फनफनाय लंकेश तखन माया देलनि पसारि
हरलनि सीता अम्ब केँ छल सँ साधु-भिखारि।।37।।
वायुमार्ग सँ लंकापति वायु-वेग सँ जाय
राम ! राम ! हा राम! कहि सीता मूर्छित हाय।।38।।
सुनि सीताक करुण क्रंदन दौड़ल वृद्ध जटायु
रावण पर अति चोट कयल जनु दौड़ल हो वायु।।39।।
पाँखि काटि देल असुर खसल व्याकुल पक्षीराज
राम-राम रटिते-रटिते रामक आयल काज।।40।।
5.
लंका राक्षस राज मे सघन विपिन केर माँझ
ताहि मध्य मे मैथिली भानु ने भोरे-साँझ।।41।।
गाछ अशोकक छाह मे राम विछोहक शोक
रामहि टा मन ‘चन्द्रमणि’ भेटनि नहि निज लोक।।42।।
पवन तनय मारुति नन्दन राम-दूत हनुमान
लए रामक कर-मुद्रिका पहुँचि गेला तहि ठाम।।43।।
कमलक सन कोमल सिया राक्षस लंठ अबंड
एतेक सहस दुःख के सहत छोड़ि एक जगदम्ब।।44।
जगत उधारिणि मातु केँ राम नाम आधार
सकल जगत दुःखहारिणी सहइछ दुःखक पहाड़।।45।।
रामक दुःख सँ दुखित सिया सीता-दुःख सँ राम
दुइ शरीर आ साँस एक संग जीवन के संग्राम।।46।।
दसमुख वनिता-वृन्द संग सहस राक्षसी झुण्ड
आयल रावण वाटिका बीस भुजा दस मुण्ड।।47।।
कयलक रावण कोटि यतन सीता वरणक लेल
साम दाम अरु दण्ड भय सकल व्यर्थ चलि गेल।।48।।
तृण सँ निज मुख काढ़िकेँ सीता कहल सुनाय
दम्भी पापी दसकन्धर मरबह तों पछताय।।49।।
मूरख कर किछु ध्यान तोँ राम थिका भगवान
शरण पड़इ तोँ रामकेँ जौं चाहइ कल्याण।।50।।
6.
साँस-साँस मे राम हमर रोम-रोम मे राम
राम वचन आ कर्म मे सर्वस्वहि छथि राम।।51।।
अतुल क्रोध अवसाद सँ लंकापति घुरि गेल
कय प्रणाम हनुमान तखन मातु मुद्रिका देल।।52।।
चारू दिशा निहारि चकित सीता मन अकुलाय
राम-राम कहि पवन तनय सम्मुख शीश नवाय।।53।।
देखि मुद्रिका सत्य सिया नयन बहल जलधार
सुनि विलाप सीताक तखन द्रवित जन्तु वन-झाड़।।54।।
मातु दुर्दशा देखिकए फनला पवन कुमार
डाहि देलनि लंका कयलनि वन-उपवनक उजाड़।।55।।
पुनि समुद्रकेँ नांघिकए रघुपति लग मे जाय
सब संवाद सुनायकेँ रामक मन पतिआय।।56।।
सेतु बान्हि कय सिंधु मे लंका दिस प्रस्थान
सीता केर उद्धार हित व्याकुल श्री भगवान।।57।।
मेघनाद केँ मारिकए लखन कयल अभियान
असुर मारि कयला मर्दित लंकेशक अभिमान।।58।।
दुर्दिन जखन सवार हो हठ किन्नहु नहि जाय
डोरी जरि बरु छाउर हो ऐंठन लैछ बचाय।।59।।
मारल गेला कुंभकरण कते सुभट भट वीर
मारि देबै हम रामकेँ रावण हृदय अधीर।।60।।
7.
रामक शर सँ मोक्ष होएत रावण अति विद्वान
युद्ध राम सँ ठानिकए कयलनि निज कल्याण।।61।
युद्धभूमि मे आबिकए ललकारल लंकेश
हतल प्राण निज वाण सँ रावण केँ अखिलेश।।62।।
राक्षस कुल संहार कए लए सीताके संग
अवध नगर अयलाह प्रभु उत्सव रंग-विरंग।।63।।
दशरथ शोकहि स्वर्ग गेला पुत्र भेलनि अवसाद
कत युग बीतल ‘चन्द्रमणि’ लखन-ऊर्मि संवाद।।64।।
राज तिलक भेल रामकेँ सकल प्रजा आनन्द
जे देखल एहि दृश्यकेँ पाओल परमानन्द।।65।।
शक्ति सर्वदा संग मे राम-लखन दरबार
पवन-पुत्र हो दास जकर त्रिभुवन सुख-आगार।।66।।
जनक-सुता श्री मैथिली जागल अंतर्ज्ञान
गर्वानन श्रीराम केँ छूबय नहि अभिमान।।67।।
कहलनि सीता राम सँ कथा सुनिअ एक कान
दसकंधर कमजोर छल सहसानन बलवान।।68।।
पिताक गृह मे धर्म-कथा मुनि सँ सुनल महीप
रहथि सुमाली असुरेशवर अजगुत पुष्कर दीप।।69।।
तनिक सुकन्या कैकसी मुनि विश्रवहि लोभाय
पुत्र दसानन-सहसानन के जनम देलनि बनि माय।।70।।
8.
दसमुख छल कमजोर सहसमुख सँ नित पटकल जाथि
मातु कैकसी आंचर तsर दुबकल डरे नुकाथि।।71।।
अनुज भागि लंका बसल तेँ कहबथि लंकेश
पुष्कर दीप प्रताड़ित ऋषि-मुनि तनिक के हरत कलेश।।72।।
सहसानन के दर्प सँ इन्द्र-वरुण छथि दास
करथि कुबेरो चाकरी सुरगण रहथि उदास।।73।।
सुनितहि राम लखन सँ बजला हमसब चारू भाय
मारि खसायब दुष्ट केँ श्वेत दीप केँ जाय।।74।।
सजल सैन्य सब भाय पहुँचला श्वेत दीप तत्काल
सहसानन के श्वास सँ उड़ि घुरला दिक्पाल।।75।।
लज्जित घुरि साकेत मे सिया सँ कहलनि राम
हमर शक्ति छी मैथिली अहीं स बनतै काम।।76।।
प्रमुदित सीता संग भेली पुनि गेला तहि ठाम
कहलनि देखब युद्ध हम लड़ब प्राणपति राम।।77।।
एक सहस छल मुण्ड जकर दुइ सहस्र छल हाथ
चारू भ्राता हारि गेला लड़ि सहसानन साथ।।78।।
क्रुद्ध रावणक वाण सँ चोटिल रामक वक्ष
अनुचित रामक दुर्दशा सीता-शक्ति समक्ष।।79।।
गुरु वशिष्ठ के बात सँ सीता काली भेलि
काटि सहसमुख मुण्ड केँ असुर प्राण हरि लेलि।।80।।
9.
पाबि विजय सब सैन्य संग घुरि अयली साकेत
कखनहु नहि अभिमान करी देवहुँ रहथि सचेत।।81।।
महाशक्ति के संग मे अति मार्यादित राम
शक्तिहीन सुर जखन भेला असुर छोड़यलनि घाम।।82।।
एक दिन राजा राम जखन चलला प्रजा उदेश
प्रजा बीच संवाद सुनि ठमकि गेला दीनेश।।83।।
पर-गृह दारा जायकेँ नहि पवित्र रहि जाय
पर पुरुखक आधीन जे पुनि कोना अपनाय।।84।।
प्रातहि सभा बजायकेँ देलनि लखन बुझाय
सीताकेँ बनवास दिअनु मर्यादा बचि जाय।।85।।
सीताकेँ बनवास दए रामहु कयलनि पाप
जीवन भरि सिय राम-हित सहन कयल संताप।।86।।
शंका मे कुलतारिणी लेलनि राम गमाय
धरणी केर उद्धारिणी तन की पाप समाय।।87।।
शिशु छल सीता गर्भ मे स्वयं तते सुकुमारि
चाही छल अवलम्ब किछु कालक पड़लनि मारि।।88।।
मा सीता केर नोर सँ धरती दहलल जाय
निज पुत्री केर दुर्दशा देखि मोन अकुलाय।।89।।
सुनि विलाप वन मध्य मे मुनि सोचल किछु काल
पुत्रीवत् निज आश्रमे लए आनल तत्काल।।90।।
10.
वन मे आश्रम एक छल वाल्मिकि ऋषिराज
मुनि-पत्नी केँ स्नेह भरल सीता सँ अनुराग।।91।।
सीताकेँ दुइ पुत्र रत्न कुशहरि-लवहरि भाय
जनमल सूरज-चान सन शोभा वरणि ने जाय।।92।।
क्रम क्रम बढ़ला भ्रातृ द्वय गुण निधान अभिराम
सीता जनिकर मातु हो से अतुलित बलधाम।।93।।
एक समय श्रीरामजी अश्वमेध जग ठानि
आमंत्रित सुर-नर-ऋषि-मुनि कयल सुमंगल जानि।।94।।
वाल्मिकि केर संग मे कुश-लव दुनू भाय
अवधपुरी मे आबिकए देलनि रंग लगाय।।95।।
अपन तनय केँ देखिकए सीता पड़लनि याद
सीता अयली यज्ञ मे पुनि शंका अवसाद।।96।।
सभा मध्य सिय ठाढ़ भए लेलनि शपथ अनेक
अवनी गेली फाटि तखन लेलनि धिया समेट।।97।।
मातु गर्भ मे अवनि-सुता जहिया सँ चलि गेलि
जन्मभूमि तक रामके म्लेच्छक भरना भेलि।।98।।
जगत जननि छथि जानकी श्रीलक्ष्मी अवतार
राम-राम नहि सिया-राम जपि ‘चन्द्रमणि’क उद्धार।।99।।
लव-कुश सन बेटा चाही आ धन कुबेर-भंडार
नित पुजू सिय-रामकेँ करता बेरा पार।।100।।
– डॉ. चन्द्रमणि झा, 9430827795
जय मैथिली-जय सियाराम !