मैथिल ब्राह्मण लेल मननीय आ पठनीय होयबाक संग अनुकरणीय

मैथिली कविता

– डा. संजित झा सरस, ठाढी (वाचस्पतिनगर) – हालः दिल्ली

संध्यावन्दन

ब्राह्मण के भेलैन दुरगंजन
छोड़लथि जहिया संध्यावंदन ।
भोरे उठि क डाँव डाँव करैथ
बिनु पूजा आ देवसमर्पण ।।१।।

संस्कार खतम आ धर्म भ्रष्ट अछि
कौलिक सेहो कर्म नष्ट अछि ।
शालिग्राम शिला तक फेकलथि
जनउ पहिरने बहुते कष्ट अछि ।।२।।

टीक त तकला स नै भेटत
लागल चानन लाजे मेटथि ।
लोभ हुनक अछि एत्ते बढ़ल
विष्ठा परहक पाई समेटथि ।।३।।

बृह्ममूहूर्तक चिंता ककरा
चारुणाल चित्त ओ पसरथि
बौह बेटा बेटी के धेन्ने
देवरूप माय बाप के बिसरथि।।४।।

ठाढ़े ठाढ़ करैथ लघु शंका
हुनको नाम के बाजनि डंका ।
गामक श्रेष्ठ महंथ बनल छथि
करत के हुनका पर कियो शंका ।।५।।

दुर्गापूजा दीया बाती
सबमे नाचै नटुआ पाटी ।
पूजा पाठक नामे रहि गेल
होइया सबतरि दारु पार्टी ।।६।।

मुर्गा रुचिगर लागैन सबके
दारू तारीक लवनी छलकै ।
केकरो लाज लिहाज नै रहलै
के ककरा आब मोजर देलकै ।।७।।

लाख खर्च क जेहो केलथि
बेटा केर उपनयन संस्कार ।
गायत्री के बाते छोड़ू
जनउ तक स नै सरोकार ।।८।।

कहू कोना संस्कार बदललै
पाई ख़ातिर आत्मा तक मरलै ।
अपनों में अब प्रेम नै रहलै
लूइटि लेलक जकरा जे ढ़रलै ।।९।।

बाप त बुझू खूब कमेलथि
बेटा केलनि खुलि के खर्चा ।
कर्म कुकर्म तेहेन सब केलकैन
होइ छैन सौंसे हुनके चर्चा ।।१०।।

जीबैत में असगरे छोड़लक
बापक नै चिन्ता ओ केलक ।
जीबैत देल नै माँरो भात
मरला उत्तर सर्वे श्राद्ध ।।११।।

हे मैथिलजन ! करू विचार
अप्पन आबो धरू संस्कार ।
अछि जक्कर जे कौलिक कर्म
आबो बुझू ओक्कर मर्म ।।१२।।

माय बापक प्रति राखू ममता
देव पितर में निष्ठा समता ।
संध्यावंदन जैरि अहाँ केर
परखू आबो अप्पन क्षमता ।।१३।।

नीक विचारक यदि आचार
नै हेता ब्राह्मण लाचार ।
अप्पन कर्म जाईं छथि छोड़ने
ताईं हुनका अछि कष्ट अपार ।।१४।।

धर्म कर्म स बनब महान
सुधरत कोइखक से संतान ।
ब्राह्मण के फेर बढ़त प्रतिष्ठा
राखब अप्पन पुरखाक मान ।।१५।।