मिथिलाक ऐतिहासिकता मे विद्यापतिधामक महत्वः गंगा आ मिथिला
मूल आलेखः डा. लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव (अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी)

“स्नानाय गङ्गाजल नित्यमेव
पानाय गङ्गा सलिलममस्तु
गंगा प्रवाहो मम दर्शनाय
वासो ममस्तु सुरसिन्धु तीरे॥”
– गंगाजल सँ नित्य स्नान करी, गंगा केर पवित्र जल सँ आचमन-पान करी, गंगाक प्रवाहक हमरा दर्शन हो, सुरसिन्धु अर्थात् देवनदी गंगा केर तीर (महार) पर हमरा बास भेटय।
गंगाक प्रति उपरोक्त लोकांक्षा केँ मैथिली कवि-कोकिल विद्यापति सेहो अत्यन्त सरसता सँ व्यंजित कएलनि अछि –
“बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे।
छाड़इत निकट नयन बह नीरे।
कर जोरि विनमओं विमल तरंगे।
पुनि दरसन होअ पुनमति गंगे।
कि करब जप तप जोग धेआने।
जनम सकारथ एकहि सनाने।
एक अपराध छेमब मोर जानि।
परसल पय माय पाय तुअ पानि।
कवि विद्यापति समदओं तोंही।
अन्तकाल जनु बिसरहु मोही।”

जीवनक अन्तिम समय, रुग्नावस्था मे जीवनक आशा-क्षीण भेलापर महाकवि एवं गंगाक परम सेवक विद्यापति माफा (पालकी) पर सवार भऽ सेवक (कहार) व स्वजन केर सहारे कुलदेवी केँ प्रणाम अर्पण कय गंगालाभ (मृत्युक समय गंगातट पर निवास) हेतु विदाह भेलाह। अपन गाम विसफी सँ मउ-वाजितपुर (आब विद्यापतिनगर, समस्तीपुर जिला) तेसरा दिन पहुँचलाह। एतय पहुँचला पर विद्यापति पालकी सँ उतैरकय अपन स्वजन सँ कहलनि, “आब आगू नहि जा सकब। एतेक दूर धरि चैलकय हम मायक दर्शन लेल आबि गेल छी, आब माता स्वयं कृपा करती, ओ अपने आबिकय हमरा अपन कोरा मे लय लेती।” आर्त्तभाव मे राखल विद्यापति समान ‘संकल्पसिद्ध वत्स’ केर जिद्द (हठ) पर भक्त-वत्सला गंगा ओही राति सुल्तानपुर घाट सँ चैलकय धर्मपुर गामक अगल-बगल आर भोर होएत-होएत मउ-वाजितपुर धरि पहुँचि गेलीह।

बाल्मीकि रामायण, महाभारत तथा पुराण सब मे गंगाक महत्व केँ प्रकाशित करयवला कतेको रास प्रमाण एवं भक्तिमूलक कथा सब भेटैत अछि। भारतवर्षीय जनमानस पर एकर अक्षय प्रभाव तीव्र श्रद्धाभाव केर निर्माण मे योग दैत अछि। एतुका लोक भक्तिभाव सँ गंगाक उपासना मे निरत रहैत अछि। सिमरिया, मानसी, खगड़िया, विद्यापतिनगर, काढागोला (मनिहारी) प्रभृत्ति विभिन्न तपोनिष्ठ गंगा-वास स्थल अछि, जतय मिथिला जनमानसक गंगा-भक्ति केँ सहज भाव सँ प्रकाशित करैत अछि।
हरिः हरः!!
पुनश्चः गंगा भक्ति सँ जुड़ल कोनो कथा अहाँ केँ बुझल हो त जरुर पठाउ।