मनाओल गेल जानकी नवमी

sitaram

जनकलली जानकी केर जन्मोत्सव रूप मे ‘जानकी नवमी’ जगह-जगह मनायल जेबाक समाचार भेटल अछि। हेराइत मैथिली भाषा आ भोथियाइत मिथिलाक पहिचानक रक्षार्थ एकटा महत्त्वपूर्ण दिवसकेर रूप मे ‘जानकी नवमी’ मनेबाक परंपरा विगत किछु वर्ष सँ किछु खास अन्दाज मे शुरु कैल गेल अछि।

माँ सीता प्रति भक्ति-भावनाक अनेको स्वरूप अछि। सीताक जीवन-चरित्र मानव समुदायकेँ जीवनमे समस्त सद्गुण संग त्याग आ विपत्तिक घडी सेहो धैर्यवान बनैत पूर्णतया अहिंसात्मक भावना एवं सहिष्णुताक व्यवहार करैत सर्वश्रेष्ठ मानव-आचरण अनुसरण करब अछि। जे सीता बाललीला करैत खेल-खेलमे शिव-धनुष उठा लेने छलीह, जे शिव-धनुष कदापि श्रीराम (साक्षात्) नारायण छोडि दोसर कियो हिला तक नहि सकलाह…. ततेक शक्तिशाली देवी रहितो स्वयं सीता कहियो कोनो भी चरित्र लीलामे हिंसात्मक नहि बनलीह अछि आ यैह बात लेल विद्वान् आ शास्त्रमत-पारंगत हिनकर चरित्रगान करैत दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, सती, सावित्री, अनसूया, मन्दोदरी आदि अनेको विलक्षण गुण सम्पन्न देवीरूपमे सीताकेँ सर्वश्रेष्ठ घोषणा करैत छथि।

सीताक बाललीला गान करैत जगत्‌गुरु रामभद्राचार्यजी महाराज हालहि अपन सुन्दर काव्य “श्रीसीतारामकेलिकौमुदी” प्रकाशित कयलनि अछि जे अत्यन्त पठनीय आ रस-रमणीय अछि। एहि बेर जानकी नवमीक अवसर पर भक्तजनलेल दू अति महत्त्वपूर्ण फलादेशक चर्चा करब: १. जेना सीताक उपनाम ‘मैथिली’ छन्हि, से हिनक चरित्रगान करनिहार व मानव जीवनमे मैथिली-मिथिलाक अस्मिता-प्रति कर्तब्यनिष्ठ, सजग, सक्रिय सहयोगी बननिहार साक्षात् जनकनन्दिनी सीताजीकेँ प्रसन्न करैत छथि आ परमसुख केर आनन्द प्राप्त करैत छथि। २. जीवनक अनमोल प्राप्ति थिकैक माता-पिता-गुरुक चरण-सेवक बनब। सीता-चरित्रमे सेवा व समर्पणक अनुपम आ अत्यन्त सशक्त प्रस्तुति कैल गेल छैक। अनुगामी भक्त जीवन-भवसागर सहजता सँ पार करैत छथि।

एक रोचक प्रसंग: २५ नवम्बर, २००७ केँ जगत्‌गुरु रामभद्राचार्यजी चित्रकूट सँ मध्यप्रदेश के यात्रा पर छलाह। संगमे शिष्य सभसँ रसखान रचित कृष्णक बाल-चरित्र गान सुनि रहल छलाह आ रसमे भाव-विभोर छलाह, हुनका लेल किनको गान सीताराम-चरित्र समान होइत अछि आ ताहि क्रममे हुनकर दु-दु गो शिष्य कहलखिन जे कि श्रीसीतारामजी केर बाल-चरित्र किछु एहने रसगर भावसँ रचना संभव छैक… तऽ रामभद्राचार्यजी एहि भावनाकेँ स्वागत करैत बस एक महीना बादे मुंबईक अपन कोनो सभाक दौरान २३ दिसम्बर, २००७ केँ मंगलाचरणकेर रचना पूरा कयलाह… व्यस्तताक चलते अप्रील २००८ तक मात्र प्रथम भागक ६७ गो पद पूरा कय सकलाह… जखन कि सुन्दर संयोगवश सीताजीक अवतरण-भूमि मिथिलामे हुनकर १८ दिवसीय कार्यक्रम छलन्हि जे कमला नदीक तटपर छल ततय अबैत देरी केवल एहि छोट अवधिमे शेष २६० पदकेर रचना करैत अपन लक्ष्य पूर्ण कय लेलाह। ई मात्र जगज्जननी सीताक असीम आशीर्वाद आ मिथिलाक पुण्य भूमिक प्रताप सँ संभव भेल।

सीताजी मिथिलाक धरा सँ अवतरित होइत एहि धराधामकेँ पवित्र कय देलीह जाहि सँ मिथिला अमर बनि गेल अछि। वैदिक कर्मकाण्ड हेतु ई सुविधा मात्र जानकीक जन्म सँ संभव भेल जे समस्त देवी-देवताकेँ केराक पात पर आह्वान सँ भोगसहित समस्त पूजा-अर्पण स्वीकार्य होइछ। सीता एक पतिव्रता नारी, प्रातस्मरणीय आ नारीक हर रूप मे समस्त मानव समुदाय लेल प्रेरणाक स्रोत छथि।