साग पात खोंटि हम दिवस गमेबय यौ हम मिथिले मे रहबयः हम गामे रहबय (कथा)

मैथिली कथाः हम गामे रहबय

– प्रवीण नारायण चौधरी, विराटनगर

“हँ… सुनि रहल छी। के अहाँ?”

“हेल्लो-हेल्लो??”

“कथी हेल्लो-हेल्लो? सुनि रहल छी, आगू बाजू न? के थिकहुँ अहाँ? किनका संग बात करब?”

“ई नम्बर हमर मित्र चुन्नूजीक नहि छी कि?”

“हँ-हँ! ई नंबर ओकरे छी, लेकिन ओ हमरा देने अछि। हम ओकर बाप बुचाइ दास बजैत छी। अहाँ के थिकहुँ?”

“जी! हम ई. विक्रम पाठक। हमर गाम हरद्वार भेल। पोहद्दी हाई स्कूल मे चुन्नू आ हम संगे पढैत रही। एक वर्ष पहिने गाम आयल रही त चुन्नू कहने छल जे कतहु हमरो लेल नौकरी देखिहें बाहर मे। तही लेल फोन केलहुँ, दोस्तक हाल-चाल पूछय लेल आ नौकरीक आवश्यकता आइयो जँ होएक त ओकरा एतय फरीदाबाद जे दिल्लिये लग छैक एतय पठा देल जाउ।”

“देखू बाबू! चुनुआँ त छह मास पहिने मौसा लंग सूरत चलि गेल। ओतय एकटा कपड़ा दोकान मे सेल्समैन के नौकरी पकैड़ लेलक।”

“चुन्नू सनक छात्र आ कपड़ा दोकान मे सेल्समैन? काकाजी? ओकर दिमाग तिमाग गड़बड़ा गेल छैक कि? एतय आबय, ओकरा हम मैनेजर केर पद दय केँ राखब।”

“से कि कहू बाबू! आब गाम मे रहय स त नीक जे बाहर गेल आ ओतय कपड़ो दोकान मे काज भेलैक। गाम मे त बोनियो करय लेल नहि मानैत छल। अपने जा धरि जवान रहलहुँ कमा-कमाकय ओकरा पढाई करय लेल अहीं सब साथ दरभंगा आ ३ साल पटनो मे रहय लेल खर्च देलियैक। मुदा सभक तकदीर मे …..” ई बजैत बुचाइ दास केर कोंढ फाटि गेलनि। ओ सिसकैत बजलाह…”बौआ! आब ओकर फोन आयत त अहाँक नंबर दैत ओतहि सँ फरीदाबाद जेबाक लेल कहबय।”

बुचाइ दास स्वयं अनपढ छलाह। अपन बाल्यावस्था मे ओ घर-गृहस्थीक कार्य करबा मे जतेक रुचि रखैथ ततेक पढाई सँ अरुचि रहबाक कारण भाइ-भैयारी सँ पाछू पड़ि गेलाह। आइ अपने परिवार मे जे सब पढलक ओ सब आगू बढल – ओकर धियोपुता सब खूब पढि-लिखि समृद्धि आ प्रगतिशील पथ पर बनल रहल, लेकिन बुचाइ दास अपना नहि पढबाक टीस सँ परेशान त छलाहे, बेटा केँ पढेबाक लेल जी-जान एक कय देलनि मुदा ओहो पढि-लिखि कोनो पद प्राप्त नहि कय सकल, कतहु नौकरी नहि भेटलैक, माथो बड स्थिर नहि रहैत छलैक… खने दोकान करब, खने टैक्सी चलबायब, गामक माया मे रहब ओकरा बेसी नीक लगैत रहैक। आब ओकर विवाह सेहो करा देल गेल छलैक। कनियां जहिया सँ एलैक तहिया सँ चुन्नू केँ बाहर परदेशक जिनगी गाम सँ बेसी नीक होएत छैक ई भोर-साँझ-दुपहरिया जखन-तखन उपदेश भेटैक। जखन अपन कनियां सँ भैर मुंह बात करय लेल चाहय कि कनियां ओकरा अपन संगी सभक पति केर परदेशक जीवन आ ओकर सुखक खिस्सा सुनाकय मोन उद्विग्न कय दैक। अन्ततोगत्वा चुन्नू सेहो गामक मोह सँ मुक्त आब बाहरे कतहु रहत। मुदा बाहर मे ओकरा कोन काज भेटतैक, कि हेतैक, अनिश्चितताक भार माथ केँ ढील कय देने रहैक। ओत्तहु कनियांक कटु बात केँ सिद्धि मंत्र जेकाँ लेलक आ एकटा मौसा सूरत मे रहैत छलाह त हुनके लंग जा कोनो काज करबाक जोगार लगौलक।

कनियां कहि देने रहैक जे बाहर मे एकबैगे केकरो बड पैघ काज नहि भेट जाएत छैक। संघर्ष करय पड़ैत छैक। ओकर बड़की बहिनक घरवला सेहो पहिने दिल्ली गेल त एम्हर-ओम्हर बहुत दिन धरि भटकैत रहल। बाद मे तरकारी बजार मे कूली-भरियाक काज शुरु कएलक। फेर कनीकाल लेल अपनो थोड़-बहुत तरकारी सब बेचबाक बात सोचि ओकर बहिन केँ दिल्ली लय गेल छल। एम्हर अपने किछु भार उघिकय पाय कमाएत छलय, ओम्हर कनियां सँ तरकारी बेचबाबैत छलय। दुनू प्राणी एना मेहनत कय केँ आइ ५ गो धिया-पुता संग दिल्ली मे नीक जीवन जीबि रहल अछि। आब दिल्ली मे घर सेहो ओकरा सभक अपने भऽ गेल छैक। गामक ५ कट्ठा बेचिकय दिल्ली मे एकटा खोली कीन लेने अछि, नहि त पहिने कमायक आधा हिस्सा भाड़ा देबय मे चलि जाएत रहैक। चुन्नू केँ ई सब खिस्सा सुनबैत ओकर कनियां सिद्धि मंत्र दैत कहने रहैक जे, “शहर मे पहिने धीरे स अपन पैर रोपय पड़ैत छैक। फेर बैसबाक, पड़बाक आ बाद ऐश करबाक जगह अपने आप भेट जाएत छैक।” – एहि मंत्रक आधार पर चुन्नू सूरत शहर मौसा लग जाय एकटा कपड़ाक दोकान मे सेल्समैन के नौकरी धऽ लेलक। ओतय पटना सँ ग्रेजुएशन करबाक बात सभक कोनो मोजर नहि, ओ गामे टा मे लोक केँ कहय लेल होएत छैक जे बुचाइ दास अपन बेटा केँ पटना मे पढौलनि। ओतय त बस, “क्या काम जानते हो?” एकर जबाब मे कहलकैक, “सर! गामे मे रहते थे आ ओतय थोड़ा-मोरा बिजनेस कैर लेते थे। नौकरी कहियो केबे नै किये।” – ताहिपर ओ सेठ सीधा-सादा गामक लोक बुझि ओकरा अपन मैझला बेटाक कपड़ा दोकान मे काज करय लेल राखि लेलकैक। मौसा सेहो ओहि सेठक बड़का बेटा किराना दोकान मे वर्षों सऽ गोदाम मे काज करैत छलैक। बड नीक परिवार चलय जोग सब आमदनी कमा लैत छल।

चुन्नू केँ गाम सँ सूरत एलाक बाद एखन धरि बुझू जेना मन गामहि मे लटकल होएक, मुदा घरवालीक पढौनी आ चुनौती बेर-बेर आँखिक सोझाँ तेना नाचि उठैक जे ओकरा जबरदस्ती मोन लगाबय पड़ैक। एक दिन कोनो छोट सन बात पर चुन्नूक मालिक ‘बेहुदा कहीं का….’ कहि देलकैक। ओ घुरिकय जबाबो नहि दय सकैत छल, कारण ओकरा कनियां सिखौने रहैक जे शुरु मे बड दिक्कत होयत… फल्लाँ गामवला पाहुन फल्लाँ संगीक घरवला कहथिन जे पंजाब मे मालिक सब दुर्दशा करैत छैक, मन त तेना तमसाएत छैक जे सोझाँवला केँ दू खण्ड काटि दियैक…. मुदा कनिको आँखियो गुरारलापर चाबूक सँ फेर मालिक सपरिवार मिलिकय कूट-पीट करैत छैक। अपने बिहारी लोक केँ सेहो एहेन गलती केलापर चाबूक सँ मारय लेल कहैत छैक। जँ ओ मारय सँ मना करैत छैक त फेर ओकरो वैह सजा सब मिलिकय दैत छैक। जीवन त नरके बुझू…. लेकिन आब गाम-घर मे मजदूरी करयवला जमाना नहि रहि जेबाक कारणे परदेश छोड़ि दोसर सहारो त नहि छैक। गाम मे वैह काज करत लोक समाज मे ओकर जगहँसाइ हेतैक। आब के बड़का आ के छोटका…. सब मालिके आ सब नौकरे गाम मे। ताहि सँ परदेश जायब जरूरिये नहि मजबूरी सेहो भऽ गेल छैक। चुन्नू बड हिम्मत कयकेँ कनियां केँ कहने रहैक जे फल्लाँ गामवला अहाँक पाहून पढल-लिखल कम हेतय, तही द्वारे न पंजाब मे कमाय लेल गेल, मजदूरी केलक। कनियां तयपर तेहेन बात कहि देने रहैक ओकरा… “ईह! बड भेला हँ पढल-लिखल। जाउ-जाउ! देखय नहि छी अपन दुर्दशा। गाम मे टूटपूंजिया काज सब सँ कहियो २ टका होइ य कहियो खालिये रहि जाएत छी। कोन काज देलक पढलहबा?…. खर्चा थोड़े न मानय छै। एखन दु प्राणी छी। काल्हि धिया-पुता होयत। कतय सँ कि सब करबय। चुपचाप बाहर जाउ आ कमाय‍-धमाय के बाट बनाउ। उट्ठा कमाइ सँ कहियो पुरियो पड़त।” कनियांक ई सब गप सुनि चुन्नू अपन सब डिग्री बेकार बुझि आइ सेल्समैन के नौकरी सूरत मे कय रहल अछि आर कनिटा गलतीपर ‘बेहूदा’ शब्द सनक कठोर शब्द जे ओकरा मायो-बाबू कहियो नहि कहने रहैक से सुनय पड़ि गेलैक। ओ चुपचाप अपन मुखाकृति बनबैत थरथराइत स्वर मालिक सँ एहेन गलती दोबारा नहि करबाक वचन देलक। चुन्नू केँ राति-राति भैर नींद नहि होएक। कनियांक वचन एक दिशि आ दोसर दिशि शहर मे चाकरीक जीवन। गामक स्वतंत्रता आ रुख-सुख भोजनक स्वाद ओकरा बेसी नीक लगैत रहैक, मुदा करत त करत कि। कुल्लम् ६ मास धरि ओ द्वंद्व मे जिबैत रहल। सुखासुखी ८ हजार टकाक पगार, अपने सस्ता-मस्ता किछो खा-पीबि रहि जाय, मुदा कनियां लेल आधा पैसा मनिआर्डर कय दैत छलैक। कनियां खुशी सँ चिट्ठी मे ततेक प्रेम पठबैक जे चुन्नू लेल बुझू जे एहेन विचित्र जीवन मे एकटा नव प्राण देबाक काज काज करैक। चुन्नू सेहो कनियांक लिखल हरेक चिट्ठी मे ओकर शिक्षा अनुरूप चलबाक बात गछैक। आर तहिना कनियां सेहो हरेक चिट्ठी मे ओकरा ज्ञान भरल बात सब लिख पठबैक।

आइ चुन्नू कनियां केँ फोन लगेलक। ओकरा बात करबाक बड इच्छा छलैक। “हेल्लो! हम बजय छी, चुन्नू।” – ओम्हर स कनियां कहलकैक, “एती राइत अहाँ फोन कइ ल केलौं?” – “एह, कि कहू। अहाँक बड याद अबैत छल।” – “मारू मुंह ध के एहेन याद-फाद के। आराम करू। नीक जेकाँ काज पर ध्यान दियौक। छ मास पूरा भेल। मालिक प्रोमोशन देबाक बात जे कहने छल से कि भेल?” – “प्रोमोशन? हाहाहा, आइ कनीटा गलतीपर बेहुदा कहि देलक। ओ त अहाँक मुंह बेर-बेर सोझाँ आबि जाएत अछि। नहि त सार केँ आइये फारि दितियैक।” – “आ हाँ-हाँ! मालिक जतेक गारि पढय बुझू ओतेक नजदीक भऽ रहल अछि। फल्लाँ गामवला पाहुन कहथिन जे मालिकक गाइर आ भगवानक आशीर्वाद, ई दुनू एक्के बुझू।” – चुन्नूक मन त खौंझायल रहबे करैक… ओ पहिल बेर कनियां केँ फटकारैत कहलक, “ऐँ यै! अहाँक सब बात पाहुने सब सिखौलनि। बैंह! हमरा कियो गारि पढलक आ अहाँ लेल धैन सन?” कनियां चुन्नूक मूड बुझैत कहलकैक, “अहींक हित लेल न कहैत छी। हमर परिवार कती टा छैक आ केहेन-केहेन लोक छैक से कोनो अहाँ नहि….” – ओकर बात केँ चुन्नू बिच्चे मे काटिकय कहलकैक जे काल्हि भोर मे बाबू सँ गप करैत छी। हमरा शहर सँ मोन ऊबि गेल आब।

चुन्नूक बाबू बुचाइ दास घर-गृहस्थीक काज मे एखनहु ओतबे लगन सँ काज करैत छलाह। ओ आइयो हाथ पर दू गो पाइ रहय ताहि लेल कतहु अपन श्रमदान तक देबाक लेल नहि हिचकिचाइथ। अपन माल-जाल आ खेती-पाती सँ फुर्सत रहल त हर जोतय सँ लैत चार छाड़ब आ कि भीतघर केर भीत पाथब – जेहेन काज भेट जाय, केकरो बारी-झारी बनेबाक छैक आ कि गाय-महींस दुहबाक छैक – ओ अपना योग्य आमद सदैव अपन श्रम सँ कय लैत छलाह। एतेक कठिन आमदनीक पैसा सँ ओ अपन एकलौता बेटा चुन्नू केँ पढाई करौने छलाह। बहुत शख ओहो पोसने छलाह जे बेटा कम सँ कम मास्टरियो करत त ओकर ऐगला पीढी आरो बेसी पढि-लिखि हाकिम-हुकुम बनत। शिक्षा सँ लोकक दिन फिरैत छैक। जे शिक्षित होएत अछि वैह संस्कारी सेहो बनैत अछि। अपनहि गामक बहुतो लोकक दीन-दशा-अभगदशा एहि शिक्षाक सहारा सँ दूर होएत ओ देखने रहैथ। स्वभाविके रूप सँ कियो मनुष्य प्रगति लेल सपना देखैत अछि। आइ सेहो ओ अपन काज सँ फुर्सत भेलाक बाद कतहु रोजीक खोजी मे बहरायल छलाह। हुनकर आवश्यकता जेकरा पड़ैक ओ हुनका तकैत घरे पहुँचि समाद दैन अथवा चौक-चौराहा कतहु ओ भेंट हेताह त कनी टा सँ बड़का टा – जतबाक टा के टहल होयत ओ हुनका करय लेल कहि देब। बुचाइ दास लेल फेर बोइन सेहो बड बेसी चाही से बात नहि रहैक। एक घंटा काज कय देथिन, कियो १० टका हाथ मे दय दैत रहैन, ओ खुशी-खुशी राखि लैत छलाह। चुन्नू केँ अपन पिताक एहि सब आदतिक बारे मे नीक जेकाँ बुझल छलैक। ओ अपन पिताक बड पैघ भक्त सेहो छल। बाबू जखन फुर्सत मे घर एलखिन त अंगना सँ आदेश एलनि जे कनी बौआ केँ फोन करियौक। अहाँक फोनपर कतेक बेर ओ फोन केलक। अहाँ नहि रहियैक से आब बात कय लियौक।

“हेल्लो चुन्नू?”

“हँ-हँ! बाबू गोर लगैत छियह।”

“खूब नीकें रहे। कह! कि बात?”

“नहि बाबू! ओहिना। बड मोन पड़ि गेल छलह रातिये।”

“अच्छा! आर सब आनन्द छँ न?”

“हँ बाबू!”

“आरो कोनो बात?”

“बाबू… बाबू…”

“बाजे न? कि भेलौक?”

“बाबू….” – चुन्नू केर कोंढ फाटि गेलैक। ओ फोने पर खूब हिंचुकि-हिंचुकि कानय लागल।

“बाज-बाज बौआ, कि भेलौक? एना कियैक….”

कोन्टा लंग कनियां सेहो कान पाइथकय सब सुनि रहल छल। चुन्नूक माय त बाबुए लग आबिकय विस्मित भाव सँ बापक मुंह दिशि ताकि रहल छलीह।

“बाबू…. आब हम शहर मे नहि रहबह।”

“अरे, कि भेलौक से त बाज?”

“बाबू – एहि सँ बहुत नीक हम गामे मे काज करैत रही। एतुका जीवन जेलक जीवन जेकाँ बुझाइत अछि। काल्हि कनी टा बात पर मालिक तोरा बेहुदा कहि देलक। जीवनक कोनो मूल्य नहि। सब पढलहबा बेकार चलि गेल। परदेश मे छी। मालिक स डर भेल। माफी मांगि लेलियैक। मौसा सेहो तोरा एतय सँ दूरे रहैत छथिन। बाबू… एहि सँ बहुत नीक गाम छैक। शहर केर जीवन छ मास धरि जिलहुँ। सब बात बुझि गेलियैक। अपन पेट आ हिया काटिकय लोक परिवार पोसत तखनहि पोसाएत छैक।”

बाप ओकर सब बात सुनैत “हँ-हुँ” कय रहल छलखिन। माय आ कनियांक अनुहारपर प्रश्न आ विस्मयक मिश्रित भावना टा देखल जा सकैत छलैक। चुन्नूक आवाज मे दृढता आबि गेल छलैक। ताबत बाप केँ ओकर मित्र जे फरीदाबाद सँ फोन कय चुन्नू लेल नीक नौकरीक बात केने रहैक से मोन पड़ि गेलनि… ओ कहलखिन,

“रे बेटा, काल्हि तोहर कोनो दोस्त जे तोरा संगे पोहद्दी स्कूल मे पढैत छलौक, कोनो पाठक रहौक… से फोन कएने छलौक तोरे नंबर जे हमरा लग अछि तहीपर…”

“बाबू, छोड़ह ई सब आब। हम गाम आबि रहल छी। आशीर्वाद दहक। कनियां केँ बुझा दहक जे ओकरा हम गामहि मे ओतेक पाइ कमाकय देबैक जतेक दूर रहिकय दैत छी।”

“बौआ, एक बेर अपन मित्र स बात त करे…? ओ कोनो नीक पद केर बात कय रहल छलखुन। पूछि लहुन एक बेर।”

“धू बाबू! ई परदेश मे सब अपने स्वार्थे पागल अछि। हमर अपने गाम बड नीक अछि। कोना तूँ अपन जीवन बिता लेलह? कहियो तोहर मुंह मलिन नहि देखलियह। हमहुँ तोरे जेकाँ सब काज करब। अपन घर-गृहस्थी सँ लैत समाज आ आस-पड़ोस जे काज भेटत से करब। तोहर इच्छा छलह जे हम मास्टरो बनी, से गछैत छियह जे गाम मे रहि हम ५-१० बच्चा के पढा लेब तैयो हम एतय सँ नीक जीवन जियब। खाली कनी अपन पुतोह केँ बुझा दिहक। नहि जाएन बहिं कतेक ओकरा घर पाहुने सब छैक जे ओकरा कतेक तरहक नौकरी आ परदेशक इल्म सब सिखा देने छैक। ओ तोरा जिद्दी छह। ओकरा सम्हारबाक लेल ओकर बाबुओ केँ कहय पड़ह त कहि दिहक।”

“बेस बाउ। आबे। तोरा मे एतेक हिम्मत छौक त अपन गाम सँ बेसी नीक दोसर कोनो स्थान नहुि भऽ सकैत छैक। आबे, बाकी हम सबटा सम्हारि लेब।”

चुन्नू गाम आबि गेल। एखन ओकर अपन १० टा धंधा गामहि मे फलित-फूलित छैक। ओकरा शहरक वास सँ बहुत नीक जीवन गामहि मे भेट गेल छैक। आब ओ परदेश मे रहनिहार लेल उल्टा एकटा आदर्श नागरिक बनि गेल अछि। ओ एकदम अपन पिताक सिद्धान्त पर चलैत अछि। ओकरा कोनो काज सँ लाज नहि होएत छैक। भोर-साँझ मे ट्युशन चलबैत अछि। आन मास्टर सब सँ एकदम सस्ता आ नीक शिक्षा – कोनो विषय मे ओ अपन जीवनक अनुभव सँ नीक तालिम दैत बच्चा सब केँ सिखबैत छैक, ओकर ई खासियत छैक। ओकरा लग दू टा टैक्सी सेहो भऽ गेल छैक आइ के दिन। कनियां केँ लेकिन आइयो अपन पाहुन सभक सिखेलहा बात बेसी मोन पड़ैत छैक, चुन्नू आब ओकरा सँ ई सब बात मजाक मे कहैत-सुनैत छैक। बीच-बीच मे दरभंगा घुमा अनैत छैक। सिनेमा देखा अबैत छैक। आब त चुन्नू के दू टा धियो-पुता भऽ गेल छैक। हँसी-खुशी परिवार संग चुन्नू आजाद जीवन अपन मिथिला मे जीबि रहल अछि।