गीतः दारू सब जगह चलै छै…
– अशोक कुमार सहनी, रघुनाथपुर, लहान-४ (हालः दोहा, कतार)
होली में चलै छै, दीवाली में चलै छै
नाच में चलै छै, गजल में चलै छै
शादी में चलै छै, तलाक मेें चलै छै
जनम दिन में चलै छै, मरण दिन में चलै छै
दारू सब जगह चलै छै…
घर में चलै छै, ससुरारि में चलै छै
रोड में चलै छै, बाजार में चलै छै
प्यार मेें चलै छै, झगडा मेें चलै छै
खुशी मेें चलै छै , दुखो में चलै छै
दारू सब जगह चलै छै…
मिलन में चलै छै, विछोर में चलै छै।
जीत में चलै छै, हारो में चलै छै।
जार में चलै छै, गर्मी में चलै छै।
बसंत में चलै छै , बारिश में चलै छै।
दारू सब जगह चलै छै…
नेता के चलै छै और वोट में चलै छै।
दारू कहियो नै रुकै छै,
दारू कहियो नै झुकै छै।
दारू सब जगह चलै छै…
दारू सब जगह चलै छै…