मैथिली जिन्दाबाद विशेषः अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवसपर अहाँक पठाओल रचना
१. सुप्रसिद्ध गीतकार डा. चन्द्रमणि झा
संगोर
शाँत छी कमजोर नहि
हठ-यतन गठजोर नहि।
भावना-भव ओर नहि
मित्रताके छोर नहि ।।
भिन्न लक्षण रूप यौवन
मन विभेदक जोर नहि
अपन सुख हँसिकs बँटै छी
सहन आँखिक नोर नहि।
फूल नगरक हो कि गामक
गंध बेशी-थोड़ नहि
खेत मे सीमान अछि
आकाश बाँटक होड़ नहि।
हम तs गंगाजल पिबै छी
विविध पेयक घोर नहि
हम अडिग संबंध राखी
मन मे कोनो चोर नहि।
हम स्वभावे सँ सहिष्णु
मैथिलक मतिभोर नहि
अपन हक माँगी सदरि
पर, राष्ट्र-हित के खोर नहि।
पावसहु मे नहि जलद-धुनि
तखन नाँचय मोर नहि।
अपन मिथिला मातृभाषा
माँगि रहलौं बोर नहि।
‘चंद्रमणि’ अंतर अन्हरिया
तकर छाँटल भोर नहि
उर सँ उर सुर एक हो
अधिकार बिनु संगोर नहि।
२. मैथिली कवि-गजलकार ‘कमलदेव महतो’
३. विरेन्द्र कुमार झा – हम सब मैथिल छी फेसबुक ग्रुप परः
नगर बसी या रही विदेश,
जूनि बिसरू मातृ सन्देश –
मधुर,सरस ई मैथिली भाषा
मिठगर जेना लगै बतासा,
बाजू सदिखन रहि निधोख,
अमर राखु माँ जानकीक कोख।
(मैथिली हमर पहचान,सम्मान आ शान अछि।
हमरा दोसरो भाषा पर वर्चस्व अछि,मुदा अप्पन मातृभाषा सर्वस्व अछि।)
४. श्री सुधीर जी – व्हाट्सअप नंबर ९९३९९५२९३३ वायाः डी एन चौधरी, दरभंगा
“भाषा-दिवस”
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(भाषा दिवस केर अवसर पर)
“देशील बयना सब जन मिट्ठा”
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मैथिली – भाषा अति प्राचीन, पूर्वज प्रदत्त अनमोल धरोहर आओर माधुर्यतासँ आप्लावित मीठगर भाषा अछि । भाषा संस्कृति व संस्कार केर उद्गम – स्थलीक मेरूदण्ड थिक । भाषा करोड़ों व्यक्तिक मूल पहचान थिक ।
मिथिलांचलक मधुरतम भाषा मैथिली, तावत् धरि बिलखैत रहतीह जावत् धरि गाम – घर तथा प्रवासमे रहनिहार मैथिल लोकनिक कंठक भाषा नञि बनत । मैथिली भाषाक उत्थान मिथिलाक सांस्कृतिक उत्थान थिक तथा मिथिलांचलक मैथिल लोकनिक स्वाभिमानक उत्थान थिक । अत्यन्त मधुर आओर प्रिय भाषा मैथिलीक संरक्षण व संवर्द्धनक आवश्यकताकें अनिवार्य रूपसँ नियोजित करबाक अहम् दायित्वकें हृदयमे धारण करबाक संकल्प ली ।
आऊ, भाषा दिवस केर अवसर पर हमरालोकनि सामूहिक संकल्प ली जे घर – घरमे धिया – पुताके संग, श्रेष्ठ अभिभावकके संग तथा सर – कुटुम्बके संग मैथिलीमे गप्प – सप्प करी । जय श्री हरि ।
जय मिथिला ! जय मैथिली !! जय भारत !!!
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५. विनय झा – हम सब मैथिल छी फेसबुक ग्रुप पर
मातृभाषा दिवस पर विशेष”🌻
“निज भाषा उन्नत अहै,
सब उन्नत के मूल।
बिन निज भाषा के ज्ञान के,
मिटत न हिय के शूल।।”
“पग-पग पोखरि माछ मखान,
सरस बोल मुश्की मुख पान।
विद्या वैभव शांतिक प्रतीक,
सरस क्षेत्र मिथिलांचल थीक।”
आइ २१ फरवरी क’ मातृभाषा दिवस अछि।
एहि सम्बन्ध मे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी सेहो कहने छथि- मातृभाषा मानवक विकासक लेल ओतवे स्वभाविक अछि जतेक शिशुक शारीरिक विकासक लेल माइक दूध। बच्चा नागरिकताक सम्पूर्ण पाठ माइक चुम्बन आ पिताक दुलार सँ सिखैत अछि। मातृभाषाक महत्वक एहि सँ व्यापक उदाहरण आओर की भ’ सकैत अछि।
आउ हम सभ मातृभाषा दिवस पर संकल्प ली- मैथिली बाजब, मैथिली लिखब, मैथिली पढ़ब।
“जय मिथिला!जय मैथिली!जय मैथिल!”
सविनय
सुप्रभात!
विनय झा
२१-०२-२०१७
६. डा. संजीत झा ‘सरस’ द्वारा अपन फेसबुक स्टेटस व अन्यत्र
💐 मैथिली छथि मिथिला के मान💐
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अज्ञान तमस स लिप्त मनस में
जागल अछि जिज्ञासा ।
किया विकल छथि अपनहि घर में
मधुर मैथिली भाषा ।।१।।
मधुर अहाँ के दिवस देखि क
हमरो जागल मन में आश ।
हमहुँ पुत्र अहीं के मैथिली
हम्मर शान्त करू जिज्ञास ।।२।।
शान्त करू जिज्ञासा
मन अछि बहुते व्याकुल ।
अहाँ किया छी शान्त
यदि हम एत्तेक आकुल ??३??
आ की देखि दुर्दशा घर में
बंद अहाँ के भेल बकार ?
जिनका पाललौं पोसलौं वैह सब
रखलनि नै कोनो सरोकार ??४??
की करबै कलियुग अछि जननी
सबटा ओकरे कैल तमाशा ।
अंग्रेजी पढ़ि सब भेल विलायती
बिसरल अप्पन माय के भाषा ।।५।।
गर्भहि स जे भाषा सुनलक
तकरा लोक कोना के बिसरल ?
हमरा जनैत हे मधुरा वाणी
ताईं अप्पन मिथिला अछि पिछड़ल।।६।।
पलला बढला जे मिथिला में
तिनको दिल्ली बम्बई आशा ।
अंग्रेजी हिन्दी अछि पसरल
बिसरल सब आई अप्पन भाषा ।।७।।
ओ भाषा जे मधुर सरल अछि
जै में प्रेमक रंग भरल अछि ।
मातृगर्भ स निकलल शिशु के
जाहि भाषा क्रन्दन निकलल अछि ।।८।।
ओहि भाषा के मान नै घर में
माय बापक सम्मान नै घर में ।
धिया पुता हिंगलिश बाजै छथि
मैथिली के अपमान अछि घर में ।।९।।
आग्रह हमर हे मैथिल प्रियजन
रहू ओतै जतय वृत्तिक आशा ।
दिल्ली कलकत्ता बम्बई रहितो
घर में बाजू अप्पन भाषा ।।१०।।
कहथि सरस कर जोरि सुनै जाउ
अपनहि भाषा स पहचान ।
धन मैथिली जे हम सब मैथिल
हुनकर नै करियौन अपमान ।।११।।
हुनकर नै करियौन अपमान
आबो करू हुनकर सम्मान ।
घर घर गूँजथि भाषा अप्पन
मैथिली छथि मिथिला के मान ।।१२।।
मैथिली छथि मिथिला के मान ।
मैथिलीये मिथिला के जान ।।
७. मणिकान्त झा ‘मणि’, दिल्ली फेसबुक पर
— ?? प्रश्न , अपने आप सऽ ??—
केहेन जुलुम कयलक अंग्रेज़ जड़लाहा,यौ।
जाय सऽ पहिले बॉटैय लेल हमरा सब कऽ,
खींची देयलक एकटा बड़का पाला, यौ ।यौ खींची —
नेता सब बनि गेल,हमर सबहक चरबाहा,यौ । यौ नेता–
छी हम सब खूट्टेसल,जातिक खुट्टा सऽ,
गाय-महिष जेना हमसब पौउज करैयत छी,
नेता,देखि तमाशा हमरा सबहक,मौउज करैयत अछि। यौ-
कतेक भ्रमित कऽ देयलक हमरा सब कऽ,
कतेक बना देलक अप्पन सऽ आन,
कतेक बदलि देलक हमरा सबहक पहचान,
लगा देलक हमरा सबहक जिनगी पर पूर्ण विराम,यौ ।
देखू कतैय समस्या भऽ गेल अछि,
अप्पन समाज मऽ आय ।
कतेक परिस्थिति बदैल गेलैय,
बनि गेलेय बड्ड नमहर खाय,
नैं चाहैत छी देखय,एक- दोसर कऽ ,भाय ।यौ नैं-
केहेन भऽ गेलाहूँ, हम सब आब कसाय ,
विपैतो मऽ एक- दोसरक हाल पूछैयलह नैं जाय ।
अपने कऽ देखि,अपने सऽ लगैत छी पड़ाय,
केतेक समस्या भऽ गेल आय ।
कतेक भऽ गेलाहूँ अछि असहाय,यौ।यौ कतेक–
यौ,लोक मैथिल कऽ ब्राह्मण बूझैत अछि,
अपने आप कऽ, अपने सऽ बॉटि रहल अछि,
यौ ब्राह्मणो तऽ छैय,मैथिले,यौ भाय,
सबहक छैय एके गोंसाय,
फेर सऽ एक बेर हृदय मिलाबि,
आख़ीर हमरा सबहक,एके अछि माय,
ओ मिथिला कहाय । यौ ओ मिथिला–
इ’ सोचि सब कऽ भऽ रहल अछि लाज ,
कतेक बिखैर गेल अछि हमर समाज ।
सब अपने -आप मऽ चिन्तन करू,
असगरे मऽ बैसि आत्ममंथन करू । यौ असगरे–
अपने सऽ होबय लागत आत्मग्लानि ,
मोन करत ख़ूब कानि,
यौ,सोचियौ तऽ ,कि इ’ अछि हमर समाज,
कतेक बदैल गेल अछि हमर साज,
कि’, एनैहियैं चलत हमरा सबहक काज,
कि’, करब लऽ कऽ एहेन मिथिला राज,
कि’, करब, लऽ कऽ एहेन खाज़ ।यौ कि–
कुकुर जकॉ फेर सऽ हम लड़ब,
करब एक- दोसर पर वार,
अहि सऽ कोन सपना होयत साकार । यौ अहि–
नेता रूप मऽ फेर सऽ, अंग्रेज़ जगल अछि,
फुटबैय वाला मंत्र,सबहक कान मऽ फूँकि रहल अछि,
फेर सऽ हमरा बॉटि रहल अछि,
यौ,ओ अप्पन रोटी सेक रहल अछि । यौ , ओ–
ओकरा हमरा सऽ नैं ,छैक कोनो दरकार,
बनेबाक छैक ओकरा, अप्पन सरकार । यौ बनेबाक–
ओहि सऽ भऽ जाऊ होशियार,
अप्पन नव मिथिला कऽ फेर सऽ करू साकार,यौ।यौ–